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Wednesday, October 21, 2020

"माटी की गंध"

                         

जब सूरज की तपिश तेज होती है और सूखी मिट्टी पर 

बारिश की बूँदें पहली बार टकराती है तो मिट्टी‎ के वजूद

से उठती गंध मुझे बड़ी भली लगती है। आजकल जमाना फ्रिज में रखी वाटर बॉटल्स वाला है मगर मेरे बचपन में मिट्टी‎ की सुराहियों और मटकों वाला था। मुझे याद है मैं सदा नया मटका धोने की जिद्द करती और इसी बहाने उस भीनी महक को महसूस करती  । माँ की आवाज से ही मेरी तन्द्रा टूटती । बारिश शुरु होते ही उस खुशबू का आकर्षण‎ स्कूल के कड़े अनुशासन में भी

मुझे नटखट बना देता । अध्यापिका की अनुपस्थिति में  मैं खिड़की‎ या कक्षा‎ कक्ष‎ के दरवाजे‎ तक आ कर अपनी हथेलियों को फैला कर एक लंबी गहरी सांस में उस पल को महसूस करने की कोशिश करती तो घर पर माँ के लगाए तुलसी के पौधे के समीप जाकर खड़ी हो जाती जो आंगन के बीच में था । 

 एक दिन यूं ही कुछ‎ पढ़ते‎ पढ़ते पंजाब‎ की प्रसिद्ध‎ लोक कथा‎ ‘सोनी-महिवाल’ का प्रसंग पढ़ने को मिल गया इस कहानी से अनजान तो नही थी मगर उत्सुकतावश पढ़ने बैठ गई । कहानी का सार कुछ इस तरह था --

                          “18 वीं शताब्दी‎ में चिनाब नदी के किनारे एक कुम्भकार के घर सुन्दर‎ सी लड़की का 

जन्म हुआ जिसका नाम “सोहनी” था । पिता के बनाए‎ मिट्टी‎ के बर्तनों पर वह सुन्दर‎  सुन्दर‎ आकृतियाँ उकेरती । पिता-पुत्री के बनाए‎ मिट्टी‎ की बर्तन दूर  दूर‎ तक लोकप्रिय‎ थे ।

 उस समय चिनाब नदी से अरब देशों‎  और उत्तर भारत के मध्य व्यापार हुआ‎ करता था। बुखारा (उजबेकिस्तान) के अमीर व्यापारी का बेटा  व्यापार के सिलसिले में चिनाब के रास्ते‎ उस गाँव से होकर आया और सोहनी को देख मन्त्रमुग्ध हो उसी गाँव में टिक गया । आजीविका यापन के लिए उसी गाँव‎ की भैंसों को चराने का काम करने से वह महिवाल के नाम से जाना जाने लगा । 

सामाजिक‎ वर्जनाओं के चलते सोहनी मिट्टी‎ के घड़े 

की सहायता से चिनाब पार कर महिवाल से छिप

 कर मिलने जाती । राज उजागर होने पर उसी की

 रिश्तेदार ने मिट्टी‎ के पक्के घड़े को कच्चे घड़े मे

 बदल दिया । चिनाब की धारा के आगे कच्ची मिट्टी‎ 

के घड़े की क्या बिसात ?  घड़ा गल गया और  पानी में डूबती सोहनी को बचाते हुए‎ महिवाल भी जलमग्न हो गया ।"

       कभी  कभी‎ लगता है माटी की देह में  कहीं सोहनी 

 तो कहीं  किसी और अनाम तरुणी का प्यार‎ बसा

 है  । ना जाने कितनी ही अनदेखी और अनजान कहानियों‎ को अपने आप में समेटे है यह।  तभी‎ तो मिट्टी‎ पानी की पहली बूँद के सम्पर्क‎ में आते ही सौंधी सी गमक से महका देती है सारे संसार‎ को ।

12 comments:

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    1. बहुत बहुत आभार शिवम् जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार सधु चन्द्र जी ।

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  3. सोहनी और अनेकों अनाम तरुणियों के प्रेम की महक से ही महकती ही ये माटी.....।
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर ....लाजवाब सृजन।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२६-१०-२०२०) को 'मंसूर कबीर सरीखे सब सूली पे चढ़ाए जाते हैं' (चर्चा अंक- ३८६६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  5. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सस्नेह आभार प्रिय अनीता ।

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  6. उफ!!! क‍ितनी गहराई से माटी की सौंधी गंध में प्रेम की गंध को प‍िरो द‍िया मीना जी आपने...बहुत खूब ल‍िखा प्रेम का ये शाश्वत च‍ित्र

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    1. आपके अनमोल प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । हार्दिक आभार अलकनंदा जी ।

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  7. मुग्ध करती रचना, आँखों के सामने जैसे शोभा सिंह जी की मशहूर पेंटिंग सोहनी और महिवाल को उकेरे चली जाती है - - नमन सह।

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    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने सृजन को मान भरी सार्थकता प्रदान की । आपका हार्दिक स्वागत व आभार सर! सादर नमस्कार🙏

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