“यहाँ के बाज़ार में कुछ नहीं मिलता ..,बस नाम ही नाम है आपके शहर का । इतना बड़ा नाम और छोटा सा बाज़ार ।” नई बहू गाय को दुहते हुए भुनभुनाई ।
“अरी बावली ये तो पढ़ने वाले बच्चों का ठाँव है । कितनी दूर में फैली कितनी बड़ी कॉलेज कि एक गाँव बस जाए फिर उतनी ही बड़ी सीरी और मूजिमघर (म्यूज़ियम) । मूजिमघर तो दूर दिसावर से आए लोग भी देखने आते हैं । कितना बड़ा हॉस्पिटल है यहाँ आस-पास के गाँवों के लोग इलाज की ख़ातिर यही तो आते हैं । इन सब से नाम बड़ा है यहाँ का .., मैं ठीक कह रही हूँ ना बेटी !” दूध के लिए केतली थामे खड़ी मुझको वार्तालाप में सम्मिलित करते हुए अनपढ़ सास ने उपले थापते हुए कहा ।सहमति में गर्दन हिलाते हुए मैं उनकी समझाईश भरी बातों से चकित थी ।
बैचलर ऑफ एजुकेशन टीचर ट्रेनिंग कॉलेज के सभागार में कभी-कभी सेमिनारों का आयोजन होता था। एक बार वहाँ भी अपने छोटे से शहर के लिए मन गर्वित हो उठा जब सभी शिक्षार्थी साथियों को एक छोटे से स्पीच से पूर्व मेरे परिचय में प्रिन्सीपल सर को यह कहते सुना - “अब ये ऐसी जगह का नाम लेंगी जहाँ इस सेमिनार में बैठा हर सदस्य जाना चाहेगा ।अब की बार “एजुकेशन टूर” पर आपको वहीं ले जाने का प्रोग्राम है ।”
कुछ इसी तरह के वाक़यों को देखते सुनते वह समय भी आ ही गया जिसके बारे में अक्सर सुना है कि - “जहाँ का दाना-पानी आपके नसीब में लिखा होता है वहाँ आपको जाना ही पड़ता है ।”
पूर्व और पश्चिम का अनूठा संगम लिए दिल्ली और जयपुर के बीच लगभग समान दूरी पर अवस्थित है “पिलानी”। जन्म और कर्म से जुड़ी मेरी जन्मभूमि .., मेरी माँ की स्मृतियों की तरह इसकी स्मृतियाँ भी बहुत कस कर बाँधे है मुझे खुद से ।
कहते हैं कि किसी की अहमियत आपके लिए क्या है इसका भान बिछोह के बाद अनुभव होता है । सिलीकॉन सिटी के नाम से मशहूर बैंगलोर में रहते हुए मैं अक्सर उसे यहाँ के माहौल में कभी कॉर्नर हाउस पर आइसक्रीम खाते चेहरों में तो कभी चेरी ब्लॉसम और गुलमोहर की कतारों के बीच नीम और पीपल के रूप में ढूँढ़ती हूँ और बरबस ही मेरा मन कह उठता है -
ओ रंगरेज ~
बड़ा ही गाढ़ा तेरे
नेह का रंग
*
बहुत सुंदर पोस्ट,
ReplyDeleteहृदयतल से असीम आभार सहित धन्यवाद मधुलिका जी !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०६-०४-२०२३) को 'बरकत'(चर्चा अंक-४६५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी !
ReplyDeleteसचमुच!
ReplyDeleteनेह का रंग बड़ा गहरा..
बहुत सारगर्भित।
लेखन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित धन्यवाद जिज्ञासा जी !
ReplyDeleteसुंदर कथात्मक शुरुआत के साथ मन को छूती मधुरस्मृतियाँ और अंत में इतना सार्थक एवं सारगर्भित हाइबन।
ReplyDeleteवाह!!!!
लेखन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सहित धन्यवाद सुधा जी !
ReplyDeleteमुग्ध करती अनुपम कृति
ReplyDeleteआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया, हृदयतल से आभार सहित धन्यवाद ।
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