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Monday, February 22, 2021

"भरी थाली"

"हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं"- आगंतुक ने

 ट्रे में खाली गिलास रखते हुए अपनी पत्नी की तरफ देखते

हुए रश्मि से कहा । 

"दरअसल बाबूजी चाहते थे समीर को भी जायदाद में

हिस्सा मिले ।" पत्नी ने पति की बात को आगे बढ़ाया।

  - "समीर की बारहवीं की परीक्षा है इस साल" विनम्र लहज़े में रश्मि ने ट्रे  कोने में रखी मेज पर रखते हुए गंभीरता से जवाब

दिया ।

- "आपको पेपर-वर्क के लिए समीर को  हमारे साथ तो भेजना

ही पड़ेगा।" रश्मि की बात को नज़रअन्दाज़ करते हुए

आगंतुक ने बातों की कड़ी फिर से जोड़ने का प्रयास किया ।

- "बाबूजी की अंतिम इच्छा का मान रखने के लिए उन्होंने

इनके मनाने पर बड़ी मुश्किल से एक प्लॉट हिस्से में देने के

लिए हाँ की है ।" पत्नी ने मानो अहसान जताते हुए फिर

से कहा ।

-  "माफ कीजियेगा ... इस वर्ष मैं उसे डिस्टर्ब

 करने का सोच भी नहीं सकती ।"

रश्मि अब शून्य में ताकती कुछ सोच रही थी ।

- "तो हम यह आपका आखिरी निर्णय समझे । भरी थाली को ठुकराने से पहले एक बार सोच तो लिया होता ।" पति-पत्नी ने हैरानी से खड़े होते हुए एक  साथ नाराजगी से कहा ।

अतीत की दहलीज के भीतर डूबती-उतराती रश्मि

ने दृढ़तापूर्वक वर्तमान के आंगन में खड़े हो कर  विदाई की मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया - "अपनी भरी थाली को ठोकर से बचाने के प्रयास में ही लगी हूँ ।" 

                        

***

Friday, February 5, 2021

"अधिकार"



छवि को देख गुंजन को यकीन नहीं हुआ कि यह   वही

छवि है जिसकी चंचलता और शरारतों से उन पाँच सखियों

की मंडली गुलजार हो जाया करती

 थी । अगर एक दिन वह न आती तो दूसरे दिन उसकी

जम कर क्लास लगती कि कल वह 

कहाँ थी ? कॉलेज से बी.ए.करने के बाद वह अपने

पिताजी के ट्रांसफर के साथ ही परिवार सहित भोपाल

शिफ्ट हो गई । उदयपुर में सभी से फोन सम्पर्क कुछ

समय रहा लेकिन धीरे-धीरे सभी घर-गृहस्थी में रम गई ।

अल्हड़पन की जगह परिपक्वता ने ले ली ।

वैसे परिपक्वता का संबंध शायद बचपन

के मैत्रीपूर्ण संबंधों से दूरी और खुद की गृहस्थी में रम

जाने से ही है बाकी विचारों की परिपक्वता को समझ

पाना हर किसी के बस की बात कहाँ होती है ?

         बरसों बाद अचानक मॉल में छवि गुंजन को देख कर

पहचान नहीं पाई...कितना बदल गई थी वह..चेहरे पर हरदम

रहने वाली मुस्कुराहट का स्थान उदासी और गंभीरता ने ले

लिया था । पुणे में चार साल से रहती छवि को पहली बार पता

चला कि उसकी प्रिय सखी की ससुराल यहीं पर है । आपस

में पता और  फोन नंबर ले और फिर से मिलने का वचन

लेकर उन्होंने विदा ली । मिलने का मौका भी बहुत जल्दी

ही मिला..एक दिन गुंजन का फोन आया कि पति व घर

के सभी सदस्य शादी में गए हैं वह अस्वस्थ होने के कारण

घर पर ही है क्या वो उससे मिलने आ सकती है ? मोहित

स्कूल से घर आ चुका था

अतः ना का तो सवाल ही नहीं था , पति को फोन पर जाने

की सूचना देकर  छवि के घर जाने के लिए दोनोंं माँ - बेटा

ऑटो स्टैंड की ओर बढ़ गए ।

 घर पर छवि और उसकी बिटिया थीं । जो माँ के

निर्देशानुसार मोहित को स्टडीरूम में ले गई । उसे याद आया

उनके ग्रुप मेंछवि की सगाई बी.ए. फाइनल कम्पलीट होने

से पहले ही हो गई थी , अक्सर वे सभी उसको कितना छेड़ा

करती थी और दूध सी उजली छवि उनके हँसी-मजाक के

चलते गुलाबी हो जाया करती थी । मगर अब वो छवि कहाँ

थी...ये छवि तो अलग ही है मानों मूर्ति खड़ी हो  सामने ।

बस एक ही अन्तर था  वह सजीव

थी । बहुत पूछने की जरूरत ही नही पड़ी..बच्चों के हटते

ही वह उसके कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी । कुछ देर बाद

सहज होने पर उसने बताया--- परम्पराओं में बंधे ससुराल

में सब कुछ होने के साथ-साथ अपनी वर्जनाएं भी हैं ।

साधारण व्यक्तित्व के मालिक पतिदेव को उसका चंचल

स्वभाव पसंद नहीं था , उसकी खिलखिला कर हँसने की

आदत उनकी नजर में फूहड़ता थी तो सबसे घुलमिल कर

बात करने का स्वभाव निहायत ही मूर्खतापूर्ण हरकत ।

मायके में सब की चहेती खूबसूरत सी छवि

का सजना - संवरना भी उन्हें पसंद नहीं... अपने आपको

भूल कर  पति के साँचे में ढलने के प्रयास में  चंचल निर्झर से

स्वभाव वाली छवि संगमरमरी प्रतिमा  ही तो लग रही थी । अचानक गुंजन के रूप में अतीत को सामने देख वह अपने

पर से नियंत्रण खो बैठी और व्यथा आँखों से बह निकली ।

मोहित और अनन्या के वापस आ जाने से दोनोंं की बातों का सिलसिला वहीं थम गया और बातों का केन्द्र बिन्दु बच्चे बन

गए । अनन्या प्यारी सी बच्ची थी जो सेवन्थ स्टैंडर्ड में पढ़

रही थी । अपने घर के वातावरण के अनुसार बच्ची भी गंभीर स्वभाव की थी । सांझ होने से पहले फिर से मिलने का वादा

ले और खुद का ख्याल रखने की हिदायत दे वह मोहित के

साथ घर लौट आई ।

रात में सोने से पहले बच्चे ने होमवर्क पूरा किया कि नहीं  , यह जानने के लिए वह मोहित का बैग चेक कर रही थी तभी

मोहित ने आज जो कुछ नया देखा और सीखा उसके लिए

जिज्ञासु स्वभाव के अनुरूप प्रश्न पूछा  -- मम्मी मूल

अधिकार -- समानता ... स्वतंत्रता .. और...और…,अनन्या

दीदी पढ़ रही थी बुक में..बताओ ना क्या... और क्या होता है ?

मैं तो भूल भी गया..,.गुंजन सोच रही थी -- "अधिकारों-कर्तव्यों

की शिक्षा की पौध छोटी कक्षाओं से आरम्भ होकर  शिक्षा

के उच्चतम स्तर तक पहुँचती हुई  वटवृक्ष सी बनती है….

मगर किताबों के पन्नों से व्यवहारिकता के धरातल पर उन्हें

पाने के लिए कितने सागर..पर्वत और मरूस्थल  लांघने पड़ते

हैं । महिलाओं के लिए नंगे पैरों का यह सफ़र कठिन ही नहीं

दुसाध्य भी है । कितनी हैं ऐसी जो यह सफ़र तय कर लेती हैं

और कितनी ही बीच राह ...हौसला छोड़ देती हैं ।" 

कंधे को हिलाता मोहित अपनी माँ की तंद्रा भंग करने की

कोशिश कर रहा था ।


***