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Thursday, May 11, 2023

“अख़बार”

गेट में घुसते ही अफरा-तफ़री का माहौल देख उसका माथा ठनका और वह मन ही मन बुदबुदाई - “देर तो नहीं हुई ..,ना ही कोई इंस्पेक्शन होने वाला था आज ।”

अजीब सा तनाव महसूस करती हुई वह ऑफिस में घुसी कि हेड ने उससे सवाल किया- “आज का अख़बार देखा ?” 

 -“नहीं मैम ! सुबह-सुबह भाग-दौड़ में कई बार हैडिंग देखनी ही मुश्किल हो जाती है..,न्यूज़ पेपर की बारी छुट्टी के बाद शाम की चाय के साथ ही आती है ।” अभिवादन के साथ उसने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया और उन्हें व्यस्त देख सिग्नेचर के बाद पेन को उँगलियों के बीच घुमाती हुई स्टाफ़ रूम की तरफ़ बढ़ गई । 

                   वहाँ उसे अपने दो-चार साथी  किसी गंभीर चर्चा मे व्यस्त लगे । उन्हीं के बीच जगह बनाती वह दीवार से लगी अपनी आलमारी की ओर बढ़ी लेकिन हेड की बात और टेबल पर पड़े पेपर ने उसके कदम रोक दिए  ।  जिज्ञासा से उसने पन्ने पलटने आरम्भ किये ही थे कि एक पेज पर छपी फोटो देख कर वह सन्न रह गई ।

 कॉलम का शीर्षक और अंदर छपे शब्दों के साथ उसके लिए  सहयोगियों के संवाद भी कानों में पड़ी कई दिन पूर्व  की आवाज़ों की धमक में गौण होते चले गए । 

     - “आगे रेगुलर पढ़ाने के लिए घर वाले तैयार नहीं हैं मैम ! खुद तो गई सो गई घर की बाकी लड़कियों के रास्तों में काँटे बो गयी वीरां । घर की लड़कियाँ पढ़ना चाहेंगी तो  प्राइवेट ही पढ़ सकेंगी अब ।” टीसी के लिए एप्लिकेशन उसे थमाते हुए महिला  ने डबडबाई आँखों के साथ भरे गले से कहा था ।

            - “पता नहीं क्यों किया उसने ऐसा..,लड़की तो बहुत अच्छी और होशियार थी ।”  महिला के हाथ से पानी का  ख़ाली ग्लास  ट्रे में रख वहाँ से निकलती बाईजी बोलीं ।

        हाथ में पकड़े अख़बार में वीरां की खिलखिलाती तस्वीर देख उसकी आँखें छलछला उठीं ।

      

                                       ***

Wednesday, May 3, 2023

“उधेड़बुन”

 

                                             

किसी बात के चलते किसी घनिष्ठ ने कभी कहा कि -“एक वक़्त के बाद लोग जम नहीं पाते किसी जगह..।” और मैंने हँसते हुए प्रतिवाद किया था -  “अच्छा !! बरगद ,पीपल , नीम नहीं रहते ..,मनी प्लांट हो जाते हैं कहीं भी लगा दो .., बस लग ही जाते हैं ।” 

       शायद उन्हें मेरी बात पसन्द नहीं आई और चुप्पी साध ली ।   मौन अंतराल को भरने के लिए हमारे बीच कोई दूसरा विषय छिड़ गया और इसी के साथ बातों का सिलसिला भी कहीं और मोड़ पर मुड़ गया । मगर उनका वाक्य और अपना संवाद रह-रह कर कानों में गूंजता है जब भी मन भटकता है ।

     रमता जोगी जैसा स्वभाव बहुत काम का है रोज़ी-रोटी की ख़ातिर यहाँ-वहाँ प्रवास कर रहे लोगों के लिए या फिर बन जाता है आवश्यकतानुसार । इसीलिए कहा जाता रहा होगा “आवश्यकता आविष्कार की जननी है” यहाँ रिसर्च जैसी कोई बात नहीं बस मानव व्यवहार की बात है ।उसमें भी समयानुसार परिवर्तन आम है । परिस्थितियों के अनुसार पानी की तरह ढल जाता है आदमी भी ।

          आजकल मेरा मन असीम से ससीम के बीच चक्कर घिन्नी में बँधे लट्टू सा घूमता रहता है । कठिन समय के भंवर से बाहर निकलने के लिए कई बार ढलती साँझ में नीड़ में लौटते परिन्दों सा वह अपनी जड़ों को ढूँढता है तो कई बार लौट आता उसी थान के खूँटें पर जहाँ ढलती साँझ और नीड़ के परिन्दों का अस्तित्व कल्पनामात्र है । जीवन का यही शाश्वत सत्य हम अक्सर जीते हैं । जिसे न छोड़ते बन पाता है और न पकड़ते बन पाता है ।


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