के पेड़ के पास खुलती है जहाँ बैठ कर पिछले कुछ दिनों से पड़ोस की महिलाएं भजन कीर्तन करती हैं ।
आज वह लेट थी जल्दी जल्दी काम समेट कर बाहर निकली तो सामने से फूल, अगरबत्ती और पानी से भरे कलश को थामे आती एक महिला से टकरा गई ।
“ओह ! आज देर हो गई…,आप आ गई काम पर जाने के लिए।” उनके स्वर में बैचेनी भरी थी लेकिन कदम ऑटो की प्रतीक्षा में खड़ी वसुंधरा को देख कर थम गए । वसुंधरा को पहली बार समझ में आया कि वह भी किसी के लिए घड़ी का सा काम
करती है ।
“आप बीमार रहती हैं चाची ! आराम किया करें ना क्यों भागती हैं सुबह-सुबह ।” वह सामने से आते ऑटो को देखते हुए व्यस्त
भाव बोली ।
“भगवान का नाम लेने के साथ-साथ इन सबके चर्चा-पुराण से अपने घर-परिवार को सुरक्षित रखने के लिए वसु ! कम से कम इन्सान सामने हो तो कोई मुँह पर बुराई तो नहीं करता।” साड़ी के पल्लू से माथे का पसीना पोंछते हुए वे थोड़ी सी व्यग्रता से बोली ।
“लेकिन आज की चर्चा तो हो गई चाची !” कहती हुई वसुंधरा उन्हें दोराहे पर खड़ा छोड़ ऑटो की ओर बढ़ गई ।
***
[चित्र :- गूगल से साभार]
बहुत खूब।
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीतीश जी ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन का चयन करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आलोक सर 🙏
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार मधुलिका जी ।
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार भारती जी ।
Delete"लेकिन आज की चर्चा तो हो गई चाची"
ReplyDeleteजबरदस्त जवाब !!!
सत्संग भजन कीर्तन के समानांतर चर्चा पुराण की शानदार लघुकथा।
बहुत सुंदर मीना जी।
Deleteआपकी सराहना सम्पन्न समीक्षा ने सृजन को सारगर्भित सार्थकता प्रदान करने के साथ - साथ मेरे उत्साह को भी द्विगुणित किया । हृदयतल से स्नेहिल आभार कुसुम जी !
चर्चा पुराण से कब तक बचा जा सकता है ? कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना....
ReplyDeleteसार्थक लघुकथा
सारगर्भित प्रतिक्रिया और आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने लेखन को सार्थक किया । हार्दिक आभार मीना जी !
Deleteचर्चा पुराण से बचने की कोशिश ही उसमें बाधा है, उससे बचना यदि सहज हो तो कोई बात ही नहीं, सुंदर लघु कथा!
ReplyDeleteसारगर्भित प्रतिक्रिया और आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने लेखन को सार्थक किया । हार्दिक आभार अनीता जी !
Deleteकम से कम इन्सान सामने हो तो कोई मुँह पर बुराई तो नहीं करता।” सही कहा पर कब तक किसी का मुँह बंद करने के लिए कोई उनके साथ बना रहे...भजन कीर्तन के साथ ये चर्चा पुराण अब ज्यादा ही प्रसिद्धि पा रहा है...।
ReplyDeleteसार्थक लघुकथा।
सारगर्भित प्रतिक्रिया और आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने लेखन को सार्थक किया । हार्दिक आभार सुधा जी ।
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