आज कामवाली के ना आने से सुबह -सुबह रीना के बच्चों को स्कूल और पतिदेव को ऑफ़िस भेजते - भेजते पैर फिर गए थे । तरोताज़ा होने के लिए वह चाय बनाने के लिए रसोई की तरफ मुड़ी ही थी कि दीपावली पर एक हफ्ते की छुट्टी आई ननद दीपा मुस्कराती हुई दो प्याली चाय और नाश्ते की ट्रे थामे रसोई से बाहर आती हुई बोली - “चलो भाभी अब थोड़ा खा लो ! भैया और बच्चों के आने से पहले आज बाक़ी के काम पूरे कर के बाज़ार से दीपक व रसोई का कुछ सामान ले आएँ ।”
उसका वाक्य पूरा हुआ ही था कि “डोर-बेल” घनघना उठी । ट्रे डाइनिंग टेबल पर रख आगे बढ़ गेट खोला तो सामने भाभी की मित्र खड़ी थी । भाभी और उसकी सहेली को बतियाने के लिए छोड़ दीपा रसोई में ट्रे लेकर घुस गई,एक नाश्ते की और प्लेट लगाने और दो कप चाय को तीन कप चाय में बदलने के लिए । वापसी पर दीपा ने देखा दोनों किसी गंभीर चर्चा में व्यस्त थी ।दीपा ने उन से दूर बैठना बेहतर समझा ।
-“अच्छा भाभी ! चलती हूँ.., इनको सोया छोड़ कर आई थी रात में खाना भी नहीं खाया था ।सोचा जल्दी से सब्ज़ी ले आती हूँ । किसी से न कहना भाभी !आपसे मन मिलता है तो जी हल्का हो जाता है, कह-सुनकर ।” व्यस्त भाव से कहते हुए उसने रीना से विदा ली ।
“ क्या हुआ भाभी ? आपकी फ्रेंड बड़ी परेशान लग रही थी ।” “कुछ नहीं…। उसकी ननद रजनी की लड़की कल कॉलेज से घर नहीं लौटी । शाम के बाद बाद इन लोगों ने टोह-भाल की तो साथ वाले शहर के रेलवे-स्टेशन पर टिकट खरीदते मिले दोनों ।”
पूरी बात सुनने के बाद वह रोष में भर उठी - “अपने घर की उड़ाने में इसको थोड़ी सी शर्म भी नहीं आई ।ढिंढोरा पीटने के लिए चली आई सुबह-सुबह .. कैसी औरत है यह ।”, उसका भाषण पूरा होता और भाभी कुछ कहती अपनी मित्र के पक्ष या विपक्ष में कि फिर से डोर-बेल बज उठी.., भाभी ने जैसे ही गेट खोला बगल के फ्लैट वाली सोना भाभी सब्ज़ी का थैला लिए खड़ी थी - पता है कल रजनी की लड़की भाग गई …, रजनी की भाभी मिली थी सब्ज़ी मंडी में । बेचारी बहुत परेशान थी ।” दुपट्टे से पसीना पोंछते हुए वह आगे निकल गईं । कुछ क्षणों के अंतराल पर दीपा के कानों में गेट का ताला खुलने की आवाज़ के साथ उनकी फिर से आवाज़ आई -
- “प्लीज़ आप मत कहना किसी से.., किसी की इज़्ज़त का सवाल है ।”
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी !
ReplyDeleteमार्मिक पोस्ट.सादर अभिवादन
ReplyDeleteहृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ।सादर अभिवादन ।
ReplyDeleteसवाल जायज है :)
ReplyDeleteढिंढोरे यूँ ही पीटे जाते हैं अक्सर । हृदय तल से आभार एवं धन्यवाद सर आपकी प्रतिक्रिया हेतु । सादर नमस्कार !
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