'इस बार जन्म दिन पर पूर्वी ने डॉगी ,फिश या पैरेट में से कुछ मांगा है गिफ्ट में ।" सुहानी ने चाय पीते-पीते राजीव से कहा ।
"ला देना..वह सुमित की तरह जिद्दी और झगड़ालू तो है नहीं.. तुम्हारा लाडला तो वैसे भी खेलता कम और झगड़ता अधिक है उसके साथ ।"
राजीव ने लैपटॉप की स्क्रीन पर नज़र गड़ाए व्यस्त भाव से कहा ।
बहुत देखभाल के बाद पूर्वी के लिए सुहानी ने एक तोता पसन्द किया और जन्म दिन पर
उसका गिफ्ट उसके सामने रख दिया । साथ ही सुमित को सख़्त हिदायत दी कि वह अपनी शरारतों से बाज आए और बहन और उसके तोते से छेड.-छाड़ न करे ।
तोते का लोक प्रचलित नाम मिट्ठू रखा गया ।
मिटठू के आने के बाद पूर्वी भाई की उपस्थिति भूल अपनी ही दुनिया में रम गई । मिटठू को मिर्च खिला कर..कभी हैल्लो.. तो कभी राम-राम बोलना सीखा कर वह बहुत खुश थी.., पढ़ाई के बाद सारा दिन पिंजरे में बंद तोते के आस-पास ही मंडराती रहती । घर में शांति और भाई-बहन के युद्ध-विराम से पति-पत्नी खुश थे ।
कुछ दिन बाद सुहानी ने महसूस किया कि मिट्ठू की मीठी बोली में कर्कशता घुल गई है । सारा दिन की उसकी टें...टें से वह परेशान हो उठी ।
"आज इस मिट्ठू की खबर लेती हूँ" मिट्ठू की चुभती आवाज से त्रस्त हो वह आवेग से उठी और आंगन में आ कर जो दृश्य देखा तो आँखें हैरत से फैल गई -- पिंजरे के पास बैठी पूर्वी बड़े आराम से मिट्ठू के पंखों में पेन की नोंक चुभा रही थी और मिटठू बैचेनी से चीख-चिल्ला रहा था ।
उसने एक चाँटा बेटी के गाल पर रसीद किया और छत पर ले जाकर पिंजरे का द्वार खोल दिया । पूर्वी का रोना सुन उसे गोद में उठा कर राजीव ने छत की सीढ़ियाँ उतरती सुहानी को कड़े स्वर में डॉटा- "बच्ची की खुशी नहीं सुहाई..क्या हुआ.. जो मिट्ठू आजकल टें..टें..कर रहा था । किस बात की सजा दे रही हो बच्ची को..इस तरह का रवैया अपने लाडले के साथ रखती तो कब का सुधर गया होता।"
"हाँ..गलती हो गई मुझसे इन दोनों को समझने में..भूल मैंने की है तो सुधारूंगी भी मैं ही ।" सोच में डूबी खाली पिंजरा डस्टबिन के पास रखती सुहानी ने जवाब दिया ।
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