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Tuesday, February 14, 2023

“ऋतुराज वसंत”

फरवरी से अप्रैल के मध्य वसंत ऋतु में प्रकृति अपने सौंदर्य की 

अद्भुत छटा बिखेरती है । ऐसा माना गया है कि माघ महीने की 

शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होते ही मौसम सुहावना हो 

जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद 

जाते हैं । खेत सरसों के फूलों और गोधूम की बालियों से महमहा उठते हैं  । 

                 वसन्तोत्सव से होली तक राग- रंग से सरोबार इस 

समय को  ऋतुराज कहा गया है । इसके प्रभाव से तो गोपेश्वर  भगवान  श्री कृष्ण भी अछूते नहीं रहे तभी तो कुरुक्षेत्र समर भूमि में अर्जुन को विराट स्वरूप के दर्शन करवाते हुए   गीता उपदेश में कहा था  - “मैं ऋतुओं में वसंत हूँ।” 

       वसंत के आगमन का अनुभव मेरी दृष्टि में एक अलग सी 

पहचान लिए है - “बाल्यावस्था में रात्रि काल में हल्की सी सर्दियों में चंग की थाप के साथ मन-मस्तिष्क पर सदैव वार्षिक परीक्षा की दस्तक  कानों में मृदंग लहरियों सी बज उठा करती थी और वसंत पंचमी के दिन पीले फूलों की सुगंध और केसरिया रंगों के रस में 

डूबी मिठाइयों की महक से आप्लावित मंदिर प्रांगण में सरस्वती आराधना में बन्द दृगपटलों में पूरे साल की कमाई अर्थात् अंक-तालिका के विषयवार अंकों  का लेखा-जोखा साकार हो 

उठता था।”

                       ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती गई त्यों-त्यों बोर्ड परीक्षाओं 

की फिर  यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं की चिंता पर्वत सी अचलता के साथ कलेजे पर बैठी रहती । युवावस्था में शिक्षा-व्यवसाय की अति व्यस्तताओं के बीच वसंतोत्सव पर्वों का हर्षोल्लास और प्रकृति का सौन्दर्य मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने में सदा ही असमर्थ रहता । 

                  अति व्यस्तताओं से दूर फ़ुर्सत के पलों में सागर 

किनारे अठखेलियाँ करती लहरों के सानिध्य में पीले फूलों से सरसी सरसों और स्वर्ण सदृश गोधूम की पकती बालियों को देखे बिना मैं

कैसे कह दूँ-

               “ओह !! ऋतुराज वसंत !! मधुमास वसंत !!”

              

***

Saturday, February 11, 2023

“घर”



  अलविदा कहने का वक्त आ ही गया आखिर.. मेरे साथ रह कर तुम भी मेरी खामोशी के आदी हो गए थे । अक्सर हवा की सरसराहट तो कभी गाड़ियों के हॉर्न कम से कम मेरे साथ तुम्हें भी अहसास करवाते

रहते कि दिन की गतिविधियां चल रहीं हैं कहीं न कहीं ।'वीक-एण्ड' पर मैं बच्चों के साथ अपने मौन का आवरण उतार फेंकती तो तुम भी मेरी ही तरह व्यस्त और मुखर हो कर चंचल हो जाते ।समय पंख 

लगा कर कैसे उड़ता भान ही  नहीं होता। ख़ैर.., अपना साथ इतने समय का ही था ।

          चलने का समय करीब आ रहा है । सामान की पैकिंग हो रही है सब चीजें सम्हालते हुए मैं एक एक सामान  सहेज रही

 हूँ । महत्वपूर्ण सामान में तुम से जुड़ी सब यादें भी स्मृति-मंजूषा में करीने से सजा ली हैं । फुर्सत के पलों में जब मन करेगा यादों की गठरी खोल कर बैठ जाया करूँगी.., गाड़िया लुहारों की सी आदत 

हो गई है मेरी ..,आज यहाँ तो कल वहाँ। जो आज बेगाना है वह 

कल अपना सा लगेगा..मुझे भी..तुम्हे भी । मेरी यायावरी में तुम्हारा साथ मुझे याद रहेगा सदा सर्वदा ।


                                   ***