राजस्थान राज्य में शेखावाटी इलाके के झुन्झुनूं जिले से 70 कि॰मी॰ दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसा एक सुरम्य तीर्थ स्थल लोहार्गल है । जिसका शाब्दिक अर्थ - “वह स्थान जहाँ लोहा गल जाए” है ।
भाद्रपद मास में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक प्रत्येक वर्ष लोहार्गल के पहाड़ों में हज़ारों नर-नारी 24 कोस की पैदल परिक्रमा का आरम्भ सूर्य कुंड में स्नान कर आरम्भ करते हैं । पहाड़ी क्षेत्र और हरियाली से भरपूर औषधीय गुणों से युक्त पेड़-पौधों से आती शुद्ध-ताजा हवा और ट्रैकिंग का यहाँ अपना ही आनंद है।
भूमि भी प्रकृति के सानिध्य के मोह में अपने रिश्तेदारों के साथ यहाँ चली आई है यह सोच कर कि वह कुछ समय रूक कर शाम तक घर लौट आएगी ।यहाँ के मंदिरों के शिलालेखों को पढ़ते हुए भूमि की तन्द्रा तब टूटी जब उसके
साथ आया समूह “भूमि .., भूमि ” आवाज़ देकर उसे बुला रहा
था ।
“चल स्नान करने ।” किसी ने यह कहते हुए उसका हाथ खींचते उसे चलने को कहा तो उसने वह स्थान देखा
जहाँ झीलनुमा सरोवर में असंख्य स्त्री-पुरूष डुबकियाँ लगा रहे थे बहुत से लोग दर्शक बन आनंद विभोर थे और सुरक्षा के लिए
तैनात महिला - पुरूष पुलिसकर्मी मुस्तैदी से अपने ड्यूटी पर
तैनात थे ।
- “मुझे नहीं खानी कोई डुबकी-वुबकी ..,भूमि ने दृढ़ता से जवाब दिया ।”
- “यहाँ आकर भला बिना स्नान के कोई जाता है सब पाप गल जाते हैं तीर्थ स्नान से ।पाण्डवों की बेड़ियाँ भी गल गई थी।पहाड़ों में गोमुख से निकलता पानी बड़ा निर्मल और पवित्र है ।”
चौबीस कोसी परिक्रमा के लिए सिर पर थैला धरे एक महिला श्रद्धालु ने भूमि को समझाया ।
“ मगर हम इस निर्मल और पावन जल को पी कर पावन क्यों
नहीं होते । पहाड़ से निकलता निर्मल और शुद्ध जल पीने के लिए
बहुत अच्छा है ।” - उसने अपनी बात रखने की कोशिश की ।
आपसी विमर्श के दौरान किसी सुरक्षाकर्मी ने
यह सोच कर की भीड़ में किसी का कुछ खो तो नहीं गया
इसलिए हस्तक्षेप करते हुए पूछा - “क्या हो रहा है यहाँ…,
कोई परेशानी ?”
“ कुछ नहीं जी .., ज्ञान बँट रहा है ।” -
खड़े हुए समूह में से बेजार भाव से किसी की अभिव्यक्ति
अभिव्यक्त हुई ।
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