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Friday, December 24, 2021

"कड़वा सच"

“मुझे नहीं रहना व्यवहारिकता के साथ..,इस के साथ मुझे अच्छी वाइब्स नही आती।” - स्वाभिमान कुनमुनाया ।

“तुम्हारी उच्छृंखलता पर अंकुश लगाने के लिए बहुत जरूरी है तुम्हारा इसके साथ होना…, इसके साथ रह कर कुछ सीखो।” आवेश में परम्परा चीखी ।

“मेरा दम घुटता है इसके साथ ।” स्वाभिमान बहस के

 मूड में था।

“याद रखो ! बिना व्यवहारिकता के तुम्हारा अस्तित्व शून्य है।”दहाड़ते हुए परम्परा ने कहा और आवेश में एक झन्नाटेदार थप्पड़ स्वाभिमान के चेहरे पर जड़ दिया ।

“तुम्हारी इन्हीं हरकतों से नैतिकता पहले ही घर छोड़ चुकी

है…,यही हाल रहा तो एक दिन इसको भी खो दोगी ।”

लड़खड़ा कर गिरते स्वाभिमान को संभालते हुए चेतना ने 

गंभीरता से कहा ।

इस कड़वे सच को सुन व्यवहारिकता इतरा रही थी और परम्परा 

के झुके माथे पर चिन्ता भरी सिकुड़न थी ।


***




22 comments:

  1. "परम्परा" यदि कठोर हो जाती है है तो उसके साथ निबाह करना थोड़ा मुश्किल हो ही जाता है। ऐसे में स्वाभिमान उदंड हो ही जाएगा और व्यवहारिकता का इतराना लाजमी।
    समय के साथ यदि परम्परा में बदलाव नहीं हुआ तो सब का नैतिक पतन हो ही जाएगा। और फिर सब दिखावें की दुनिया होती जाएगी।
    बहुत गहरी सोच और बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन मीना जी 🙏

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    1. कामिनी जी हृदयतल से आभार सृजन को सार्थक करती सारगर्भित समीक्षा हेतु । मेरी लेखनी धन्य हुई आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से।सस्नेह नमन 🙏

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
    'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार अनीता जी ।सस्नेह ...,

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  3. स्वाभिमान चेतना नैतिकता के साथ व्यावहारिक बने तो खुद नई परम्परा बना लेगा....वरना अपना स्वरूप खो कर मात्र अहंकार कहलायेगा...
    वाह!!!
    एकदम नये अंदाज में बहुत ही लाजवाब एवं विचारणीय सृजन।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न समीक्षा ने सृजन को सारगर्भित सार्थकता प्रदान की सुधा जी और मेरे उत्साह को द्विगुणित किया । हृदयतल से स्नेहिल आभार ।

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  4. वाह! अद्भुत...!
    बहुत ही शानदार.. .!

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    1. हार्दिक आभार मनीषा जी 🌷सस्नेह

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  5. स्वाभिमान जब जब भी उद्दंड होता है, स्वाभाविमान न रह कर सिर्फ अभिमान रह जाता है।
    और चेतना ही उसे अपने स्थान पर आरूढ़ करती है।
    परंपराएं तो निरुउद्देश्य होती सी स्वयं अपना अस्तित्व खोती है। चिंता तो परम्पराओं को है ही ... व्यवहारिकता तो साधन मात्र है झूठ का बाना पहने।
    अद्भुत पोस्ट ,
    अद्वितीय भाव कितना गहन मंथन करके इन पांचों शब्दों को इतनी सुंदरता से एक दूसरे का पूरक बताया है।
    बहुत बहुत सुंदर।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न समीक्षा ने सृजन को सारगर्भित सार्थकता प्रदान करने के साथ - साथ मेरे उत्साह को भी द्विगुणित किया । हृदयतल से स्नेहिल आभार कुसुम जी!

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  6. बहुत ही सुन्दर सृजन

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी!

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  8. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी!

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  9. वाह ! सोच से परे का लेखन । व्यक्तित्व के माध्यम से तो लिखना आसान है, परंतु इतनी गहनता विरले ही देखने को मिलती है आदरणीय मीना जी । बहुत ही दूरगामी संदेशात्मक और प्रेरणादायक सृजन पढ़कर बहुत सुखद अनुभूति हुई । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न समीक्षा ने सृजन को सारगर्भित सार्थकता प्रदान करने के साथ - साथ मेरे उत्साह को भी द्विगुणित किया । हृदयतल से स्नेहिल आभार जिज्ञासा जी🙏🌹🙏

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  10. शुभकामनाएं नववर्ष की

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    1. नववर्ष की शुभकामनाओं सहित हृदय से आभार जोशी सर🙏

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  11. बहुत ही शानदार लेखन... गागर में आपने सचमुच सागर भर दिया है...

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  12. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
    नववर्ष की शुभकामनाओं सहित हार्दिक आभार विकास जी ।

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  13. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 26/02/2023 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत आभार कुलदीप सिंह जी 🙏

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