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Saturday, June 4, 2022

“सर्वे”


पिछले तीन घण्टे से स्नेहा अपने दो सहयोगियों के साथ 

तपती धूप में फाइल थामे कभी इस दुकान तो कभी उस दुकान,छोटे-मंझोले रेस्टोरेन्टस् में चक्कर लगा रही थी बाल 

श्रमिक सर्वे हेतु बच्चों के नाम सूचीबद्ध करने के लिए । हमेशा 

की तरह आज किसी भी दुकान पर चाय पकड़ाते और कप 

धोते उसे एक भी बच्चा नज़र नहीं आया । धूप में उसका सिर 

तप रह था और आँखों में रोशनी के झपाके लग रहे थे ।गर्मी से सड़कों की स्थिति कर्फ़्यू लगने जैसी थी । प्यास बुझाने के लिए उसने कंधे पर टंगे बैग से पानी की बोतल निकाली तो खाली 

बोतल मानो मुँह चिढ़ा रही थी ।

                  तभी एक सहयोगी ने कहा - “कल का दिन भी है हमारे पास, बाकी का एरिया कल कवर कर लेंगे । आप थक 

गई हैं अभी आपका घर जाना ठीक रहेगा।” उसको भी यही ठीक लगा । आपसी सहमति से तीनों ने कल दोपहर का समय न 

चुनकर सुबह जल्दी आना तय किया । दोनों सहयोगियों ने 

अपनी-अपनी राह ली और वह जैसे ही मुड़ी सामने से रिक्शा 

आता देख ज़ोर से चिल्लाई-“रिक्शा” ! 

                 रिक्शा चालक ने सिर कैप से और मुँह तौलिए से 

ढका था ।रिक्शे के चलने से लू के थपेड़े भी स्नेहा को सुकून 

भरे लगे थोड़ा आराम मिलने पर उसे कदकाठी से रिक्शा चालक किशोर लगा तो उसने पूछा - “कहाँ से हो भाई ! नाम क्या है 

तुम्हारा ?”

        चालक ने पूर्ववत अपना काम करते हुए कहा - “आप

क्या करेंगी जानकर …, मेरी उम्र अट्ठारह साल है । आज 

गली-गली कुछ लोग फ़ाइलें लिए घूम रहे हैं । कहते हैं - 

“बालश्रम अपराध है ।” मज़दूरी नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या ? 

हम ग़रीबों के यहाँ तो हर बंदा काम करता है तो ही बसर होती

 है रिक्शे का किराया भी रोज़ाना इसके मालिक को देना होता

 है ।”

            निरुत्तर सी  स्नेहा रिक्शा रूकवा किशोर के हाथ में 

बीस रूपये थमा कर पैदल ही घर की ओर चल पड़ी । चलते 

वक़्त वह श्रमिकों की व्यथा के साथ उस फाइल के बारे में भी 

सोच रही थी जो आते समय वह अपने सहयोगी को दे आई थी।


                                    ***


40 comments:

  1. कितने ही कानून बन जायें लेकिन बालकों से श्रम करना बंद नहीं होगा । गरीब को पेट भरने की ज़रूरत है और मालिकों को कम खर्च में मजदूर मिलते हैं ।
    सार्थक लघुकथा ।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक करते हुए मनोबल संवर्द्धन किया ।हार्दिक आभार सहित सस्नेह सादर वन्दे!

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  2. सुंदर लघु कथा। असल में हम लोग श्रमिकों को श्रम करने से तो रोक देते हैं लेकिन उस कारण पर काम नहीं करते जो उनसे ये करवा रहा होता है। जरूरत उस पर भी कार्य करने की है। एक अनछुए पहलू को उजागर करती रचना।

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  3. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार विकास जी ।

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (5-6-22) को "भक्ति को ना बदनाम करें"'(चर्चा अंक- 4452) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. चर्चा मंच पर लघुकथा को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !

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  5. यही समाज की हक़ीक़त है। सुंदर लघुकथा।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार नीतीश जी ।

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  6. मैंने कल यहाँ कमेंट किया था । दिख नहीं रहा ।
    बाल श्रमिक पर आधारित लघु कथा सच्चाई बयाँ कर रही है । गरीबी में पेट भरें या कानून देखें ।

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    1. आदरणीया दीदी सादर नमस्कार !
      आपका कल का comment spam मे चला गया और मैंने देखा नहीं अभी देखा तो ठीक किया । आपने ध्यान दिलाया इसके लिए बहुत बहुत आभार ।पुनः आपने उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया दी इसके लिए हर्ष से अभिभूत हूँ । यूँ ही आपका स्नेहिल सानिध्य बना रहे 🙏 🌹

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  7. अर्थपूर्ण लघुकथा

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुपमा जी ! सस्नेह सादर वन्दे !

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  8. मज़दूरी नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या ?

    हम ग़रीबों के यहाँ तो हर बंदा काम करता है तो ही बसर होती है
    यही तो समस्या है बालश्रम अधिनियम के तहत सारे प्रयास विफल ही मानो समस्या गरीबी और उनकी रोजी रोटी से जुड़ी है...
    बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लघुकथा ।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार सुधा जी ! सस्नेह सादर वन्दे!

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  9. आपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  10. जी पाँच लिंकों का आनन्द में लघुकथा को साझा करने के लिए के लिए आपका सादर आभार 🙏

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  11. बहुत सुन्दर प्रेरक कथा

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  12. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी ! सस्नेह सादर वन्दे !

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  13. सुंदर और गूढ़ संदेश

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  14. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की । सादर आभार आ . विश्वमोहन जी ।

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  15. बहुत ही मार्मिक विषय है ये हमारे निम्न वर्ग का ।
    कई ऐसे लोग मिलते हैं जो बालश्रम निषेध की बात करते हैं और घर में नौकर चौदह साल का रखा हुआ है । और गरीब अगर बच्चों से काम न कराए तो क्या खिलाए बच्चों को । बालश्रम का एक बहुत ही कटु पहलू है मीना जी, जिसमे निम्न वर्ग के कुछ लोग खुद घर पर बैठे आराम से खुद तो खा, पी रहे हैं और उनके बच्चे घरों में नौकर हैं, कूड़ा उठाते हैं ये दशा शहरी निम्न वर्ग की ज्यादा है ।
    इसमें बहुत सुधार की जरूरत है, जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है ।
    चिंतनपूर्ण लघुकथा के लिए आपको बधाई मीना जी ।

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    1. आपकी चिंतनपरक समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आभार जिज्ञासा जी ।

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  16. बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर लेखनी चली है बधाई, दरअसल बालश्रम, निर्धनता और अशिक्षा आपस में गुंथे हैं।

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    1. आपकी सारगर्भित चिन्तन परक प्रतिक्रिया से सृजन को मुखरता मिली ।सराहना हेतु हार्दिक आभार विमल कुमार शुक्ल ‘विमल’ जी ।

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  17. वाह!बहुत खूब! बालश्रम ....बहुत ही नाजुक मुद्दा है ....गरीबों को दो समय की रोटी जुटाने के लिए ,घर के हर सदस्य को काम करना पडता है ,जहाँ भूख हो वहाँ क्या फर्क पडता है उम्र क्या है ..

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    1. सही कहा आपने..,गरीबी,बालश्रम और शिक्षा के प्रति जागरूकता के अभाव से समाज का एक तबका आज भी जूझ रहा है । आपके चिन्तनपरक विचारों से लेखन को मुखरता मिली ।

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  18. लघुकथा का पिछला अंश अपने आप में सत्य के मुख पर तमाचा है।
    सच यही है कि निर्धन परिवारों में अपनी बसर के लिए घर के हर प्राणी को काम करना ही पड़ता है नहीं तो दो वक्त कि खाना भी नसीब नहीं होता।
    गरीब को कानून समझने की फुर्सत ही कहां पेट भरने तक ही सोच सिमट कर रह जाती है बाकी कुछ समझ कर भी अनजान बना रहता है बहुत ही सार्थक भावों वाली लघुकथा।

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    1. आपके गहन चिन्तन परक विचारों से सृजन को मुखरता सहित सार्थकता मिली कुसुम जी ! स्नेहिल आभार सहित सादर वन्दे ।

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  19. मजबूरियों के धूप में झुलसता बचपन, सचमुच बाल श्रमिक सभ्य,सुसंस्कृत, अधिकारों के प्रति सचेत तथाकथित आधुनिक समाज के लिए शर्मिंदगी का विषय है।
    सार्थक संदेश देती सराहनीय लघुकथा।
    प्रणाम दी
    सादर।

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  20. गहन चिन्तन परक प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
    स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी !
    सस्नेह ..!

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  21. ऐसा कटु यथार्थ सीधे मर्म तक चोट करता है जब योजनाओं एवं वादों के उलट विभत्स वर्तमान दिखता है। इन्हें मुख्य धारा में लाना बस जुमला ही साबित होता है।

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    1. सत्य को उद्घघाटित करते विचारों से सृजन को मान मिला । हृदय से असीम आभार अमृता जी ! सस्नेह सादर वन्दे !

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  22. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन

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  23. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी ! सस्नेह सादर वन्दे !

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  24. बाल श्रमिकों की मनःस्थिति समझना बेहद जरूरी है
    यह कहानी इसी बात को कहती है

    मार्मिक और अर्थपूर्ण

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    1. सृजन को सार्थक करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आदरणीय
      ज्योति सर !

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  25. भावपूर्ण सृजन

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी !

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  26. हिन्दीकुंज की सराहना से लेखनी को मान मिला । आपका स्वागत एवं सादर आभार 🙏

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