कल-कल बहते झरने सी हँसी थी उसकी । भूमिका अक्सर स्कूल के गेट में घुसती तो वो हँस कर गुड मार्निंग कह अपनी हथेली भूमिका की तरफ फैला देती । स्कूल में किसने बनाया होगा यह नियम पता नहीं लेकिन ग्यारहवीं कक्षा की लड़कियां नियम से स्कूल आने वाली शिक्षिकाओं की स्कूटी या साइकिल गेट से लेकर साइकिल स्टैंड पर खड़ी कर के आती ..लड़कियों की ड्रेस साफ-सुथरी है ना..लेट आने वाली लड़कियों को लाइन में खड़ा करना सब उन्हीं के जिम्मे होता ।अगले वर्ष ड्यूटी अगली ग्यारहवीं की होती ।
भूमिका के भुलक्कड़ स्वभाव में था दिनांक भूल जाना..वह चॉक उठा कर बोर्ड की तरफ मुड़ते हुए पूछती - डेट ? उसकी क्लास में से शरारती सुर उठता ..हमारे रिवीजन.. होमवर्क की डेट कभी नहीं भूलते आप ? भूमिका मुस्कुरा भर देती । एक दिन वह भूमिका की क्लासमेट नेहा के साथ सकुचाई सी उसके घर के गेट पर थी । नेहा से बातचीत में पता चला वो उसकी भांजी
है । राजनीति विज्ञान में मदद चाहिए उसे यदि वह पढ़ा सके … अपने सिद्धांतों के कारण भूमिका ने उसे ट्यूशन की हामी तो नही भरी लेकिन वादा किया कि वो जब भी परेशानी हो स्कूल के अतिरिक्त घर आकर पढ़ सकती
है । अपने मिलनसार स्वभाव के कारण धीरे -धीरे वह भूमिका के परिवार के सदस्य जैसी बन गई । सबके जन्मदिन पर हंगामा मचाने वाली लड़की का जन्मदिन अप्रैल में आता है उसने ठोक-पीट कर भूमिका को रटा दिया था । जन्मदिन वाले दिन उसने आँखों में अनोखी चमक के साथ भूमिका मैम से स्कूटी की चाबी ली..स्टैंड पर खड़ी की । क्लास में भी चॉक-डस्टर ,बुक निकाल कर मेज़ पर रखी ।भुलक्कड़ मैम को 'डेट" भी बताई ।
चार-पाँच दिन के अन्तराल पर वह घर आई तो उदास सी थी । उदासी का कारण पूछने पर जवाब
भूमिका की मम्मी ने दिया - 'तूने उसको बर्थडे तक विश नहीं किया और अब पूछ रही है क्या हुआ ?' भूमिका ने
सिर पकड़ लिया अपना..पता नहीं अंकों के साथ उसका
क्या आकड़ा था ..हर बात याद रखने वाली भूमिका कभी भी डेट , फोन नम्बर याद नहीं रख पाती थी । भूमिका को सिर पकड़े देख उसने मासूमियत से हँसते हुए कहा - 'कोई बात नहीं आंटी जी हम इनको डेट याद रखना भी सीखा देंगे ।'
कॉलेज में जाने के बाद भी उसने घर आना नहीं छोड़ा यदि कुछ दिन नहीं आती तो वह समझ जाती अपने घर गई होगी पेरेंट्स के पास । एक बार की यूं ही गई वह नहीं लौटी ...नेहा से पता चला रोड एक्सीडेंट में उसने 5सितम्बर को आखिरी सांस ली ।
हर 5 सितम्बर को भूमिका के कानों में एक आवाज़ गूंजती है - 'कोई बात नहीं आंटी जी हम इनको डेट याद रखना भी सीखा देंगे ।'
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सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-9 -2020 ) को "ॐ भूर्भुवः स्वः" (चर्चा अंक 3818) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार कामिनी जी ।
ReplyDeleteबेहद मार्मिक संस्मरण मीना जी,कभी-कभी ऐसी अनहोनी हो जाती है जिसे मन ना तो स्वीकार कर पाता है ना भूल पाता है,सादर नमन आपको
ReplyDeleteहृदयतल से आभार कामिनी जी ! सादर अभिवादन !
Deleteबहुत ही सुंदर मन को छूती अभिव्यक्ति।कुछ तारीख़ दिमाग़ में नहीं दिल में उतर जाती है और छोड़ देती हैं अमिट छाप। सराहना से परे दी आपका सृजन।
ReplyDeleteसादर
हृदयतल से आभार अनुजा ! सस्नेह..
Deleteबेहद मार्मिक यादें.. सुंदर लेखन
ReplyDeleteहृदयतल से असीम आभार दी 🙏🙏
Deleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं 💐
कृपया मेरे इस ब्लॉग पर भी पधारें 🙏
https://vichar-varsha.blogspot.com/2020/09/15.html?m=1
आभार वर्षा जी 🙏 आपके ब्लॉग पर अवश्य उपस्थिति
Deleteहोगी 💐🙏
अपनी प्रिय छात्रा को शिक्षक दिवस के ही दिन खोना... बहुत ही मर्मस्पर्शी संस्मरणात्मक कहानी....।
ReplyDeleteव्यथा का अनुभव करती प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी ।
Deleteमार्मिक प्रस्तुति
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत कुमार गौरव अजीतेन्दु जी एवं सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ।
Deleteमार्मिक....
ReplyDeleteहार्दिक आभार विकास जी ।
Deleteओह !
ReplyDelete🙏🙏
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