“मुझे नहीं रहना व्यवहारिकता के साथ..,इस के साथ मुझे अच्छी वाइब्स नही आती।” - स्वाभिमान कुनमुनाया ।
“तुम्हारी उच्छृंखलता पर अंकुश लगाने के लिए बहुत जरूरी है तुम्हारा इसके साथ होना…, इसके साथ रह कर कुछ सीखो।” आवेश में परम्परा चीखी ।
“मेरा दम घुटता है इसके साथ ।” स्वाभिमान बहस के
मूड में था।
“याद रखो ! बिना व्यवहारिकता के तुम्हारा अस्तित्व शून्य है।”दहाड़ते हुए परम्परा ने कहा और आवेश में एक झन्नाटेदार थप्पड़ स्वाभिमान के चेहरे पर जड़ दिया ।
“तुम्हारी इन्हीं हरकतों से नैतिकता पहले ही घर छोड़ चुकी
है…,यही हाल रहा तो एक दिन इसको भी खो दोगी ।”
लड़खड़ा कर गिरते स्वाभिमान को संभालते हुए चेतना ने
गंभीरता से कहा ।
इस कड़वे सच को सुन व्यवहारिकता इतरा रही थी और परम्परा
के झुके माथे पर चिन्ता भरी सिकुड़न थी ।
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