गेट में घुसते ही अफरा-तफ़री का माहौल देख उसका माथा ठनका और वह मन ही मन बुदबुदाई - “देर तो नहीं हुई ..,ना ही कोई इंस्पेक्शन होने वाला था आज ।”
अजीब सा तनाव महसूस करती हुई वह ऑफिस में घुसी कि हेड ने उससे सवाल किया- “आज का अख़बार देखा ?”
-“नहीं मैम ! सुबह-सुबह भाग-दौड़ में कई बार हैडिंग देखनी ही मुश्किल हो जाती है..,न्यूज़ पेपर की बारी छुट्टी के बाद शाम की चाय के साथ ही आती है ।” अभिवादन के साथ उसने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया और उन्हें व्यस्त देख सिग्नेचर के बाद पेन को उँगलियों के बीच घुमाती हुई स्टाफ़ रूम की तरफ़ बढ़ गई ।
वहाँ उसे अपने दो-चार साथी किसी गंभीर चर्चा मे व्यस्त लगे । उन्हीं के बीच जगह बनाती वह दीवार से लगी अपनी आलमारी की ओर बढ़ी लेकिन हेड की बात और टेबल पर पड़े पेपर ने उसके कदम रोक दिए । जिज्ञासा से उसने पन्ने पलटने आरम्भ किये ही थे कि एक पेज पर छपी फोटो देख कर वह सन्न रह गई ।
कॉलम का शीर्षक और अंदर छपे शब्दों के साथ उसके लिए सहयोगियों के संवाद भी कानों में पड़ी कई दिन पूर्व की आवाज़ों की धमक में गौण होते चले गए ।
- “आगे रेगुलर पढ़ाने के लिए घर वाले तैयार नहीं हैं मैम ! खुद तो गई सो गई घर की बाकी लड़कियों के रास्तों में काँटे बो गयी वीरां । घर की लड़कियाँ पढ़ना चाहेंगी तो प्राइवेट ही पढ़ सकेंगी अब ।” टीसी के लिए एप्लिकेशन उसे थमाते हुए महिला ने डबडबाई आँखों के साथ भरे गले से कहा था ।
- “पता नहीं क्यों किया उसने ऐसा..,लड़की तो बहुत अच्छी और होशियार थी ।” महिला के हाथ से पानी का ख़ाली ग्लास ट्रे में रख वहाँ से निकलती बाईजी बोलीं ।
हाथ में पकड़े अख़बार में वीरां की खिलखिलाती तस्वीर देख उसकी आँखें छलछला उठीं ।
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