Copyright

Copyright © 2024 "आहान"(https://aahan29.blogspot.com) .All rights reserved.

Monday, August 23, 2021

"कटु यथार्थ"

"यहाँ पर तो एक फैमिली रहती थी पहले अभी तो बड़ी

सुनसान लग रही है यह हवेली ।" 

बहुत समय के बाद बाहर से लौटे अंशुमन ने अपने दोस्त समीर

से चाय पीते हुए पूछा । वैसे उसे याद तो 'एक फैमिली' की

इकलौती लड़की का नाम भी था और उसके पिता का नाम

भी मगर दोस्त और उसकी पत्नी के आगे बोलना नहीं

चाहता था ।

   "पता नही क्या झगड़ा था आपस में परिवार का…,एक दिन

सुबह -सुबह चीख-चिल्लाहट की आवाज़ें आईं । हम लोगों ने

छत से देखा तो  चार-पाँच आदमी सामान बाहर फेंकते दिखे

उसके बाद से यह हवेली बंद ही पड़ी है ।" अपने बच्चे को पत्नी

की गोद में देते हुए समीर ने जवाब दिया।

         "ऐसे-कैसे कोई किसी के साथ कर सकता है ?

तुमने खामोशी कैसे ओढ़ ली ?" घटनाक्रम जान कर अंशुमन

आवेश में आ गया ।सफाई देते हुए बड़ी गंभीरता से समीर

बोला- "देख सीधी सी बात है हम तो नये आए लोग हैं यहाँ..,,

पूरे मोहल्ले में सब घर बंद थे पता तो सभी को था मगर एक

भी बंदा बाहर नहीं निकला । बाद में सभी ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि आपस में भाई-भाई का झगड़ा था ।  पता

नहीं कल को वे एक हो जाएँ ,हमें क्यों टांग अड़ानी किसी के 

फटे में ।"

            हाथ की चाय का आखिरी घूंट अंशुमन को कड़वा 

लगा कटु यथार्थ जैसा ।

                               ***

32 comments:

  1. व्वाहहहहह..
    सादर..

    ReplyDelete
  2. हार्दिक आभार यशोदा जी . सादर..

    ReplyDelete
  3. समाज को प्रतिबिंबित करती लघु-कथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार विकास जी!

      Delete
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-8-21) को "कटु यथार्थ"(चर्चा अंक 4166) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा


    ReplyDelete
    Replies
    1. चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !

      Delete
  5. समाज की कटु सच्चाई बयान करती उत्कृष्ट लघुकथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

      Delete
  6. समस्या तो यही है मीना जी आज के समाज की - हमें क्या? और यह बात छोटे स्तर से (जैसा कि लघुकथा में वर्णित है) से बड़े स्तर तक विद्यमान है। अपना कुछ बनता-बिगड़ता हो तो लोग मामले से जुड़ते हैं, नहीं तो जिस पर गुज़रे, वो जाने। दुर्भाग्यपूर्ण है यह यथार्थ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन के मर्म को सार्थक करती आपकी हृदयस्पर्शी समीक्षा के लिए आभारी हूँ जितेन्द्र जी ।

      Delete
  7. परिवार समाज में व्याप्त ये उदासीनता अब देश व्यापी हो गई है , किसी को दूसरे की परवाह ही नहीं रही।
    हर व्यक्ति बस अपने तक दर्द महसूस करने लगा है।
    वासुदेव कुटुंब की भावना बस किताबों तक सीमित है।
    कहीं कसक जगाती गहन लघुकथा।
    बहुत सुंदर मीना जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन के मर्म को सार्थक करती आपकी हृदयस्पर्शी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।
      आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।

      Delete
  8. "हमें क्यों टांग अड़ानी किसी के फटे में” यही विचार निगल रहा है मानवता।
    समाज के एक पहलू को दर्शाती सुंदर लघुकथा।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती हृदयस्पर्शी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार अनीता जी ।

      Delete
  9. कटु सत्य बयान करती बेहतरीन लघुकथा सखी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा, हार्दिक आभार सखी ।

      Delete
  10. कटु यथार्थ यही है, मनुष्य यथार्थ से दूर तटस्थता में रहना सहज पसंद करता है। --ब्रजेंद्रनाथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य कथन सर ! बहुत बहुत आभार आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु ।

      Delete
  11. बढ़िया लघुकथा। दुनिया ऐसी ही है। इसके बहुत से कटु यथार्थ हैं। कितनी भी कोशिश कर लें हम इसे कभी पूरी तरह नहीं समझ सकते। सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन के मर्म को सार्थक करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार वीरेन्द्र जी।

      Delete
  12. भाइयों के बीच क्या बोलें पति-पत्नी के बीच क्या बोलें सोचकर लोग तटस्थ हो जाते हैं सामाजिक दण्ड जैसी कोई बात अब रह ही नहीं गयी फिर जिसके पास पैसा है वह कोर्ट कचहरी के माध्यम से लम्बे समय बाद ही सही न्याय पा लेऔर पैसा नहीं तो शषण का शिकार.... छोटी सी लघुकथा में समाज की कटु यथार्थ बखूबी स्पष्ट किया है आपने..बहुत बहुत बधाई आपको।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सृजन के मर्म को सार्थक करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार सुधा जी ।

      Delete
  13. बहुत सुन्दर लघुकथा

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा, हार्दिक आभार मनोज जी।

      Delete
  14. Replies
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा, हार्दिक आभार विश्वमोहन जी ।

      Delete
  15. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपकी मान भरी उपस्थिति हेतु सरिता जी ।

      Delete
  16. वाह लाजबाव सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा, हार्दिक आभार भारती जी।

      Delete
  17. उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे

    हमारी नयी पोर्टल Pub Dials में आपका स्वागत हैं
    आप इसमें अपनी प्रोफाइल बना के अपनी कविता , कहानी प्रकाशित कर सकते हैं, फ्रेंड बना सकते हैं, एक दूसरे की पोस्ट पे कमेंट भी कर सकते हैं,
    Create your profile now : Pub Dials

    ReplyDelete
    Replies
    1. सूचना के लिए बहुत बहुत आभार🙏

      Delete