【 चित्र गूगल से साभार】
कई बार कुछ लम्हें स्थायी रूप से बैठ जाते हैं
मन के किसी कोने में । सोचती हूँ मन क्या है - हृदय...
जिसकी धड़कन ही जीवन है । बचपन में पढ़ा था कि हर
मनुष्य का हृदय उसकी बंद मुट्ठी जितना होता है । इस छोटे से
अंग में सागर सी गहराई और आसमान सी असीमता है यह
बात बड़े होने के बाद समझ आई ।
असम का एक मझोला शहर बरपेटा रोड ..वहीं से मुँह
अंधेरे गाड़ी में बैठते सुना कि सुबह तक पहुंच जाएंगे गुवाहाटी । कार की खिड़की से नीम अंधेरे में भागते पेड़ों को देखते
देखते कब नींद आई पता ही नहीं चला । आँख खुली तो
लगा पुल से गुजर रहे हैं --
"उगता सूरज... ब्रह्मपुत्र का सिंदूरी जल और नदी में
बहती छोटी-मझोली जाल लादे नावें और साथ
ही स्टीमर्स की घर्र-घर्र । "
इस अनूठे दृश्य को देख कर मैं मंत्रमुग्ध सी अपलक
अपने लिए निन्तात अजनबी से दृश्य को निहारने में इतनी
मगन हुई कि वह दृश्य कस कर बाँध लाई अपनी
मन मंजूषा में । आज भी यदा-कदा बंद दृग पटलों में
वह दृश्य जीवन्त हो उठता है और महसूस होता है कि
मैं वहीं तो हूँ ब्रह्मपुत्र के पुल पर.. और जैसे ही आँखें
खोलूंगी अगले ही पल वहीं दृश्य साकार हो उठेगा --
भोर लालिमा~
ब्रह्मपुत्र में जाल
फेंकते मांझी।
***
प्रकृति के सुन्दर दृष्य और असीम विस्तार काल और स्थल की सीमाएँ लाँघ कर मन को मुक्त कर देता है.
ReplyDeleteआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार आदरणीया दी 🙏
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-20) को "बदलो जीवन-ढंग"'(चर्चा अंक- 3888) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
चर्चा में प्रविष्टि शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
DeleteबHउत सुंदर रचना, मीना दी।
ReplyDeleteहृदयतल से आभार ज्योति जी !
Deleteबहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार विकास जी ।
Deleteवाह, बहुत बढ़िया लिखा है आपने।
ReplyDeleteकवि दिनकर कुमार ने ब्रह्मपुत्र पर बहुत कुछ लिखा है जैसे "तब नदी का भी हृदय लहूलुहान हो जाता है,जब मांझी कोई शोकगीत गाता है"..! एक और है ब्रह्मपुत्र में सूर्यास्त..
"शुक्लेश्वर मंदिर के बगल में
नार्थ ब्रुक गेट के सामने खड़ा होकर
देख रहा हूं ब्रह्मपुत्र में सूर्यास्त"
बहुत बहुत आभार शिवम् जी । कवि दिनकर कुमार जी का सृजन-संग्रह के बारे में जानकारी साझा करने के लिए आपका हृदयतल से आभार ।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 17 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete"पांच लिंकों का आनन्द" पर रचना साझा करने के लिए सादर आभार रविंद्र सिंह जी।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार सर !
Deleteबहुत सुन्दर हाइबन...यादें खूबसूरत एहसास होती हैं जो हाइबन से पूर्णरूपेण स्पष्ट हुई हैं|
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली..हृदयतल से आभार ऋता शेखर'मधु'जी!
Deleteप्रकृति का सौन्दर्य अनंत से मिला देता है
ReplyDeleteआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से आभार ।
Deleteसजीव दृश्यात्मकता ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !!!
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से आभार शरद जी !
Deleteवाह!बहुत सुंदर सृजन मीना जी ।
ReplyDeleteसृजन को सार्थकता देती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी !
Deleteजीवंत चित्रण मंत्रमुग्ध कर रहा है ।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली.हार्दिक आभार अमृता जी !
Deleteबहुत ही सुंदर सराहनीय व्याख्यान प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।
ReplyDeleteमन को छूती कुछ दृश्य आँखों में रहते है हमेशा के लिए ।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली अनीता! स्नेहिल आभार ।
Deleteब्रह्मपुत्र की विशालता को बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़ में प्रस्फुटित किया है आपने, मानों पाठक भी कहीं न कहीं सहयात्री हो चला हो।
ReplyDeleteआपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । सादर आभार शान्तनु जी ।
Delete"उगता सूरज... ब्रह्मपुत्र का सिंदूरी जल और नदी में
ReplyDeleteबहती छोटी-मझोली जाल लादे नावें और साथ
ही स्टीमर्स की घर्र-घर्र । मनोरम दृश्य..मनोरम वर्णन..।
आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुज ।
Deleteबहुत ही सजीव व मनोरम प्रकृति के चित्र प्रस्तुत किये गए हैं |वाह बहुत सराहनीय लेखन |
ReplyDeleteसृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ.आलोक जी।
Deleteकम-से-कम शब्दों में एक अतीव सुंदर चित्र प्रस्तुत कर दिया है आपने मीना जी । अंतिम शब्द 'हाइकू' विधा की श्रेणी को स्पर्श करते लगते हैं । हार्दिक अभिनंदन आपका ।
ReplyDeleteहाइकु और हाइबन के बारे में कई बार ब्लॉग जगत में पढ़ा है जितेन्द्र जी .हाइकु पहले से भी लिखती रही हूँ । हाइबन के बारे में जाना तो एक अकिंचन प्रयास किया..आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ🙏
Deleteबहुत सुन्दर और अनुपम हाइबन. बधाई.
ReplyDeleteसृजन का मान बढ़ाती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार जेन्नी शबनम जी!
Deleteसजीव प्रकृति चित्रण। आपको बधाई।
ReplyDeleteऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आ.विरेन्द्र जी।
Deleteवाह! बहुत बढ़िया!!!
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु सादर आभार सर.
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