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Saturday, May 7, 2022

“किताबें” [हाइबन]



दिसम्बर की कड़ाके ठंड और उस पर ओस भरी हवाओं के साथ रुकती थमती बारिश…पिछले एक हफ़्ते  से बिछोह की कल्पना मात्र से ही आसमां के साथ मानो बादल भी ग़मगीन हैं ।       

                              जीवन का एक अध्याय पूरा हुआ । दूसरे चरण के आरम्भ के लिए बहुत कुछ छोड़ना है । जिसकी कल्पना 

हर पल छाया की तरह मेरे साथ रही । गृहस्थी के गोरखधंधे भी अजीब हैं  पिछले पाँच सालों से कम से कम सामान रखने के 

फेर में न जाने कितनी ही चीजों को  देख कर अनदेखा करती 

आई  हूँ कि जब इस शहर में रहना ही नहीं तो सामान भी बढ़ाना क्यों ? मगर सामान है कि सिमटने का नाम ही नहीं लेता । 

और अब सब से बड़ी समस्या जो मेरी प्रिय भी है मुँह खोले खड़ी 

है  मेरे सामने वह है मेरी किताबें …, कितनी ही किताबें  संगी 

साथियों को देने के बाद भी मेरे आगे रखी हैं जिनको साथ ले 

जाना या छोड़ कर जाना दोनों ही काम दुष्कर है मेरे लिए ।जान-पहचान  और संगी- साथियों से विदा के समय मेरी प्रतिक्रिया 

कल क्या होगी कल पर छोड़ती हूँ । मगर आज मेरे हाथों बक्से 

में बन्द होती मेरे एकान्तिक क्षणों की  संगिनी अपनी समग्रता के साथ उपालम्भ भाव से जैसे मुझ से सवाल करती  हैं -

बोली अबोली  ~

काहे चली बिदेस

निष्ठुर संगी ।


***


16 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-5-22) को "पोषित करती मां संस्कार"(चर्चा अंक-4423) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. सृजन को मंच की चर्चा में सम्मिलित कर मान देने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !

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  3. हाय !आपने तो मेरी भी दुखती रग पर हाथ रख दी। मेरी भी शादी के बाद घर में यही समस्या थी कि-इसकी इतनी किताबों का क्या करें।जीवन ने रूककर कही रहने ही नहीं दिया और बेचारे "किताबों" के साथ ये समस्या बनी ही रही। मेरी माँ को भी मरते-मरते किताबों की ही फ़िक्र थी उसके पास भी अलमारी भर के किताबें थी।
    बोली अबोली ~

    काहे चली बिदेस

    निष्ठुर संगी ।कोई जबाब नहीं है इसका। बहुत ही सुंदर सृजन मीना जी,सादर नमन आपको

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  4. मन की बात साझा करने के लिए स्नेहिल आभार कामिनी जी ! आपका पुनः आना … स्नेह देना ,दिल तक पहुँचा । हार्दिक आभार कामिनी जी !
    सस्नेह वन्दे!

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  5. कितना भी सोचो कितना भी करो, लेकिन किताबों का मोह भी बच्‍चों से कम नहीं होता

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  6. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार कविता जी ।

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  7. मन की बात कह दी आपने

    किताबें ही जीवन हैं
    सुंदर पोस्ट

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  8. सृजन सार्थक हुआ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से.., हार्दिक आभार आ. ज्योति खरे सर !

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  9. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 29/05/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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  10. पाँच लिंकों का आनन्द पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय कुलदीप जी।

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  11. सुन्दर, मार्मिक पोस्ट सादर अभिवादन

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  12. आपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार । सादर वन्दे!

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  13. हर किताब प्रेमी के दिल की बात कह दी मीना दी आपने।

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    1. आपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी ।

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  14. पुस्तकों के प्रति यही भाव आते हैं । हमारे बाद तो बेचारी कबाड़ में ही जाने वाली हैं । मनोव्यथा बहुत सुंदरता से व्यक्त की है ।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ । हृदय से बहुत बहुत आभार । सस्नेह सादर वन्दे 🙏

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