अलविदा कहने का वक्त आ ही गया आखिर.. मेरे साथ रह कर तुम भी मेरी खामोशी के आदी हो गए थे । अक्सर हवा की सरसराहट तो कभी गाड़ियों के हॉर्न कम से कम मेरे साथ तुम्हें भी अहसास करवाते
रहते कि दिन की गतिविधियां चल रहीं हैं कहीं न कहीं ।'वीक-एण्ड' पर मैं बच्चों के साथ अपने मौन का आवरण उतार फेंकती तो तुम भी मेरी ही तरह व्यस्त और मुखर हो कर चंचल हो जाते ।समय पंख
लगा कर कैसे उड़ता भान ही नहीं होता। ख़ैर.., अपना साथ इतने समय का ही था ।
चलने का समय करीब आ रहा है । सामान की पैकिंग हो रही है सब चीजें सम्हालते हुए मैं एक एक सामान सहेज रही
हूँ । महत्वपूर्ण सामान में तुम से जुड़ी सब यादें भी स्मृति-मंजूषा में करीने से सजा ली हैं । फुर्सत के पलों में जब मन करेगा यादों की गठरी खोल कर बैठ जाया करूँगी.., गाड़िया लुहारों की सी आदत
हो गई है मेरी ..,आज यहाँ तो कल वहाँ। जो आज बेगाना है वह
कल अपना सा लगेगा..मुझे भी..तुम्हे भी । मेरी यायावरी में तुम्हारा साथ मुझे याद रहेगा सदा सर्वदा ।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-2-23} को जीवन का सच(चर्चा-अंक 4641) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर “घर” को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह वन्दे !
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नीतीश जी !
Deleteसुंदर...चलना तो दुनिया की रीत।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी !
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आप का बहुत बहुत आभार ।
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आप का बहुत बहुत आभार ।
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