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Friday, January 31, 2025

“सवाल”

     मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने…, बहुत प्यारा गाना है “आनन्द” मूवी का ।आज यूट्यूब पर गाने सुनते-सुनते मुकेश के गाने सामने आए और उन्हीं गानों में गुलजार साहब का यह गीत भी था जिसने उस दौर की याद दिला दी जब ख़त लिखने का मतलब कुशल क्षेम जानना ही नहीं भावनाओं का आदान-प्रदान भी हुआ करता था ।

               सात रंग के सपने.., गगनचुंबी सपनों की उड़ान और भी न जाने क्या-क्या ? वो शिकायती ख़त लिखते समय शायद उसके दिलोदिमाग़ पर इसी गाने का असर रहा होगा तभी तो उसने लिखा था - “ये सात रंग के सपने मेरे अकेले नहीं हैं कहीं न कहीं आप भी तो शामिल हैं इनमें.., जब पूरे ही नहीं करने थे तो इस बारे में सोचा ही क्यों ?” शायद नाराज़गी थी कहीं न कहीं कि मेरा सहयोग नहीं है लक्ष्य साधना में ।यहाँ अपनी सोच कुछ अलग सी थी ..,गीत के मर्म के समान और उस सोच को समझने की ज़रूरत सपनों के पीछे भागते समय भला किसको याद रहती है । हमारे बीच यह आख़िरी संवाद था ख़तों के माध्यम से एक -दूसरे की हौसला अफ़ज़ाई का । समय के साथ-साथ सोचें और रास्ते बदलते चले गए सोचने समझने के नजरिये में कमी कहाँ रह गई , समय के साथ यह  बात भी बीते समय की हो गई ॥

                         बहुत बार इन्द्रधनुष देखती हूँ तो सोचती हूँ कितनी अजीब बात है ।सात रंगों का मिलन और परिणाम - श्वेत प्रकाश ! ,कोरे काग़ज़ सा..,! मानो मूक आमन्त्रण दे रहा हो -  “आओ ! कुछ साकार करो मुझ पर ,कोई अल्फ़ाज़.., कोई आकृति .., कुछ भी जो तुम्हारे दिल में हो । मैं तुम्हारी ख्वाहिश को साकार करने में सक्षम हूँ अपने कलेवर पर । बस..,  कभी भी यह मत भूलना मैं अकेला एक नहीं हूँ मिश्रण हूँ सात रंगों का.., मेरा वजूद अनमोल है ।तुम्हारी सोच मुझ से ज़्यादा नहीं तो कम से कम मेरे जैसी तो होनी ही चाहिए ।”

                       खैर, अपना सवाल तो गीत के बोल , ख़त के अल्फ़ाज़ों  पर आज भी वही का वही टिका  है - रंग सात ही क्यों ? कम रंगों के मिश्रण से भी परिणाम सुखद हो सकते हैं । क्यों चाहिए सातों रंग..,सारा आसमान । जीने के लिए छोटी -छोटी बातें..,छोटी - छोटी आशाएँ और छोटी-छोटी ख़ुशियाँ क्या कम हैं ।

                           

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