- “कैसे हो ? बहुत दिन हुए तुमसे बात नहीं हुई ?
हाल - चाल.., ठीक -ठाक ?” आदित्य के फ़ोन उठाते ही दूसरी ओर से उसके मित्र अनुज ने कुशल - क्षेम पूछी ।
आदित्य - “सब कुछ ठीक -ठाक मगर न जाने क्यों .., आजकल सूरज की रोशनी में नहाई SNN की झील में पड़ती परछाई और उसमें तैरते पक्षी मन में ऊर्जा नहीं भरते । सड़क पर दौड़ती गाड़ियों की तरह मन में विचारों का ट्रैफ़िक जाम सा रहता है । तुम सुनाओ.., तुम्हारे क्या हाल है?”
“फॉल्सम आजकल अपना नही बेगाना लगने लगा है
आदित्य ! चारों ओर बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा रही
हैं ।” उधर से आती आवाज गहरी हो गई ।
फ़ोन डिस्कनेक्ट नहीं हुए मगर दोनों के बीच संवाद का स्थान नीरवता ने ले लिया और चिन्ता में डूबी उनकी सांसें मानो वार्तालाप में सेतु का काम कर रही थीं । सुरसा के मुँह सरीखी फैलती महंगाई के बीच “आर्थिक मंदी” की भयावहता की सुनामी उनके बीच पसरी पड़ी थी ।
***
SNN lake Mangluru, and फॉल्सम ???
ReplyDeleteगहन विचारो का गूढ़ प्रक्षेपण.... अभिनन्दन !
बहुत बहुत आभार सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु🙏
ReplyDeleteवर्तमान समय को देखकर प्रतीत होता है कि ऐसी अनगिनत लघुकथाएं संसार के विभिन्न कोनों में बिखरी पड़ी होंगी तथा दिन-प्रतिदिन बिखरती जा रही होंगी। इस बाबत चाहे कुछ किया न जा सके, फैलते जा रहे दर्द का एहसास तो होना ही चाहिए।
ReplyDeleteसत्य कथन जितेन्द्र जी ! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया । हृदयतल से हार्दिक आभार 🙏
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सृजन को पाँच लिंकों का आनन्द में में सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आ. दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !
ReplyDeleteसत्य कथन
ReplyDeleteआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया । हृदयतल से हार्दिक आभार 🙏
Deleteचारों ओर बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को खा रही हैं ।
ReplyDeleteसही कहा आर्थिक मंदी की भयावहता एवं सुरसा सा मुँह फैलायें मँहगाई....
बहुत सटीक एवं सारगर्भित लघुकथा।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना के लिए हृदय से असीम आभार सुधा जी !
Deleteलघुकथा में निहित गहन भाव मन मस्तिष्क पर छा गयी। शब्दों से भावों का सूक्ष्म संप्रेषण आपकी लेखनी की कारीगरी है दी।
ReplyDeleteप्रणाम
सस्नेह दी।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ श्वेता ! हृदय से असीम आभार । सस्नेह…!!
Deleteगहन भाव ! आज के समय में मध्यम वर्ग के एक ही स्थिति में गुजरते दो लोगों में मौन भी भाव संप्रेषण करता हैं ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर मीना जी।
लेखनी का मान बढ़ाती आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की । हृदय से असीम आभार कुसुम जी !
Deleteप्रिय मीना जी, जब चारों तरफ से युद्ध और अराजकता के समाचार आ रहे हों और व्यवस्थायें खंडित हो रही हों तो मन की व्यवस्था कैसे सही रह सकती है।समय से पीडित दो लोगों का अन्तर्मन जब विकल हो तो बाहरी सौंदर्य उन्हें कैसे लुभा सकता है!!
ReplyDeleteसत्य कथन प्रिय रेणु बहन ! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया । हृदय से असीम आभार ।
Deleteआज की जटिल समस्याओं के परिदृश्य का बड़ी बारीकी से विश्लेषण किया है आपने इस सामयिक लघुकथा में ।
ReplyDeleteआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी !
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