कैसे दमघोटू से दिन हैं । न बूंदों की छम-छम में हथेली पसार
कर हाथ भिगोने को मन करता है और न ही खिड़की से बाहर
बारिश की बूंदों को देखते हुए कोई किताब पढ़ने का । संगीत के
सुर भी अब मन को अपनी और नहीं खींचते । कितनी ही बार
चाहा कुछ पढ़ना मगर रिक्त से बोझिल और उदास से वजूद
पर एक डर है जो लिपटा है चादर सा ।
'हैरीपॉटर'सीरीज में जिक्र है दमपिशाचों का । जो बुरे जादूगरों
के सहयोगी हैं । जब ये आते हैं तो हर तरफ नकारात्मकता
की चादर फैल जाती है जादूगरों के समुदाय में । जितना
शक्तिशाली दमपिशाच उतना ही भय और नुकसान सीधे
सरल जादूगर समाज को । हर जादूगर के पास एक जादुई
छड़ी और कुछ मंत्र जो उनके गुणों पर आधारित होते हैं जिनका
प्रयोग वे शक्ति सामर्थ्य के अनुसार करके दमपिशाचों से
निजात पाते हैं ।
सोचती हूँ कुछ कुछ वैसा ही दमपिशाच है
कोरोना वायरस भी । जो पिछले वर्ष के मार्च से अब तक न
जाने कितनी ही जिन्दगियों को लील गया और अब भी उसका कहर जारी है । आरंभिक दिनों में मेरी सोच थी कि इक्कीसवीं सदी है
ये...अब साईंस ने बहुत उन्नति कर रखी है । महामारी है तो
खतरनाक लेकिन आज हम प्राचीन चिकित्सा पद्धति के भी बहुत
करीब हैं और मेडिकल व्यवस्थाएँ भी अति उन्नत हैं अतः कोरोना महामारी पर नियंत्रण भी जल्दी ही हो जाएगा । तब यह अहसास
भी नहीं था इस अज्ञातशत्रु के आगे सब बौने साबित हो जाएँगे ।
लगभग सवा साल के बाद भी कोरोना की स्थिति की
भयावहता जस की तस है ।
खाली सा मन नकारात्मकता में उलझता जा रहा है । खुले
आसमान के नीचे प्रकृति को महसूस करना जैसे जागती
आँखों का सपना हो गया मेरे जैसे लोगों के लिए जो पहले
से ही ढेर सारी बीमारियां पाले बैठे हैं ।
कभी दो हाथ की दूरी…, कभी छ: हाथ की दूरी..,एक मास्क…,
डबल मास्क.., हाथ धोते-धोते, सैनेटाइजर स्प्रे करते और नई
समस्याओं को न्योता दे रहे हैं हम । वैक्सीनेशन राहत की बात है
मगर ब्लड क्लोटिंग जैसे साइड इफेक्ट में उन लोगों का क्या जो
पहले से ही इस तरह की जेनेटिक बीमारियों से जूझ रहें हैं ।
पहले एक विश्वास था बरगद की जड़ जैसा…,डॉक्टर ईश्वर तुल्य
हैं ।और दक्ष आर्युवेदाचार्य हो तो संजीवनी आज भी विद्यमान है ।
उस विश्वास की जड न चाहते हुए भी अब हिल रही है ।
जीवन को भरपूर जीने की चाह रखने वाला मन और कल्पनाओं
के कैनवास पर अक्षरों के रंग उकेर कर मनचाहा आकार देने
वाली सोच कभी इतनी मूक और बेबस हो जाएगी..
…, सोचा न था।
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