बारिश में स्कूल से घरों की तरफ लौटती छात्राओं की भीड़ में वे दोनों भी हाथों में जूते लटकाए मस्ती से सड़क पर पानी में
छप-छप करती चली जा रही थीं । खुश थी दोनों.., उनके पास सीमित किताबें और एक-दो कॉपियाँ पॉलीथिन के
अंदर पैक्ड थीं वे नहीं भीगेंगी यही सोच कर । अचानक एक
ने टूटी दीवार वाले घर के आंगन से जीर्ण कमरों की तरफ देखते हुए कहा
- 'अब बारिश रुक जानी चाहिए ।'
- 'क्यों तुझे अच्छा नहीं लग रहा..,बारिश में भीगना और रेनी-डेज़ इंजॉय करना।' मुस्कुराते
हुए पैरों से पानी उछालते हुए दूसरी ने कहा ।
-'अगर बारिश नहीं रूकी तो बाढ़ आ जाएगी । देख! घर गिरने
शुरू हो रहे हैं ।' पहली ने चिंतापूर्ण स्वर में जवाब दिया।
-'वाह! मजा आ जाएगा तब तो ।" अपनी ही झोंक में पानी के गढ्ढे में छपाक से कूदते हुए दूसरी बोली ।
- 'बेवकूफ! किसी के घर टूटेंगे तो तुझे खुशी होगी।' पहली का गुस्सा सातवें आसमान पर था ।
- 'हमारी हवेली भी गिर जाएगी तो नया घर बनेगा वहाँ और
हवेली तोड़ने का खर्च भी बचेगा।' दूसरी ने मानो समझदारी दिखाई ।
- 'अपनी खुशी के लिए कितनों को कितना दुख पहुँचाएगी ! आज से तेरी-मेरी कुट्टी ।'
पहली दुख मिश्रित गुस्से से बोल कर नाराजगी भरे तेज -तेज कदमों से अपने घर की ओर चल दी ।
हैरान परेशान दूसरी पीठ पर भीगते बैग और दोनों हाथों में जूते थामे अपनी प्रिय दोस्त को जाते देख सोच रही थी कि उसकी गलती कहाँ पर थी ।
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