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Thursday, August 27, 2020

"बरफी" 【प्रथम किश्त】

पिछले कुछ दिनों से रह-रह कर मेरी स्मृति में ‘बरफी भुआ” का चेहरा कौंध रहा है। एक दिन अचानक घर की महरी ने काम करते-करते कहा -तुम्हारा सुबह जल्दी काम पर जाने का समय और शाम को सर्दियों में देर हो जाने से काम का हिसाब नही बैठ रहा, मेरे घर में छोटा बच्चा भी है तुम्हारे यहाँ बरफी काम कर दे क्या?
            पहले के समय में घरों पर काम करने आने वालियों को आज की तरह ‘मेड’ या नाम लेकर कम ही पुकारा जाता धा । उम्र में बड़ी हो तो ताई-चाची का सम्बोधन और उनके घर की बहू-बेटी से भाभी,बहन और भुआ का रिश्ता स्वमेव ही जुड़ जाया करता था यहाँ मेरी हमउम्र माँ से बड़ी औरत को बरफी ही कह रही थी जो मेरी नजरो में अशिष्टता थी । मगर वो ही क्या सभी पीठ पीछे बरफी और मुँह पर ‘बरफी भुआ’ बुलाते थे । बचपन में  मैंंने भुआ को अक्सर मोहल्ले के घरों में जिनके यहाँ गाय-भैसें थी घास के गट्ठर लाते और फुर्सत में घर के सामने की खण्डहरनुमा हवेली के चबूतरे पर बैठकर बीड़ी फूंकते देखा था। मेरा बाल मन उनकी बीड़ी की लत को सहज ही स्वीकार नही कर पाता था , अपनी गहरी सोचती आँखों के साथ उस समय वे मुझे एक ‘पहेली’ जैसी नजर आती थीं। उनके लिए मेरे हाँ करते ही बरसों पुरानी महरी ने चैन की सांस ली।
अगले दिन सुबह-सुबह एक दुबली-पतली बूढ़ी सी औरत ने मेरा नाम पुकारा। झुर्रियों भरा चेहरा जहाँ जीवन में उठाए कष्टों का परिचय दे रहा था वहीं धंसी हुई आँखों में आज भी उतनी ही गहराई थी और चिर परिचित आदत भी आज भी वही की वही थी।मुड़ी-तुड़ी साड़ी के कोने में बंधे बीड़ी के बण्डल को खोलते हुए बोली-’तुझे बुरा ना लगे तो एक बीड़ी पी लूं ,लत लग गई अब छूटती ही नही।’ मैंंने कहा- छोड़ दो भुआ सेहत खराब होती है । तो जवाब मिला - 'तेरी तरह किसी ने ना की सेहत की फिक्र नही तो कब की छोड़ दी होती' यह कह कर फीकी सी हँसी हँस दी और बोली - ‘कमली ने बोला है तुम्हारे यहाँ काम करने को।’  झिझकते हुए मैंने पूछा -झाड़ू-बर्तन का काम है भुआ, करोगी ? क्योंकि बालपन से  ही उन्हें केवल गाय-भैसों की देखभाल करते ही देखा था।
      ‘हाँ बेटा ! अब पहले की तरह लोगों ने पशु पालने बन्द कर दिए तो पापी पेट के लिए तो कुछ करना ही पड़ेगा,ये तो बखत पर खर्चा-पानी  मांगता है ।' यह कहते हुए बरफी भुआ ने उसी दिन से घर का काम संभाल लिया। सर्दियों में दिन छोटे होने के कारण और बर्तन-सफाई के अतिरिक्त वह और भी दो काम कर देती जिसे मुझे बड़ी राहत मिली। 
       निर्धारित गतिविधियों के अनुसार मैं और भाई अपने काम पर पर चले जाते। घर पर मेरा बेटा रहता जो स्कूल से आने के बाद अपनी कॉमिक्स या होमवर्क जैसे कामों में लग जाता। कई बार तो मेरे आने से पहले ही वे काम कर के चली जाती। उनकी व मेरी बोल-चाल बड़ी सीमित मात्रा में थी ,छुट्टी वाले दिन मैं अतिरिक्त कामों में लगी रहती। कुछ महिनों बाद अचानक एक दिन भुआ का स्नेहिल स्वर सुना -’आज बच्चे की हँसी सुनी है ,आज घर में रौनक आई है ; तुम तीनों तो सदा घर के कोनों में रखी चीजों जैसे लगते हो।’ हुआ यूं कि मेरी बहन कुछ दिनों के लिए ससुराल से आई थी और उसके आते ही मैं भाई और मेरा बेटा सचमुच सक्रिय हो उठे थे।दरअसल सच यह भी था कि बरसों से साथ रहने के आदी हम अपनी बहन की कमी एक शिद्दत से महसूस करते थे। उसके आने से हमारा घर सचमुच चहक उठा था।
             बरफी भुआ का ममतामयी रुप तब और भी गहरेपन सॆ दिखा जब बहन वापस ससुराल जा रही थी, भुआ ने अपने पुराने अन्दाज में साड़ी का पल्लू टटोला तो मुझे बड़ी खीज हुई कि अब सब के सामने बीड़ी पीयेंगी लेकिन देखा तो उनके हाथ में बीड़ी के बण्डल की जगह पाँच रुपये का नोट था। बहन के हाथ में रखती हुई बोली - “बेटी सास को माँ, ननदों को बहन समझना और देवरानी-जेठानी को सदा सवाई रखना। “बहन ने झिझकते हुए कभी हथेली में रखे पाँच रुपये के नोट को तो कभी मेरी ओर देखा मगर भुआ के अपनेपन को अस्वीकार करने की हिम्मत मुझ से नही हुई।
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【अगले अंक में समाप्त】

12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार अनीता सृजन को चर्चा मंच पर मान देने
      हेतु ।

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  2. बहुत ही शानदार आपका स्मरण.
    कई बार हमारे साथ रहने वालों के साथ हमारा एक ऐसा रिश्ता बन जाता है जिनके जाने के बाद हमें वह हमेशा याद रहता है

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    1. मनोबल संवर्द्धन करती सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा ..हार्दिक आभार सलाई सिंह राजपुरोहित जी ।

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  3. पहले रिश्ते बन जाते थे आत्मीयता के कारण जिसका अब अभाव है
    बहुत अच्छा संस्मरण मीना जी

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    1. उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर !

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  4. Replies
    1. उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार सर !

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  5. Replies
    1. सादर आभार सर आपकी उपस्थिति हेतु 🙏

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  6. भुआ कहने के अपनेपन को महसूस कर भुआ बन गयी वरफी
    बहुत सुन्दर...

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    1. उत्साहवर्धित करती प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार सुधा जी.

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