शीतकाल में साइबेरिया से राजस्थान में प्रवासी पक्षी साइबेरियन सारस (डेमोइसेल क्रेन) भरतपुर के केवलादेव पक्षी विहार व अन्य अभयारण्यों में सर्दियों में प्रवास के लिए आते हैं । चुरू जिले के तालछापर अभयारण्य को प्रवासी पक्षी “कुरजां” की शरणस्थली कहा जाता है । राजस्थानी भाषा में साइबेरियन सारस को कुरजां कहा जाता है ।
मरूभूमि की महिलाएँ कुरजां के साथ सहेली
जैसा रिश्ता मानती हैं ।यहाँ के लोक गीतों में विरहिणी स्त्री और कुरजां के बीच आपसी संवाद का रूप गीत में ढल कर भावनाओं का निरूपण होता है जिसमें कुरजां पक्षी संदेश वाहक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करती है । "कुरजां गीत" अपने वियोग पक्ष के श्रृंगार भावों के साथ राजस्थान के लोक जीवन में रचा बसा हैं ।
थार रेगिस्तान के जलवायु की खास विशेषता है कि यहाँ सदियों से देसी परिन्दों के अलावा अनेक प्रजातियों के
प्रवासी पक्षियों का आवागमन बना ही रहता है जो यहाँ
की जैव विविधता को बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाते हैं। लेकिन प्रवासी पक्षियों की प्रजाति में साइबेरियन सारस पर्यटकों के लिए आकर्षण केन्द्र होने के साथ साथ यहाँ के जन मानस का भी अभिन्न अंग है ।सर्दियों में झीलों और तालाबों के
किनारे इन्हें देख कर बरबस ही मुँह से निकल पड़ता है -
झील किनारे ~
तपस में कुरजां
पँख सेकती ।
***
बिल्कुल सही जानकारी दी आपने। बाकी राजस्थान में भरतपुर प्रसिद्ध है ही..
ReplyDeleteसही कहा आपने..भरतपुर के घना पक्षी विहार में इनकी रौनक देखते ही बनती है । बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteवाह! निशब्द हूँ दी सच्च लोक गीतों का ज़िक्र और कुरजां।
ReplyDeleteमन हर्षित हुआ।
बहुत ही सुंदर।
अभिभूत हूँ ऊर्जावान प्रतिक्रिया से...स्नेहिल आभार अनीता।
Deleteशानदार हाइबन बहुत ही सुन्दर जानकारी के साथ।
ReplyDeleteआपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली..हार्दिक आभार सुधा जी!
Deleteसाइबेरियन सारस को राजस्थान में 'कुरजां' कहा जाता है, यह बात मैं राजस्थानी होकर भी अभी तक नहीं जान सका था। इस ज्ञानवर्धन के लिए आपका आभार मीना जी! 'कुरजां' मेरे लिए नया शब्द सम्भवतः इसलिए भी है कि मरू भूमि में पर्यटन का अवसर मुझे केवल एक बार मिल सका है। मनोहारी शब्दों में इस सारस से मिलवाया आपने, एक बार पुनः आभार महोदया!
ReplyDeleteएक बार जिलास्तरीय खेलकूद का आयोजन हमारे विद्यालय में हुआ था जहाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम में गाँव से आई छात्राओं ने कुरजां गीत गाया जो इस हाइबन सृजन का प्रेरणास्रोत बना । हृदय से असीम आभार सर मनोबल संवर्द्धन हेतु 🙏
Deleteकुरजां के बारे जानकर अच्छा लगा। सादर।
ReplyDeleteआपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।हार्दिक आभार विरेन्द्र सिंह जी ।
Deleteस्वयं राजस्थानी होने के साथ-साथ नमक की झील साम्भर लेक (जहाँ प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी बहुतायत में आते रहे हैं) से संबंधित होने के कारण मैं इस लेख से विशेष जुड़ाव अनुभव कर रहा हूँ । कुरजां से संदर्भ से तो राजस्थानी काव्य एवं लोकगीत भरे पड़े हैं । प्रियतम की स्मृति में डूबीं मरूभूमि की एकाकी नारियों की सदा से ही सखी रही है कुरजां । आपके इस सूचनाप्रद एवं मुझे अपनी मातृभूमि का स्मरण करवाने वाले लेख के लिए हार्दिक आभार मीना जी आपका ।
ReplyDeleteकुरजां के संदर्भ में आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से हाइबन को सार्थकता मिली । खुशी हुई मुझे कि हाइबन पढ. कर आपको मातृभूमि की अनमोल स्मृतियाँ याद आईं । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार एवं नववर्ष की शुभकामनाएं।
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