"हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं"- आगंतुक ने
ट्रे में खाली गिलास रखते हुए अपनी पत्नी की तरफ देखते
हुए रश्मि से कहा ।
"दरअसल बाबूजी चाहते थे समीर को भी जायदाद में
हिस्सा मिले ।" पत्नी ने पति की बात को आगे बढ़ाया।
- "समीर की बारहवीं की परीक्षा है इस साल" विनम्र लहज़े में रश्मि ने ट्रे कोने में रखी मेज पर रखते हुए गंभीरता से जवाब
दिया ।
- "आपको पेपर-वर्क के लिए समीर को हमारे साथ तो भेजना
ही पड़ेगा।" रश्मि की बात को नज़रअन्दाज़ करते हुए
आगंतुक ने बातों की कड़ी फिर से जोड़ने का प्रयास किया ।
- "बाबूजी की अंतिम इच्छा का मान रखने के लिए उन्होंने
इनके मनाने पर बड़ी मुश्किल से एक प्लॉट हिस्से में देने के
लिए हाँ की है ।" पत्नी ने मानो अहसान जताते हुए फिर
से कहा ।
- "माफ कीजियेगा ... इस वर्ष मैं उसे डिस्टर्ब
करने का सोच भी नहीं सकती ।"
रश्मि अब शून्य में ताकती कुछ सोच रही थी ।
- "तो हम यह आपका आखिरी निर्णय समझे । भरी थाली को ठुकराने से पहले एक बार सोच तो लिया होता ।" पति-पत्नी ने हैरानी से खड़े होते हुए एक साथ नाराजगी से कहा ।
अतीत की दहलीज के भीतर डूबती-उतराती रश्मि
ने दृढ़तापूर्वक वर्तमान के आंगन में खड़े हो कर विदाई की मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया - "अपनी भरी थाली को ठोकर से बचाने के प्रयास में ही लगी हूँ ।"
***
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-2-21) को 'धारयति इति धर्मः'- (चर्चा अंक- 3986) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार कामिनी जी चर्चा मंच पर सृजन को शामिल करने हेतु।
Deleteसार्थक संदेश देती सुन्दर लघुकथा..
ReplyDeleteजिज्ञासा जी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार ।
ReplyDeleteअतीत से सीख लेकर रश्मि ने अपनी भरी थाली को बचाने का प्रयास किया। बढ़िया लघु कथा के लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार वीरेंद्र जी!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
Deleteइस लघुकथा का मर्म समझने के निमित्त केवल शब्दों को ही नहीं, शब्दों के मध्य के रिक्त स्थलों को भी पढ़ना आवश्यक है । गागर में सागर सरीखी रचना हेतु अभिनंदन आपका ।
ReplyDeleteअनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार जितेन्द्र जी!
Delete"अपनी भरी थाली को ठोकर से बचाने के प्रयास में ही लगी हूँ "... निःशब्द हूं... इस हृदयग्राही कहानी के लिए कितनी भी प्रशंसा की जाए कम ही होगी।
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित,
स्नेहिल अभिवादन
डॉ. वर्षा सिंह
अभिभूत हूँ वर्षा जी 🙏 हृदय से असीम आभार.. सृजन सार्थक हुआ । सस्नेह अभिवादन 🌹🙏🌹
Deleteबहुत सराहनीय लघु रचना |कम शब्द व् संकेतों में बहुत कुछ अभिव्यक्त करने वाली कहानी |शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आलोक सर!
Deleteआप से निवेदन है,कि हमारी कविता भी एक बार देख लीजिए और अपनी राय व्यक्त करने का कष्ट कीजिए आप की अति कृपया होगी
Deleteआप का ब्लॉग देखा .., आप अच्छा लिखती हैं । ढेर सारी शुभकामनाएं आपको 💐
Deleteनिशब्द सराहना से परे दिल में घरकर गई।
ReplyDeleteअपनी भरी थाली को ठोकर से बचाने के प्रयास में ही लगी हूँ ।"..बहुत सुंदर।
अभिभूत हूँ आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से...हृदय से असीम स्नेहिल आभार अनीता जी!
Deleteस्वाभिमान, आत्माभिमान, दुरंदेशी और अपना है जो बचाके रख सके , सब कुछ इतना सुंदरता से कम शब्दों में लिख दिया सच मायने में हर कसौटी पर खरी उतरती सार्थक लघुकथा।
ReplyDeleteसाधुवाद मीना जी।
सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला और मेरी लेखनी को ऊर्जा । हृदय की गहराईयों से स्नेहिल आभार कुसुम जी ।
Deleteनि:शब्द करती रचना।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदय से असीम आभार सधु चन्द्र जी !
Deleteबहुत सुंदर प्रिय मीना जी! एक स्वाभिमान से बढ़कर कोई दौलत नहीं दुनिया में। रश्मी की मेधा सराहनीय है आपका सृजन कौशल भी। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏
ReplyDeleteसारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ..स्नेहिल आभार प्रिय रेणु जी 🙏🙏
Deleteअतीत की दहलीज के भीतर डूबती-उतराती रश्मि
ReplyDeleteने दृढ़तापूर्वक वर्तमान के आंगन में खड़े हो कर विदाई की मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया - "अपनी भरी थाली को ठोकर से बचाने के प्रयास में ही लगी हूँ ।"
बहुत खूब
ये तो छूट ही गई थी, अच्छा हुआ आ गई देख लिया और पढ़ ली, कुसुम जी ने सही कहा, मै भी उनकी बातों से सहमत हूँ, साधन से कही अधिक सम्मान का महत्व होता है। हमेशा की तरह अति उत्तम,
सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ..स्नेहिल आभार
Deleteज्योति जी ।