किसी बात के चलते किसी घनिष्ठ ने कभी कहा कि -“एक वक़्त के बाद लोग जम नहीं पाते किसी जगह..।” और मैंने हँसते हुए प्रतिवाद किया था - “अच्छा !! बरगद ,पीपल , नीम नहीं रहते ..,मनी प्लांट हो जाते हैं कहीं भी लगा दो .., बस लग ही जाते हैं ।”
शायद उन्हें मेरी बात पसन्द नहीं आई और चुप्पी साध ली । मौन अंतराल को भरने के लिए हमारे बीच कोई दूसरा विषय छिड़ गया और इसी के साथ बातों का सिलसिला भी कहीं और मोड़ पर मुड़ गया । मगर उनका वाक्य और अपना संवाद रह-रह कर कानों में गूंजता है जब भी मन भटकता है ।
रमता जोगी जैसा स्वभाव बहुत काम का है रोज़ी-रोटी की ख़ातिर यहाँ-वहाँ प्रवास कर रहे लोगों के लिए या फिर बन जाता है आवश्यकतानुसार । इसीलिए कहा जाता रहा होगा “आवश्यकता आविष्कार की जननी है” यहाँ रिसर्च जैसी कोई बात नहीं बस मानव व्यवहार की बात है ।उसमें भी समयानुसार परिवर्तन आम है । परिस्थितियों के अनुसार पानी की तरह ढल जाता है आदमी भी ।
आजकल मेरा मन असीम से ससीम के बीच चक्कर घिन्नी में बँधे लट्टू सा घूमता रहता है । कठिन समय के भंवर से बाहर निकलने के लिए कई बार ढलती साँझ में नीड़ में लौटते परिन्दों सा वह अपनी जड़ों को ढूँढता है तो कई बार लौट आता उसी थान के खूँटें पर जहाँ ढलती साँझ और नीड़ के परिन्दों का अस्तित्व कल्पनामात्र है । जीवन का यही शाश्वत सत्य हम अक्सर जीते हैं । जिसे न छोड़ते बन पाता है और न पकड़ते बन पाता है ।
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सुंदर...सही कहा कि आवश्यकतानुसार कई लोगों को ऐसा रमता जोगी स्वभाव बन जाता है। वैसे कई लोगों का जन्म से भी ऐसा स्वभाव रहता है लेकिन शायद वो कम ही मात्रा में होंगे।
ReplyDeleteसृजन को सार्थक करती टिप्पणी हेतु आभारी हूँ विकास जी । हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद ।
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है 🙏
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