अपना वजूद भी इस दुनिया का एक हिस्सा है उस पल को
महसूस करने की खुशी , आसमान को आंचल से बाँध
लेने का हौंसला , आँखों में झिलमिल -झिलमिलाते सपने
और आकंठ हर्ष आपूरित आवाज़ - “ मुझे नौकरी मिल गई है , कल join करना है वैसे कुछ दिनों में exam भी हैं…,
पर मैं सब संभाल लूंगी।” कहते- कहते उसकी आवाज
शून्य में खो सी गई ।
मुझे खामोश देख वो फिर चहकी - “ मुझे पता है
आप अक्सर मुझे लेकर चिन्तित होती हो , मैंने सोचा सब
से पहले आप से खुशी बाँटू। “
उसकी बात सुनते हुए मैं सोच रही थी अधूरी पढ़ाई ,
गोद में बच्चा ,घर की जिम्मेदारी और ढेर सारे सामाजिक
दायित्व । ये भी नारी का एक रुप है कभी बेटी , कभी पत्नी
तो कभी जननी । हर रूप में अनथक परिश्रम करती है और
अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए अवसर की तलाश
में रहती है ।अवसर मिलते ही पल्लवित होती है अपनी पूर्ण सम्पूर्णता के साथ।
उसके दमकते चेहरे और बुलन्द हौंसलों को
देखकर मुझे बेहद खुशी हुई और यकीन हो गया कि एक
दिन फिर वह निश्चित रूप सेे इस से भी बड़ी खुशी मुझसे
बाँट कर मुझे चौंका देगी ।
***
प्रेरक लघु कथा ।
ReplyDeleteआपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया सृजन को सार्थकता देती है और मुझ में नवउत्साह का संचार करती है । हार्दिक आभार मैम 🙏
Deleteअपने बलबूते पर जो सफलता हासिल होती है उसका कोई सानी नहीं ! उससे मिले आत्मविश्वास का तो कहना ही क्या !
ReplyDeleteआपकी ऊर्जावान सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन का मान बढ़ाया । हृदय से असीम आभार सर!
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी!
Deleteशानदार।
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीतीश जी।
Deleteसारगर्भित सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शान्तनु सर !
Deleteआत्म विश्वास से लबरेज़ सुन्दर लघु कथा!!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुपमा जी!
Deleteवाह!बहुत प्रेरक लघुकथा मीना जी ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी!
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमीना जी, इन स्वयं-सिद्धाओं ने ही परिवारों को, समाज को और देश को बिखरने से टूटने से, अब तक बचाए रखा है.
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर 🙏
Deleteसुन्दर लघु कथा
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर!
Deleteहृदयस्पर्शी लघुकथा...
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शरद जी!
Deleteउसके दमकते चेहरे और बुलन्द हौंसलों को
ReplyDeleteदेखकर मुझे बेहद खुशी हुई और यकीन हो गया कि एक
दिन फिर वह निश्चित रूप सेे इस से भी बड़ी खुशी मुझसे
बाँट कर मुझे चौंका देगी ।...जीवन में यही आत्मसंतुष्टि का भाव जी तो जीवन को सम्पूर्ण और सार्थक बनाता है, आख़िर एक स्त्री ही तो उस स्त्री की मनोदशा समझ सकती है जो घर बाहर दोहरी जिम्मेदारियों से जूझती हुई जीवन में आगे बढ़ रही है,सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय मीना जी।
आपके विचारों से सहमत हूँ जिज्ञासा जी! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । असीम आभार आपका ।
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रेरक लघुकथा....
ReplyDeleteअपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए आज नारियां घर बाहर सब संभाल रही हैं और यही सही भी है आज की सहानुभूति कब दया बन जाती है ये तो नारियां झेल ही चुकी...अब कोई दया नही स्वयं सिद्धा बनना है ।
लाजवाब।
आपका कथन सत्य है...,स्वयं की क्षमताओं पर यकीन कर आगे बढ़ना विपरीत परिस्थितियों में आना ही चाहिए । सराहनीय सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हार्दिक आभार सुधा जी!
Deleteनारी समर्थ है, सार्थक है सब कुछ कर सकती है ...
ReplyDeleteप्रेम को नया मुकाम देती हुई लघु कहानी ...
गद्य सृजन के इस ब्लॉग पर आपकी प्रथम प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत नासवा जी । सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला ।हृदय से असीम आभार ।
Deleteहृदय स्पर्शी लघुकथा मीना जी ।
ReplyDeleteएक नारी का आत्म गौरव उसके अथक परिश्रम और निज पर विश्वास की देन है ।
एक नारी कितने किरदार जीती है ।
बहुत बहुत सुंदर।
आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया सृजन को सार्थकता देती है और मुझ में नवउत्साह का संचार करती है । हृदय की गहराइयों से असीम आभार कुसुम जी 🙏🌹🙏
Deleteप्रेरक लघुकथा। हाँ यह सच है कि अवसर मिलते ही महिलाएँ अपनी योग्यता के साथ पूरा न्याय करते हुए दुनिया को दिखा देती हैं कि हर हाल में जीत सकती हैं।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । हृदयतल से असीम आभार वीरेन्द्र जी!
Deleteप्रेरक कहानी जिसमें मुझे अपना संघर्ष का दौर दिखता है।
ReplyDeleteसही कहा आपने मीना जी !अपनी पहचान और आत्मनिर्भरता के लिए लड़कियों को संघर्ष करना ही पड़ता है । ऐसे समय में आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच उनकी राहें आसान कर देती है । आपकी प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया.. हृदयतल से आभार ।
ReplyDeleteप्रेरक और सराहनीय कथानक प्रिय मीना जी | एक लडकी में मानो ईश्वर ने अदम्य शक्ति भर दी है | अपनी क्षमता से कहीं अधिक बोझ उठाने में माहिर नारी का प्रबन्धन में कोई सानी नहीं |
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया.. हृदयतल से आभारी हूँ रेणु जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर |
ReplyDeleteसादर आभार आलोक सर ।
ReplyDelete