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Friday, October 2, 2020

"वीनस"

 गर्मियों में खुली छत पर रात में सोने से पहले खुले स्वच्छ  आसमान में झिलमिल करते तारों की चमक को निहारना, आकाश गंगा की आकृति की कल्पना करना और ध्रुव तारे को देखना आदत सी रही है मेरी । इस आदत को पंख मिले "सौर परिवार"  का पाठ पढ़ने के बाद .. जहाँ ग्रहों और ब्रह्मांड के साथ आकाश गंगाओं का परिचय था।

हर चमकते तारे को मन मुताबिक ग्रह मान लेना और आकाश गंगा के साथ  ब्लैक होल की काल्पनिक तस्वीर उस जगह बना लेना जहाँ तारे दिखाई ना दे प्रिय शगल था मेरा । कई बार ना चाहते हुए भी घर के सदस्यों की टोली मेरी चर्चा में शामिल हो जाती । तारों के स्वप्निल संसार में खोये- खोये कब नींद आ जाती पता ही नहीं चलता । कभी  मंदिरों की आरती के साथ आँख खुलती तो दिन के आरम्भ से पूर्व विदा लेते तारों में भोर का तारा टिमटिम की चमक के साथ मानों विदाई का संकेत देता कि - उठ जाओ..सांझ को फिर आऊंगा दिया-बाती की बेला के साथ ।

बचपन में खेल-कूद और शरारतों के समय सौर परिवार के एक सदस्य से अनजाने में दोस्ती हो गई और इसी के साथ दिनचर्या बन गई सांध्य तारे और भोर के तारे को देखने की । बाद में यह आदत..विशेष कर सुबह जल्दी उठने की परीक्षाओं में बड़ी मददगार साबित हुई ।

यह ग्रह सूर्य के उल्टे चक्कर लगाता है । अत्यधिक चमकीला होने के कारण रोम वासियों ने इसका नाम  वहाँ की सुंदरता

और प्रेम की देवी के नाम पर वीनस 【Venus】 रखा ।

सुबह उठते ही आसमान को निहारते भोर का तारा दिख

जाए तो दिन बन जाता था मेरा ।

 व्यस्त दिनचर्या के बाद भी आसमान में ऊषाकाल और सांध्य

बेला में एक खोजी दृष्टि डालना मेरे स्वभाव का हिस्सा रही हैं। 

समय के साथ-साथ छोटे शहर बड़े शहरों में तब्दील हो रहे हैं जहाँ आसमान में शाम को तारों को देखने के लिए खुली छतों और आंगन की जरूरत 

महसूस हो रही है । खुली छतें और आंगन बढ़ती जरूरतों के साथ सिमटने लगे हैं । बड़े शहरों की तो बात ही क्या.. यहाँ गोधूलि और रात्रिबेला में इमारतों से तारे जमीं पर देखने का भान होता है । आज भी कभी बालकनी तो कभी कमरे खिड़की से मन और आँखें भोर के तारे और सांध्य तारे को  को ढूंढती हैं। समय के बदलते रूख के साथ बाल सखा भी व्यस्त हो गया शायद या फिर मेरे जैसे ही किसी और बाल सखा की दुनियां में रम गया । जो मेरी ही तरह भोर और सांझ में उसकी प्रतीक्षा करता होगा ।


✴️

22 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. चर्चामंच पर स्थान देने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रिया अनीता ।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार शिवम् जी.

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  4. सुंदर यादें।

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    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मीना जी.

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  5. Replies
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर.

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  6. Replies
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर.

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  7. बाल मन का वो कोना आज भी अटका है वहीं संवेदना लिए वही जिज्ञासा लिए, बस समय बदल गया ।
    बहुत सुंदर मनोभाव कोमल प्यारे और यथार्थ।

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    1. सृजन का मान बढ़ाती स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी !

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति 👌👌

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सखी!

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  9. वाह... भोर के तारे से लेकर... प्रातः - सायं और रात्रि से होती हुई पुनः भोर के तारे तक पहुँचती रचना... अपने बाल-सखा की तलाश में... तारे के इस पार और उस पार का अदृश्य संपर्क... भावनाओं के जरिये - कल्पनाओं के जरिये... बहुत सुन्दर लगा पूरा ताना बाना... हार्दिक बधाई स्वीकारें !!!

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  10. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत विशाल चर्चित जी 🙏🙏आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को मान व सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार 🙏🙏

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  11. बचपन के समय में नानी के घर छत पर सोते समय की मेरी मधुरिम स्मृति ताज़ा कर दी मीना जी आपने! आह, कितना सुखद व सुकून भरा होता था नींद नहीं आने तक आकाश में छितराये तारों को निहारने का अहसास! अब हम मच्छरों के आतंक के मारे छत पर तो नहीं सोते, किन्तु यदा-कदा साँझ ढलने पर घर की छत पर जा कर तारों के संसार में विचरण करने का लोभ-संवरण नहीं कर पाता हूँ। आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति ने मन हर लिया... हार्दिक बधाई इस आलेख के लिए आ. मीना जी!

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    1. आपकी प्रतिक्रिया बहुत अनमोल है मेरे लिए । आपको आपके बचपन की स्मृतियों की याद दिला कर लेखनी धन्य हुई । हार्दिक आभार सर🙏🙏

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