Copyright

Copyright © 2024 "आहान"(https://aahan29.blogspot.com) .All rights reserved.

Wednesday, September 2, 2020

क्षमा बड़न को चाहिए...

सुबह और शाम खुली हवा में घूमना बचपन से ही बहुत प्रिय रहा है मुझे । इसका कारण शायद पहले खुले आंगन‎ और खुली‎ छत वाले घर में रहना रहा होगा । शहर में आ कर अपना यह शौक  मैं‎ अपने आवासीय कैंपस के 'पाथ वे' में घूम‎ कर पूरा कर लेती हूँ । आज कल वैश्विक महामारी के चलते घूमना बंद है मगर कमरे की खिड़की से दिखते 'पाथ वे' को देखते समय एक दिन की घटना का स्मरण हो आता है । कैंपस में बने बॉस्केटबॉल ,फुटबॉल या टेबल टेनिस कोर्ट में शाम के समय अक्सर‎ बच्चों की टोलियां मिल जाती थी क्योंकि शाम के बाद तो वहाँ उनके अभिभावकों का आधिपत्य होता था अतः शाम का समय उनके शोर-शराबे से गुलज़ार रहता । उस दिन बच्चों‎ के ग्रुप के बीच एक औरत खड़ी मोबाइल पर कुछ करती दिखाई‎ दी, दूसरे राउंड में भी उसे वहीं‎ खड़े देखकर कुछ अजीब‎ सा लगा कि क्यों बच्चों‎ का रास्ता‎ रोके खड़ी है दूर‎ खड़ी होकर भी बात कर ही सकती है मगर कैंपस में रहने वालों के लिए सार्वजनिक‎ जगह जो ठहरी और उस पर किशोरवय  के बच्चे खेल रहे हो तो किसी का भी उस जगह का उपयोग करने का समान हक है यहाँ‎ वर्जना अस्वीकार्य सी है । अगले राउंड तक माहौल अन्त्याक्षरी जैसा हो गया बच्चों‎ का झुण्ड एक तरफ और महिला दूसरी तरफ मगर जो कानों ने सुना वह अप्रत्याशित था , बच्चे‎ ---  “But aunty , we are  seniors .और महिला बराबर टक्कर दे रही ही थी----  O…, excellent . listen to me you are also kids. गर्मा गर्म बहस सुन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची  कि महिला का बेटा जो उन बच्चों‎ से बेहद छोटा था बास्केट बॉल खेलना चाह रहा था  जिसके चलते  बड़े बच्चों‎ को परेशानी हो रही थी‎ और समस्या यह थी कि दोनों पक्षों‎ में से  कोई भी पीछे हटने को कोई तैयार नही था । बच्चों का महिला से इस तरह बहस करना सही भी नहीं लग रहा था ।
 घर की तरफ लौटती मैं सोच रही थी कि अधिकार भाव के लिए सजगता कहाँ अधिक‎ थी । Morality के मानदण्ड पर तो दोनों पक्ष ही गलत थे ऐसे में चलते चलते रहीम जी का दोहा ----छमा बड़न को चाहिए ,छोटन को उत्पात …याद आ गया और उसी के साथ बच्चों‎ का पलड़ा भारी हो गया ।

XXXXX

12 comments:

  1. जी रोचक संस्मरण। कई बार बच्चों को साथ खिलाने में दिक्कत ये होती है कि ना चाहते हुए भी उनके चोट लगने का खतरा रहता है। इसलिए थोड़ी बड़ी उम्र के लड़के खिलाने से झिझकते हैं क्योंकि अगर लग वग गयी तो फिर बच्चों के माँ बाप से डांट अलग सुननी पडती है। फिर कई बार बच्चे के होने से एक तरह की असहजता रहती है। वो खुलकर आपस में बात नहीं कर सकते। इस कारण भी दिक्कत होती है। शायद इन्हीं कुछ वजुहातों के चलते वो मना कर रहे होंगे। हम लोग तो इसलिए करते थे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही विकास जी ! डर शायद सभी को यहीं होता है और बच्चों की मम्मियाँ भी समय चाहे कब का ही हो एक ही तरह से ही झगड़ती हैं ।

      Delete
  2. सही कहा क्षमा बड़न को चाहिए पर आजकल क्षमा न कोई देना जानता है न लेना...।क्षमा का मतलब ही बदल गया है यदि कोई क्षमा करते हुए चुप है तो दूसरा उसकी चुप्पी को डर समझता है...।और ऐसे ही क्षमा माँगने वाले को भी डरपोक कहलाने का डर है इसी वजह से सब खींचकर बड़े बन रहे हैं अब छोटा या बड़ा कोई है ही नहीं।
    बहुत ही सुन्दर सार्थक संस्मरण।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वर्तमान दौर के कटु सत्य को दर्शाती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।

      Delete
  3. " अधिकार भाव के लिए सजगता कहाँ अधिक‎ थी । Morality के मानदण्ड पर तो दोनों पक्ष ही गलत थे ऐसे में चलते चलते रहीम जी का दोहा ----छमा बड़न को चाहिए ,छोटन को उत्पात"
    बिलकुल सही कहा आपने,अक्सर ये देखने में आता है कि-बच्चे तो बच्चे बड़े भी अपनी शालीनता भूल जाते हैं और उस पल हम जैसे ये सोचते रह जाते हैं कि-समझाये भी तो किसे। बहुत ही सुंदर,एक छोटी सी आपबीती से कितनी बड़ी बात कह दी आपने। सादर नमन आपको मीना जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन को सार्थकता देती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को मान मिला कामिनी जी! सादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार ।

      Delete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (११-०९-२०२०) को '' 'प्रेम ' (चर्चा अंक-३८२२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने हेतु सस्नेह आभार अनीता!

      Delete
  5. यही सब बदला है समय के साथ स्वीकार करना ही पड़ेगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य वचन सर! समय के साथ यह सब स्वीकार करना ही पड़ेगा।बहुत बहुत आभार आपकी अमूल्य सीख भरी प्रतिक्रिया हेतु ।

      Delete
  6. बहुत ही रोचक संस्मरण।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर!

      Delete