मोहिनी चाची कहाँ गई ? - बंद हवेली के आगे खड़े
ढोर -डंगरों को देखते हुए उसने साथ चलती लीना से पूछा
लेकिन जवाब दिया उसकी भाभी ने - "चन्दा के कारण मुँह
दिखाने लायक नहीं रही..शादी के बाद लापता हो गई
लड़की । उसकी ससुराल वाले आए थे पुलिस लेकर उसे ढूंढ़ने..बड़ी बदनामी हुई , एक दिन पूरा परिवार बिना किसी
को बताए चला गया कहीं ।"
करुणा चार वर्ष के बाद आई थी अपने कस्बे में । बचपन की साथी कभी छुप्पम-छुपाई तो कभी गुड्डे-गुड़िया की शादी
करती शर्मीली सी लड़़की की छवि अनायास ही उसकी आँखों
के आगे साकार हो उठी । भोली-भाली चन्दा की इतनी छोटी
उम्र में शादी और उसके बाद लापता होना उसको बैचेन करने वाला था । उसके परिवार और उसके बारे में जान कर दुखी हुई
करूणा । रह रह कर स्मृतियाँ कौंधती रही उसके मन में ।
दोपहर का समय .., लाइट की कटौती और लू के थपेड़े ...,
उस पर इनवर्टर का बंद होना, बड़ा तकलीफदेह था । घर के सारे
सदस्य हवा के फेर में इधर -उधर दुबके पड़े थे कि बाहर से शोर
की आवाज कानों में पड़ी । पता चला मोहिनी चाची के परिवार
से पूछताछ के लिए पुलिस आई है । करूणा ने खड़े हो कर बेसब्री से पूछा-"चन्दा मिल गई क्या ? तभी किसी ने जवाब दिया- " पता नहीं… पुलिसकर्मी कह रहा है - चन्दा की ससुराल में घर का पुनर्निर्माण हो रहा है …, आंगन की खुदाई में हड्डियाँ मिली है।"
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"यूँ ही लापता हो जाती है बेटियाँ" बेहद मार्मिक एव हृदयस्पर्शी कहानी,सादर नमन मीना जी
ReplyDeleteआपकी चिंतनपरक हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । सस्नेह आभार सहित नमन कामिनी जी!
Deleteओह!! हृदय विदीर्ण कर गई ये मार्मिक लघुकथा प्रिय मीना जी। लड़कियों के दुस्साहस को जमाने वाले माफ़ करते हैं ना परिवार वाले। स्तब्ध कर गई रचना!!!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार प्रिय रेणु जी !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
Deleteमन के पायदान पर मर्म बिखेरती सार्थक अभिव्यक्ति,संवेदन हीनता समाजिक कलह के रुप में फूट रही है।...माफ़ी चाहती हूँ मीना दी लघुकथा थोड़ी सी भटक गई क्षणिक दृश्य से थोड़ा दूर,मन के भावों को एक ही समय में समेटने का प्रयास होता तो और बेहतरीन होती समय विभाजन एक दोष है सायद।
ReplyDeleteमाफ़ी चाहती हूँ दिल नहीं दुखना चाहती थी।
सादर
लघु कथा के मानकों पर सृजनात्मकता की कसौटी की गहराइयों को मैं नहीं जानती..सृजन का मर्म यदि दिल तक पहुँचता है तो ठीक है । बाकी आंकड़ों के मामले में अनाड़ी हूँ जो मन में उपजा उसे शब्दों में गूँथ दिया । हृदय से आभार जानकारी साझा करने हेतु । सस्नेह ।
Deleteओह!!!
ReplyDeleteबहुत ही हृदयविदारक घटना पर लिखी सामयिक लघुकथा...।
बहू को मारकर दफना देना और भाग गयी कहकर मायके वालों को बदनाम करना।
हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी।
Deleteकरूण गाथा , हृदय विदारक घटना ,सच का भयानक रूप लिए है लघु कथा
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ज्योति जी ।
Deleteबहुत मार्मिक लघु कथा
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर!
Deleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteसूचना के लिए बहुत बहुत आभार आपका।
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