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Saturday, July 18, 2020

"प्रार्थना"

  किसी भी देव-स्थल पर जाकर एक  सकारात्मकता भरा सुकून और असीम शान्ति का अहसास हमारे मन को  होता है।  मेरी नजर में इसका कारण वो असीम शक्ति है जिसे हम अपना आराध्य इष्ट  मानते हैं।  देवत्व के गुणों से सम्पन्न पूजा स्थलों पर शान्ति और सुकून पाने के लिए अक्सर हम धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं ।
 कभी पढ़ा था कि शाब्दिक दृष्टि से धर्म का अर्थ ‘धारण करना’ होता है जो संस्कृत के ‘धृ’ धातु से बना। चिन्तन इस विषय पर भी कि धारण किसे करें और क्या करें ? तो यहाँ महत्वपूर्ण तथ्य यह कि धारण करने के लिए वे अच्छे गुण जो ‘सर्वजन हिताय’ की भावना पर आधारित सम्पूर्ण‎ जीव जगत के कल्याण और परमार्थ के लिए हो। सुगमता की दृष्टि से मानव समुदाय‎ ने अपने आदर्श के रुप में अपने आराध्य चुने जिनकी प्रेरणा‎ से वे सन्मार्ग पर चल सके। आगे चलकर समाज में विचारों में मतभेद पैदा हुए कुछ विद्वानों‎ ने सगुण और कुछ ने निर्गुण उपासना पर बल दिया। सगुण उपासना में ईश प्रार्थना आसान हुई कि प्रत्यक्ष‎ रूप में आकार‎-प्रकार है …,अपने आराध्य का जिसको सर्वशक्तिमान मान वह पूजते हैं मगर निर्गुण उपासना आसान नही थी। ध्यान लगाना और उच्च आदर्शों का अनुसरण करना  वह भी उस असीम शक्ति का जिसका कोई  आकार-प्रकार नही हो वास्तव‎ में दुष्कर कार्य था।  लेकिन मन्तव्य सभी‎ का एक ही था कि लौकिक   विकास,उन्नति,परमार्थ और ‘सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय’ हेतु  ईश आराधना करनी है जिससे समाज में शान्ति और भातृत्व भाव बना रहे और पूरे मानव समुदाय का सर्वांगीण विकास हो ।
भाग-दौड़ की जिन्दगी और भौतिकतावादी दृष्टिकोण के साथ प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली  में ये बातें किसी शिक्षा सत्र के पाठ्यक्रम‎ की तरह कभी  मानव को याद रहती हैं तो कभी अगला सत्र आने तक भुला दी जाती हैं। भले ही युवा पीढ़ी को यह सब याद रखना , इस विषय के बारे में सोचना रूढ़िवादी लगता हो लेकिन  व्यवहारिक जीवन की पटरी पर इन्सान जब चलना सीखता है तब दो पल के लिए सही, वह अपने जीवन में अपने आराध्य की प्रार्थना‎ अवश्य  करता है और उसकी सत्ता स्वीकार भी करता है । 
प्रार्थना‎ में हम सदैव ईश्वर के असीम और श्रेष्ठ‎ रूप की प्रभुता स्वीकार कर अपनी व अपने आत्मीयजनों  की समृद्धि और विकास तथा सुरक्षा हेतु वचन मांगते हैं कि हम सब आपके संरक्षण‎ में हैं और परिवार के मुखिया पिता अथवा माता के समान ही आपकी छत्र-छाया में स्वयं को सुरक्षित‎ महसूस करते हैं। यही शुभेच्छा एक से दो से तीन तीन से चार….,एक  श्रृंखला का निर्माण विशाल जन समुदाय‎ के रूप में करती है और सम्पूर्ण‎ समुदाय‎ द्वारा‎ अपने तथा अपने प्रियजनों के लिए मांगी गई‎ अभिलाषाएँ सर्वहित,सर्वकल्याण की भावना‎ का रूप ले देवस्थानों  में प्रवाहित सकारात्मक ऊर्जा का रूप ले लेती‎ हैं । जिस के आवरण में प्रवेश कर हम देवस्थानों पर असीम शान्ति और सुख का अनुभव करते हैं ।
     
                     🍁🍁🍁

16 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३०'प्रार्थना/आराधना' (चर्चा अंक-३७६७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. शब्द-सृजन में लेख साझा करने के लिए हार्दिक आभार.सस्नेह..,

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  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर ।

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  3. सही कहा सर्वहित एवं सर्वकल्याण की भावना से की गयी प्रार्थना की ऊर्जा ही सकारात्मकता भरा सकून देती है देवालयों में...।
    बहुत ही सुन्दर सार्थक ज्ञानवर्धक लेख।

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    1. सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखन को मान व सार्थकता मिली सुधा जी । हृदय से असीम आभार ।

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  4. "लेकिन व्यवहारिक जीवन की पटरी पर इन्सान जब चलना सीखता है तब दो पल के लिए सही, वह अपने जीवन में अपने आराध्य की प्रार्थना‎ अवश्य करता है और उसकी सत्ता स्वीकार भी करता है । "
    बिलकुल सही कहा आपने मीना जी,आधुनिकता और वैज्ञानिक दौर में भले ही हम ईश्वर के अस्तित्व को नकार दे पर सत्य यही है उस दर पर सर झुकाना ही पड़ता है। बहुत ही सुंदर सारगर्भित लेख ,सादर नमन आपको

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    1. लेखन का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ कामिनी जी । सादर अभिवादन..,

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  5. वाह ! विचारों की कसौटी पर सुंदर सृजन सुंदर विचार अभिनव लेख।

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    1. सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार कुसुम जी ।

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  6. @प्रियजनों के लिए मांगी गई‎ अभिलाषाएँ सर्वहित,सर्वकल्याण की भावना‎ का रूप ले देवस्थानों में प्रवाहित सकारात्मक ऊर्जा का रूप ले लेती‎ हैं । जिस के आवरण में प्रवेश कर हम देवस्थानों पर असीम शान्ति और सुख का अनुभव करते हैं ।
    मुझे लगता है कि हम सर्वकल्याण की कामना लिए कभी देवस्थान में जाते ही नहीं ,हम जाते जभी हैं जब हम या हमारी कोई समस्या हो केवल तब हमारे कदम स्वतः खिंचते हैं आस्था की तरफ , हाँ समूह आवाहन ऊर्जा महसूस अवश्य होती है हर आस्थावान को और निस्संदेह शक्ति महसूस होती है !
    बेहतरीन लेख है यह बधाई आपको !

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    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेख को सार्थकता और मान मिला । हृदय से असीम आभार सर .

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  7. बहुत अच्छा लेख मीना जी, क‍ि अपने प्रियजनों के लिए मांगी गई‎ अभिलाषाएँ सर्वहित,सर्वकल्याण की भावना‎ का रूप ले देवस्थानों में प्रवाहित सकारात्मक ऊर्जा का रूप ले लेती‎ हैं। बहुत खूब देवस्थानों के प्रत‍ि इन भावों को ल‍िखकर आपने हमारे द‍िल की बात कह दी ...वाह

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    1. सारगर्भित और अनमोल समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा । हृदयतल से हार्दिक आभार अलकनंदा जी ।

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  8. बहुत सुंदर सारगर्भित लेख प्रिय मीना जी। पढ़कर अच्छा लगा। । प्रार्थनाये कभी निष्फल नहीं जाती। हार्दिक स्नेह और शुभकामनायें💐💐🙏🙏💐💐_

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    1. आपकी स्नेहिल अपनत्व भरी प्रतिक्रिया मनोबल संवर्द्धन करती हैं प्रिय रेणु बहन ! आपकी स्नेहिल अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ 🌹🌹🙏🙏🌹🌹

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