“महीप आप भगत सिंह सर्किल तक छोड़ देना प्लीज…,मैं
आदि को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस निकल जाऊँगी ।” - रश्मि
ने आदि की टाई की नॉट ठीक करते हुए कहा ।
“मैं नहीं जाऊँगा स्कूल..,” जिद्द करते हुए आदि ठुनक रहा था।
“ऋतु जल्दी करो देर हो जाएगी..,संभालो न इसे । आदि क्या
हुआ तुम्हें ।” - अपना बैग ठीक करते हुए महीप बोले ।
“बेटे क्या हुआ ? जिद्द मत करो अब की वीकेंड पर तुम्हारी फ़ेवरेट जगह चलेंगे ।”- ऋतु ने मनुहार की।
- “मम्मी वो स्कूल के एक पेड़ में भूत रहता है।लंच में बड़े भईया
और दीदी लोग हमें बता रहे थे जब हम उधर खेलने गए ।”
ऋतु बेटे की तरफ मुड़ी और प्यार से समझाते हुए
बोली - “तू तो मेरा बहादुर बच्चा है..ये सीनियर्स शैतान होते
हैं जो यूं ही तंग करते और डराते हैं ।मेरा शेर बच्चा कोई
डरता थोड़े ही है ।” ऋतु अपने और आदि के बैग और बॉटल
उठाए उसके साथ बाहर निकली , तब तक महीप गाड़ी स्टार्ट
कर चुके थे ।
सर्किल पर गाड़ी से उतर कर जैसे ही माँ - बेटे स्कूल
की तरफ बढ़ ही रहे थे कि सामने से आते साँड को भागते देख
कर घबराहट और अफ़रातफ़री ऋतु के हाथ से आदि का हाथ
छूट गया । दौड़ती ऋतु ने आदि को स्कूल के गेट की तरफ भागते देखा जो बच्चों और पेरेंटस की भीड़ में घुस चुका था मगर डर
और घबराहट से उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ रही थी ।
स्कूल बैग और वॉटर बॉटल आदि को पकड़ा कर ऋतु जैसे
ही मुड़ी, आदि ने माँ का दुपट्टा खींचा । अब की बार ज्ञान लेने
की बारी ऋतु की थी आदि बड़ों की तरह उसे समझा रहा था -
“ आप यूं डरा मत किया करो ! बहादुर बच्चे की मम्मी हो ,मेरी शेरनी मम्मी !”
🍁🍁🍁
बहुत शानदार लघुकथा मीना जी..वाह
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अलकनंदा जी !
Deleteबहुत ही सुंदर ताना-बाना गुंथा है लघुकथा में माँ बेटे का।
ReplyDeleteप्रतिदान.. वाह!
बहुत ही बढ़िया लघुकथा।
सादर
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार अनीता जी !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
"पांच लिंकों का आनन्द" में सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।
Deleteबहुत4बढ़िया मीना जी।बच्चों को समझाना आसान है पर हम बड़े ही कई बार बचकानापन दिखाकर खुद को छोटा कर लेते4हैं।सार्थक लधु कथा के लिए बधाई 🙏❤
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल उपस्थिति से हर्षित हूँ प्रिय रेणु जी । बहुत बहुत आभार 🙏❤️🌹
Deleteवाह ! बच्चों को वीरता के पाठ इसलिए तो पढ़ाए जाते हैं ताकि वे समय आने पर अपने साथ सबकी रक्षा कर सकें
ReplyDeleteसारगर्भित सराहनात्मक प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार अनीता जी ।
Deleteवाह!बहुत ही सुंदर सृजन मीना जी । बच्चों को कम मत समझिए ..सीख दे ही गए न ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी ।
Deleteकई बार हम जो बच्चों को सिखलाते है उसे ऐसी परिस्थिति आने पर खुद भुल जाते हैं और तब बच्चों हमें ज्ञान दे जाते हैं। "प्रतिदान" बहुत ही सुन्दर शीर्षक और सीख देती लघुकथा। सादर नमस्कार मीना जी 🙏
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ! सस्नेह सादर नमस्कार 🙏
Deleteबच्चों के मन में जो बीज बोए जाते हैं वो फल के रूप में सामने आते हैं । बेहतरीन लघुकथा ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मैम 🙏🙏
Deleteवाह! बाल मनोविज्ञान का सुंदर चित्र।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका 🙏
Deleteउत्साहवर्धक लघु कथा
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार लोकेष्णा जी!
ReplyDeleteबाल मनोभाव का सटीक चित्रण ।
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी !
Deleteसुन्दर लघु कथा
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार
Deleteअनुज !
वाह!!!
ReplyDeleteआखिर बच्चे को दी सीख माँ को प्रतिदान में मिली..
बहुत ही सार्थक सृजन।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी !
DeleteNice Sir .... Very Good Content . Thanks For Share It .
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