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उसने पूछा - लिख नहीं रही आज कल ? बहुत दिन हुए कुछ लिखते नहीं देखा..!! मन किया कि कहूँ - आज कल गुजरे
कल और आने वाले कल को दरकिनार कर आज को जीना
सीख रही हूँ और वो आज मुझे हर जगह अनफ़िट किये दे रहा
है जिसके तार पैदाइश से ही जुड़े हैं मेरे साथ .., कम से कम
मुझे अपने बारे में ऐसा ही लगता है । मैं बस एक ही काम तो अच्छे से कर पाती हूँ सब से सामंजस्य बिठाने की कोशिश लेकिन यहाँ भी झोल है जब तक वह बैठता है तब तक दुनिया और से और हो जाती है ।बस गुजरे पलों का सूत्र ही रह जाता है हाथ में ।ज़िद्द है मन की कि ज़िन्दगी के गुणा-भाग के बाद शेष बचे अंश से तारतम्य बिठाने के लिए एक ईमानदार कोशिश तो कम से कम होनी ही चाहिए ।बाकी कल का क्या…? वो तो सांसों के साथ जुड़ा है जब जी चाहेगा स्मृतियों के गलियारों के दरवाजे खुद के लिए ख़ुद बख़ुद खुल जायेंगे ।
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