फरवरी से अप्रैल के मध्य वसंत ऋतु में प्रकृति अपने सौंदर्य की
अद्भुत छटा बिखेरती है । ऐसा माना गया है कि माघ महीने की
शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होते ही मौसम सुहावना हो
जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद
जाते हैं । खेत सरसों के फूलों और गोधूम की बालियों से महमहा उठते हैं ।
वसन्तोत्सव से होली तक राग- रंग से सरोबार इस
समय को ऋतुराज कहा गया है । इसके प्रभाव से तो गोपेश्वर भगवान श्री कृष्ण भी अछूते नहीं रहे तभी तो कुरुक्षेत्र समर भूमि में अर्जुन को विराट स्वरूप के दर्शन करवाते हुए गीता उपदेश में कहा था - “मैं ऋतुओं में वसंत हूँ।”
वसंत के आगमन का अनुभव मेरी दृष्टि में एक अलग सी
पहचान लिए है - “बाल्यावस्था में रात्रि काल में हल्की सी सर्दियों में चंग की थाप के साथ मन-मस्तिष्क पर सदैव वार्षिक परीक्षा की दस्तक कानों में मृदंग लहरियों सी बज उठा करती थी और वसंत पंचमी के दिन पीले फूलों की सुगंध और केसरिया रंगों के रस में
डूबी मिठाइयों की महक से आप्लावित मंदिर प्रांगण में सरस्वती आराधना में बन्द दृगपटलों में पूरे साल की कमाई अर्थात् अंक-तालिका के विषयवार अंकों का लेखा-जोखा साकार हो
उठता था।”
ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती गई त्यों-त्यों बोर्ड परीक्षाओं
की फिर यूनिवर्सिटी की परीक्षाओं की चिंता पर्वत सी अचलता के साथ कलेजे पर बैठी रहती । युवावस्था में शिक्षा-व्यवसाय की अति व्यस्तताओं के बीच वसंतोत्सव पर्वों का हर्षोल्लास और प्रकृति का सौन्दर्य मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने में सदा ही असमर्थ रहता ।
अति व्यस्तताओं से दूर फ़ुर्सत के पलों में सागर
किनारे अठखेलियाँ करती लहरों के सानिध्य में पीले फूलों से सरसी सरसों और स्वर्ण सदृश गोधूम की पकती बालियों को देखे बिना मैं
कैसे कह दूँ-
“ओह !! ऋतुराज वसंत !! मधुमास वसंत !!”
***
जी सच है आधा जीवन हर वर्ष आने वाली परीक्षाओं में ही निकल जाता है ,उसके बाद भी जैसे प्रतिदिन -प्रतिपल एक परीक्षा ही दे रहे होते हैं।
ReplyDeleteआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया । हृदय से असीम आभार लोकेष्णा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-2-23} को "सिंहिनी के लाल"(चर्चा-अंक 4642) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
Deleteचर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी ! सादर सस्नेह वन्दे
बसंत ऋतु का अति मनोहारी चित्रण, इस मौसम का जादू सबके सिर पर चढ़ कर बोलता है
ReplyDeleteआपकी मान भरी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदय से असीम आभार! सादर स्नेहिल नमस्कार 🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर,बासंती छटा बिखेरती हुई मोहक प्रस्तुति
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी ! सादर सस्नेह वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुंदर मनोहारी सृजन
ReplyDeleteआपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से बहुत बहुत आभार । सादर वन्दे ।
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