पंडित जी सिर झुकाए मंडप के नीचे बैठे कहीं
गहरी सोच में डूबे एक तिनके से कुछ कुरेदते हुए सोच रहे
थे कि शादी की यह आखिरी रस्म पूरी हो तो वह भी
घर की राह ले । घर की औरतें और आदमी बेटी की
विदाई से पूर्व इधर -उधर व्यस्त होने का दिखावा कर
रहे थे वही बाहर के लोगों में अलग कानाफूसी चल
रही थी । दूल्हा और उसका परिवार कहीं दिखाई नहीं
दे रहा था । बाराती खा -पीकर या तो विदा हो चुके थे
या डेरे में तान कर सो रहे थे ।
थे कि शादी की यह आखिरी रस्म पूरी हो तो वह भी
घर की राह ले । घर की औरतें और आदमी बेटी की
विदाई से पूर्व इधर -उधर व्यस्त होने का दिखावा कर
रहे थे वही बाहर के लोगों में अलग कानाफूसी चल
रही थी । दूल्हा और उसका परिवार कहीं दिखाई नहीं
दे रहा था । बाराती खा -पीकर या तो विदा हो चुके थे
या डेरे में तान कर सो रहे थे ।
अचानक मंडप के नीचे सरगर्मी बढ़ती दिखी ।
दूल्हे ने निर्धारित आसन पर आ कर बैठते हुए
कहा - "रस्में पूरी कीजिए पंडित जी ! '
सहमे से स्वर में दुल्हन के पिता ने
कहा - "समधी जी और बाकी सब …,"
दूल्हे ने बात को रोकते हुए सवाल किया - "फेरे हो गए..
आपकी बेटी की जिम्मेदारी किसकी …?" और पंडित की तरफ देखते हुए कहा - "बहुत देर हो गई.. जल्दी कीजिए । आगे भी जाना है ..भोर होने वाली है।"
पंडित जी के मंत्रोच्चार के साथ ही मानो
पूर्व की लालिमा ने घर के आंगन में सुनहली भोर के
आगमन की दस्तक दे दी थी ।
आगमन की दस्तक दे दी थी ।
★★★
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteब्लॉग का नाम आ्रहान रखा है आपने।
आह्वान ज्यादा सटीक रहता।
जी सर...,'आहान' रखा । आपका बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन एवं सुझाव हेतु 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर!! आदर्श स्थापित करती सार्थक लघुकथा।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु स्नेहिल आभार कुसुम जी ।
Deleteगहरी कसक छोड़ती लघुकथा कथा.हार्दिक बधाई आदरणीय मीना दीदी नए ब्लॉग हेतु 🌹
ReplyDeleteगद्य सृजन के लिए आप सबका उत्साहवर्धन मार्ग प्रशस्त करेगा। सस्नेह आभार अनुजा ।
ReplyDeleteमीना जी ,
ReplyDeleteइक कसक , इक उम्मीद , इक नई आस का अंकुर लिए लघुकथा जिसने अपने अंदर बहुत पुरानी लम्बी लम्बी कहानिया और किस्सों को समा रखा है , सुनते आये जिन्हे हम सालों से :)
इक अजब सी ख़ुशी प्रदान करती कथा , बस आपका ये आ्रहान सार्थक हो और शुरआत हो नई रीतों को
नए ब्लॉग के लिए ढेरों शुभकमानएं
आपको इक ख़ास धन्यवाद भी कहना था मुझे। ...मेरे लेख "नील लोहित रंग " को दुबारा पोस्ट करने पर भी आपने उसे फिर से अपना समय और टिप्पणी दी
प्रस्सनता और संतोष प्रदान करने की बात ये की, आपने फिर आत्मीयता और स्नेह से टिप्पणी दी
आप अच्छी लेखिका ही नहीं बहुत अच्छी इंसान भी हैं, सहज और अच्छी सोच और विचारधारा रखती हैं
सादर नमन
जोया जी आप बहुत बढ़िया लिखती हैं मैं प्रतीक्षा करती हूँ आपकी पोस्ट की । मेरी कोशिश रहेगी मैं "मंथन" की तरह "आहान" को पूरा समय दूं । आप सबका साथ और स्नेह मुझे इस दिशा में आगे बढ़ने में प्रोत्साहित करेगा । आपको लघुकथा अच्छी लगी लिखना सफल हुआ । असीम आभार जोया जी ।
Deleteसमर्थकों (फालोबर्स) का विजेट भी लगा लीजिए इस ब्लॉग में आदरणीया।
ReplyDeleteलगा दिया आदरणीय । मार्गदर्शन के लिए सादर आभार ।
Deleteबहुत ही बढ़िया ,सार्थक लघु कथा ,
ReplyDeleteमनोबल संवर्द्धन के लिए बहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
Deleteप्रिय मीना जी, आपको नन्ज़ेब्लॉग की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। मंथन की ही तरह ये ब्लॉग भी आपके चिंतनौर भावनाओं को नये आयाम दे यही कामना है। जल्द ही प्रतिक्रिया देती हूँ । 🙏🙏🌹🙏🙏
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल शुभकामनाओं और आशीर्वचनों से अभिभूत हूँ
Deleteअत्यंत आभार प्रिय रेणु बहन🙏🙏🌹🙏🙏
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सृजन को मान देने के लिए सादर आभार सर!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर.
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