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Thursday, April 7, 2022

एक फैसला ऐसा भी…,


घर के आँगन में नीम के पेड़ के नीचे कुछ लोग दरी पर तो कुछ चारपाई पर बैठे थे । एक कोने में घूंघट निकाले सात-आठ औरतें थी । हुक्के की गुड़गुड़ाहट और विचार-विमर्श के बाद उनमें से 

एक गंभीर आवाज़ उभरी - “नाथूराम तुम क्या चाहते हो ?”

             परेशान नाथूराम ने गंभीरता से गर्दन झुकाए हुए कहा - “समधी रामलाल सा और समधन जी कहते हैं कि सन्तोष से भारी चूक हुई है । पूरा एक दिन गायब रही ,पुलिस की गाड़ी घर छोड़कर गई है हम नहीं रखेंगे सन्तोष को । अब आप ही बताओ मैं ग़रीब आदमी अपनी इज़्ज़त कैसे बचाऊँ । बच्ची है जी ! पहली बार निकली थी घर से ।” कहते कहते नाथूराम की आँखें भर आई।

         नाथूराम की बात पूरी होते ही रामलाल ने आवेश में 

आ कर कहा - “हम क्या जाने पहली बार निकली है या आदत है। बिरादरी में हमारी भी इज़्ज़त है कैसे रख ले हम इसको।”

          तभी घूँघट मे रोती नाथूराम की पत्नी अपनी बेटी को दोहत्थड़ जड़ते हुए चिल्लाई - “करमजली ! सास थी तेरी

 दो लात मार भी दी तो मर तो नहीं गई थी तू ! घर से बाज़ार तो कभी गई नहीं , सकूल का मुँह माथा देखा नहीं और चल पड़ी 

सीधी दिल्ली ।”

     आँगन का वातावरण पहले से भी ज़्यादा भारी हो गया ।  बड़े बुजुर्गों में से एक बन्दे ने कहा - देखो समधी सा ! अब आपका हमारा जमाना तो रहा नहीं…,समधन सा को अपनी बहू पर हाथ नहीं उठाना था ।” 

-“काम की न काज की दुश्मन अनाज की” सिर पर धर के नाचती इसको .. ,कोई काम शऊर से तो करती नहीं ।” पहली बार समधन सा के मुँह से तानों के रूप में फूल झरे ।

               -  “आप क्या बोलते हो कंवर सा ! कोई रास्ता दिखता है तो कुछ तो कहो ।” नाथूराम ने कातर भाव से दामाद की ओर देखा ।

       -“बोलना  क्या है ? वो पत्नी है मेरी .., मेरे पास आ रही थी । रास्ता भटक गई क्योंकि आपने उसे रास्ता दिखाया ही नहीं ।एक काम करो …, आप सब आराम से चाय-पानी

 पीयो । मेरी बस का समय हुआ  जा रहा है । चल सन्तोष !  चार बजे की बस है दिल्ली के लिये ।” कहते हुए सन्तोष का पति वहाँ से उठ गया और उसके पीछे सन्तोष भी ।

               निस्तब्धता के बीच हुक्के की गुड़गुड़ाहट गहन चिन्तन में डूब गई और इसी के साथ सभा में सन्नाटा पसर गया ।


                                    *** 

20 comments:

  1. सुन्दर लघु कथा

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  2. हार्दिक आभार अनुज ।

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  3. बदलाव ! देश में.... समाज में...... विचारों में

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    1. आपकी सराहना से सृजन का मान बढ़ा । बहुत बहुत आभार आभार शर्मा सर 🙏

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  4. आदरणीय गगन शर्मा जी सर ने सही कहा बदला देश ...समाज में और विचारों में।
    बहुत सारे प्रश्न इंगित कहती सारगर्भित लघुकथा।
    सादर

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    1. आपकी सराहना से सृजन का मान बढ़ा । बहुत बहुत आभार
      अनीता जी ।सादर सस्नेह …।

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  5. कंवर सा से लड़कों की जरूरत है समाज को...सास ससुर माँ बाप और इज्ज़त सब एक तरफ और पति का साथ हो जाना एक तरफ...इस बदलाव की आवाज दछर -दछर तक पहुँचनी चाहिए ।बहुत ही सारगर्भित लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई मीना जी !

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता सम्पन्न मान प्रदान किया। हार्दिक आभार सुधा जी ! सादर सस्नेह..।

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  6. सुंदर लघुकथा। नई पीढ़ी को ही फैसला लेने की जरूरत है तभी रूढ़ियों के ये बंधन टूट पाएंगे।

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  7. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया ।हार्दिक आभार विकास जी!

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  8. आपकी लिखी  रचना  शुकवार   24 जून  2022     को साझा की गई है ,पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

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  9. पाँच लिंकों का आनन्द में लघुकथा को साझा करने के लिए हार्दिक आभार आ . दीदी 🙏

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  10. व्वाहहहहह..
    अनुपम रचना
    सादर

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया हार्दिक आभार यशोदा जी! सादर…।

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  11. वाह बहुत सुंदर भाव और एक सीख देती लघु कथा आभार संगीता दी का यहाँ का रास्ता बताने के लिए

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  12. सब से पहले स्वागत आपका ब्लॉग पर 🌹🙏
    आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ । संगीता दी का मैं भी आभार व्यक्त करती हूँ उन्होंने मुझे भी आप से जोड़ा है ।

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  13. नई पीढ़ी की नई सोच को दर्शाती सुंदर लघुकथा, मीना दी।

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  14. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी !

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  15. किसी भी विवाह में जीवनसाथी का एक दूसरे पर विश्वास,प्रेम और समझदारी काफी होता है घर-परिवार,समाज बिरादरी के पुरान-पंथी, परंपराओं के नाम पर पीड़ित करने वाले विचारों को आईना दिखाने के लिए।
    सचमुच ऐसा फैसला लेने वाले नौजवान ही समाज की सोच बदल सकते हैं।
    प्रेरक और वैचारिकी मंथन को आमंत्रित करती लघुकथा ।
    सस्नेह
    प्रणाम दी।
    सादर।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया श्वेता जी ! हृदय से असीम आभार , सादर सस्नेह वन्दे !

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