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Monday, May 10, 2021

"कब बोलोगी"【कहानी】

 बहुत दिनों बाद अपने  गाँव जाना हुआ तो पाया कि शान्त‎ सा कस्बा अब छोटे से शहर में तब्दील हो गया और बस्ती‎
 के चारों तरफ बिखरे खेत -खलिहान सुनियोजित बंगलों 
और कोठियों के साथ-साथ शॉपिंग सेन्टरों में बदल गए हैं।  जिन्हें देख शहरों वाले कंकरीट और पत्थरों के जंगलों 
का सा अहसास हुआ मगर अन्दर की और जाते ही लगा
 कुछ भी तो नही बदला है। वक्त के साथ पुरानी गलियाँ,
 घर और हवेलियाँ सब बूढ़े हो गए थे ।
        घर के सभी‎ सदस्यों‎ से मिल कर  कुछ उनकी सुन
 कर‎ तो कुछ अपनी सुना कर  अड़ोस-पड़ौस का हाल 
जानना तो बनता ही था। ऐसे मे उसके बारे में….,जो अजनबीयत की चादर में लिपटी अपने तल्ख स्वभाव के कारण जानी जाती थी……,  ना जानती ऐसा संभव ही
 नही था  सो फुर्सत मिलते ही चल दी उस से मिलने।
 सुना है वह आज भी दो चौक की पुराने जमाने की  उसी
 दो मंजिली हवेली में अकेली ही रहती है।  उसे देख कर
 लगा जैसे  पुरानी हवेलियाँ सर्दी, गर्मी‎ और बारिश झेलते- झेलते मटमैली हो जाती हैं वैसे ही उम्र ने उसके व्यक्तित्व 
में  भी शिकन डाल थका सा बना दिया हैं कुछ बोलते से 
चेहरे के साथ व्यग्र सी आँखें‎  मुझे देख कर मुस्कुरा 
भर दी---- “कैसी हो? कब आई?”  जैसे दो जुमले मेरी
 तरफ‎ उछाल कर हवेली को ताला लगा कर वह चल दी 
शायद थोड़ा जल्दी‎ में थी। एकबारगी उसका व्यवहार‎ 
अजीब‎ लगा लेकिन पुरानी बातें याद कर मन की
 शिकायत जाती रही।

                     स्वभाव से रुखी और मूडी….,बहुत कम लम्बाई के कारण बच्चों  की भीड़ में खो जाने वाली वह प्रतिमा सुशिक्षित और घरेलू‎ कार्यों में दक्ष महिला थी। छुट्टी‎ वाले दिन हवेली से बाहर तीन- चार चक्कर‎ लगाना उसकी दिनचर्या का अविभाज्य हिस्सा‎ था। जरुरत पड़ने पर कभी‎ किसी अचार की विधि तो कभी‎ आयुर्वेदिक दवाई के बारे जानकारी‎ के लिए‎ उसके पास जाती कस्बे की औरतें 
उसकी पीठ‎ पीछे खीसें निपोरती उसकी जन्म‎ कुण्डली 
खोल कर बैठ जाती…., कभी‎ चर्चा‎ का विषय उसकी
 शादी होना तो कभी‎ कुँआरी होना होता। शुरू‎आत में मुझे लगा कि ये कथा‎-कहानियां जिस दिन उसको पता चल जायेगी  वह बखिया उधेड़ देगी सब की लेकिन बाद में
 एक दिन स्वेटर का डिजायन पूछने के सिलसिले में बात 
होने पर पता चला कि उसे सब बातों का पता है। मेरे पूछ‎ने
 पर कि--”आप कहाँ से हैं?” उसने वापस मुझी पर सवाल‎ दाग दिया ----”क्यों पता नही है ? सब तो बातें करते हैं, मैं कौन हूँ‎ , कहाँ से हूँ‎।”  उसके प्रश्नों से बौखला कर मैंने 
जवाब दिया---”नही जानती कुछ भी,कोई बात नही 
करता आपके बारे में…., कम से कम मैंने तो नही सुनी।” 
यह कह कर उसको  शान्त‎ कराना चाहा मगर मुझे ऊन के धागों और सिलाईयों के पीछे उलझे चेहरे की  उलझन 
और बैचेनी साफ दिखाई‎ दे रही थी।
                    जहाँ तक मैं‎ उसके बारे में‎ जानती थी‎ वो 
यही था कि अपने दूर के रिश्तेदार की हवेली में रहती है 
और पास ही कहीं ग्रामीण‎ शाखा‎ बैंक में नौकरी करती है । हवेली के मालिक‎ पूर्वोतर भारत के किसी शहर में‎ रहते हैं, हवेली की देखभाल‎ पुश्तैनी नौकर के भरोसे थी लेकिन ‎
किसी संबंधी के हाथों‎ जायदाद की देखरेख हो इससे बढ़िया और क्या हो सकता है सो सहर्ष हवेली के दो कमरे उसके लिए खोल  दिए‎। कुछ‎ ही महिनों में ही उसके कड़े और 
शक्की व्यवहार‎ से तंग आ कर नौकर ने मालिकों से  कार्य‎ करने में असमर्थता जता कर  मुक्ति‎ पाई‎ और परिवार
 सहित अपने गाँव‎ की शरण ली। उसके बाद यह हवेली 
की केयर-टेकर पदस्थापित हुई। पूरे घटना‎क्रम का पता
 चलने पर मुझे लगा था कैसे रहेगी वह इतनी बड़ी हवेली 
में‎ अकेली। दोपहर में उस गली से गुजरो तो डर लगता है, 
पूरी गली सूनी और उस पर चार-पाँच खण्डहरनुमा हवेलियाँ जो “बीस साल बाद” फिल्म के रहस्यमयी वातावरण‎ की 
याद दिलाती है। लेकिन‎ वह जमी रही लगभग दस वर्षों
‎ तक देखा उसे यूं ही अकेले‎ रहते और काम पर जाते, 
माता-पिता, भाई-बहन…,किसी को भी कभी‎ आते रहते 
नही। कभी कभी‎ बड़ी सी V.I.P सूटकेस उठाये बस-स्टैण्ड 
की तरफ‎ जाती मिलती तो मैं समझ‎ जाती अपने घर जा 
रही है। मुझे ना जाने क्यों उसके रुखे और कड़वे स्वभाव 
का कारण उसका अकेलापन लगा अन्यथा वह पढ़ी लिखी स्वावलम्बी महिला‎ थी जो अपनी मान्यता‎ओं और वर्जनाओं के साथ जीने की आदी थी । अपने सन्दर्भ‎ में मौन और
 निकट संबंधियों से दूर मानो सारी दुनिया‎ से नाराज। 
 जब भी मैं उससे मिलती एक “हैलो” का जुमला मेरी और उछाल वह कुशलक्षेम पूछती मगर जैसे ही मैं आत्मीयता जताने आगे बढ़ती वह अनजान बन व्यस्त‎ होने का बहाना जता आगे बढ़ जाती ।
           
     अपने घर की तरफ‎ जाते मैं सोच रही  थी ---हफ्ते भर हूँ यहाँ , किसी दिन उसके मन की थाह लूं ; उसे कहूँ ---’मानव जीवन अनमोल है और बहुत सारे  उद्देश्य है जीवन के…., 
नष्ट‎ होने के बाद कुछ भी तो शेष नही। मौन क्यों हो ? 
चुप्पी की चादर उतार फेंको। कुछ‎ तो बोलो....., 
"कब बोलोगी।"
---

 

 

44 comments:

  1. "मानव जीवन अनमोल है और बहुत सारे उद्देश्य है जीवन के…., नष्ट‎ होने के बाद कुछ भी तो शेष नही।"
    वाह, बहुत बढ़िया।

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    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदय से असीम आभार शिवम् जी।

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  2. वक्त के साथ पुरानी गलियाँ,
    घर और हवेलियाँ सब बूढ़े हो गए थे ।----गहन लेखन...एक दिन गांव शहर हो जाएंगे और तब केवल हमारे सपनों में गांव की तस्वीर होगी और वह भी धुंधली सी...उसकी हवा होगी, उसी में एक कच्चा सा घर होगा, ओटले और बहुत सारी यादें...। गांव खत्म होता है तब कितना कुछ खत्म हो जाता है। आपकी कहानी बहुत प्रेरक है।

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    1. कहानी के मर्म को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार संदीप शर्मा जी।

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    2. आपकी इस कहानी को अपनी पत्रिका प्रकृति दर्शन के जून अंक में लेना चाहता हूं...बेहतर समझें तो आप ईमेल/व्हाटसऐप कर दीजिएगा..

      अगला अंक ऑक्सीजन संकट पर निकलना है

      ईमेल editorpd17@gmail.com
      मोबाइल व्हाटसऐप 8191903651

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    3. जी अवश्य 🙏🙏

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5-21) को "कल हो जाता आज पुराना" '(चर्चा अंक-4062) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार कामिनी जी !

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  4. जीवन की सार्थकता प्रदान करती अनुपम कृति । सादर शुभकामनाएं।

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    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी।

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  5. मानव जीवन अनमोल है और बहुत सारे उद्देश्य है जीवन के….,

    सुंदर...जीवन का सार बताती और उस महिला के प्रति उत्सुकता जगाती कहानी....इसे और बढ़कर लंबी कहानी या लघु-उपन्यास का रूप भी दिया जा सकता है....कोशिश करके देखिएगा...

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    1. आपके सुझाव पर अमल करने का प्रयास अवश्य होगा विकास जी । लघुकथा लेखन के लिए उत्सुकता भी पहली बार आपके ब्लॉग 'दुई बात' में लघुकथा पढ़ कर ही जागी थी । आपके सुझावों का सदैव स्वागत है।

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  6. बहुत बढ़िया

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।

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  7. मीना दी, सचमुच हैम इंसान ऐसे ही होते है। जब कोई ज्यादा बोलता है तो अच्छा नही लगता और कोई कम बोलता है तो वो भी अखरता है। सुंदर कहानी।

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    1. मानव स्वभाव विश्लेषित करती सराहना के लिए हार्दिक आभार ज्योति जी।

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  8. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी 👌

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    1. आपकी सराहना भरी उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ सखी.
      हार्दिक आभार ।

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  9. नष्ट‎ होने के बाद कुछ भी तो शेष नही। मौन क्यों हो ?
    चुप्पी की चादर उतार फेंको। कुछ‎ तो बोलो.....बहुत अच्छी कहानी मीना जी..वाह

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अलकनंदा जी।

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  10. बहुत सुंदर रचना, सचमुच मानव जीवन अनमोल है

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    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदय से असीम आभार भारती जी।

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  11. ऐसे बंद फूलों की व्यथा-कथा समझना कठिन है जबतक वह स्वयं न खुले । अति सुन्दर कथा शिल्प ।

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    1. लेखन सफल हुआ आपकी मनोबल संवर्धन करती प्रतिक्रिया से..हृदयतल से असीम आभार अमृता जी।

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  12. अच्छी कहानी

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    1. हार्दिक आभार अनीता जी!

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  13. नष्ट‎ होने के बाद कुछ भी तो शेष नही। मौन क्यों हो ?
    चुप्पी की चादर उतार फेंको। कुछ‎ तो बोलो.....,

    एक दिन गांव की उजड़ी गलियों और खंडहरों से भी यही पूछते रहेंगे हम । कभी-अभी ये मौन भी बहुत कुछ कह जाता है,वैसे ही आपकी ये कहानी बहुत कुछ कह गई मीना जी,सादर नमन आपको

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  14. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदय से असीम आभार कामिनी जी! सादर अभिवादन कामानी जी!

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  15. बहुत अच्छी लगी मुझे आपकी यह रचना (सम्भवतः आपका वास्तविक अनुभव)। साझा करने के लिए आपका आभार। घटना से सम्बद्ध जो विचार एवं भाव आपने अभिव्यक्त किए हैं मीना जी, मेरे अपने विचार एवं भाव भी वैसे ही हैं।

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    1. आपने सृजन और विचारों को मान दिया इसके लिए आभारी हूँ जितेन्द्र जी !आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार ।

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  16. सुन्दर शिल्प। अपने आस पास बहुत कुछ ऐसा है।

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  17. सत्य कथन सर ! आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली असीम आभार ।

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  18. सुंदर और सार्थक प्रस्तुति

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  19. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली असीम आभार ।

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  20. जीवन के विभिन्न आयामों , गांव और शहर की तुलनात्मक मर्म को छूती अच्छी कहानी , ...लगा जैसे पुरानी हवेलियाँ सर्दी, गर्मी‎ और बारिश झेलते- झेलते मटमैली हो जाती हैं वैसे ही उम्र ने उसके व्यक्तित्व
    में भी शिकन डाल थका सा बना दिया हैं कुछ बोलते से
    चेहरे के साथ व्यग्र सी आँखें‎ मुझे देख कर मुस्कुरा
    भर दी--

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    1. आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली असीम आभार ।

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  21. बहुत सुन्दर सृजन

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार मनोज जी।

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  22. बढ़िया प्रस्तुति

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सरिता जी।

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  23. हमारे आस पास बिखरे उस मानवीय व्यवहार का आत्मीय चित्रण जो नहीं चाहता है कि मैं भी जीवन वैभव का हिस्सा बनु, वे बस इतना ही चाहते कि दुन्यादारी से मेरा कोई उद्देश्य नहीं। और यही निरउद्देश्य भाव उन्हें एक अदृश्य जड़ता में जकड़ देता है जंहा से वह जीवन को निरासा और हतोत्साहित होके देखता है। कहानी का अवसान कहानी को पूर्ण उद्देश्य देता है। बधाई

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    1. कहानी के मर्म की सुन्दर व्याख्या ने मेरी लेखनी का मान बढ़ाते हुए मुझ में सृजन के लिए नवऊर्जा का संचार किया।हृदयतल से आभार आपका अमूल्य प्रतिक्रिया हेतु 🙏

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  24. पहली बार आई हूँ ब्लॉग पर । सुंदर कहानी ।

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    1. स्वागत आपका🙏🌹🙏 आपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार!

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