Copyright

Copyright © 2024 "आहान"(https://aahan29.blogspot.com) .All rights reserved.

Friday, October 7, 2022

“फैशन”



-“आज तेरी एक चोटी बना देती हूँ .., अभी बहुत काम पड़े 

हैं ।”  कान पर कंघी रखे माँ रेवा की चोटियाँ खोलती हुई व्यस्त भाव से कहती हैं ।

          “नहीं.., दो चोटी और वह भी झूले वाली जो इन्टरवल में सीनियर्स खोल न सके । स्केल से नापती हैं चोटी और पूछती हैं क्या खिलाती हैं तेरी माँ ? तेल कौन सा..,शैम्पू का नाम ..,और देर हो जाएगी तो प्रीफेक्टस रोक लेंगी प्रेयर हॉल के बाहर .., फैशन बना के आती है लम्बे बाल हैं  तो .., टीचर की डॉंट अलग से।  कम्पलसरी है गुँथी चोटियाँ ।” 

         रेवा कटर से पेन्सिल छिलती हुई एक साँस में बात पूरी करने की कोशिश कर ही रही होती है कि माँ बालों में कंघी चलाती हुई कहती हैं -  अच्छा बाबा ! साँस ले ले …, अभी आधा घण्टा बाकी है दस बजने में .., पहुँच जाएगी स्कूल ।”

       “ओय रेवा ! दस मिनट बचे हैं दस बजने में.., चल भागते हैं जल्दी से नहीं तो लेट हो जाएगी ।” भाई की आवाज़ से उसकी तन्द्रा टूटी और आईने के सामने कंघी रख वहाँ रखा हेयर बैंड बालों पर डालते हुए उसने जल्दी से कंधे पर बैग डालते हुए कमरे का गेट बन्द किया ।

                 रोटी बनाते हाथों पर लगा रह गया आटा खुरच कर अंगुलियाँ झटकती रेवा आंगन से गुजरते हुए आँखों में आया पानी भी उतनी ही निर्ममता और लापरवाही से झटक देती है जब चाची को दादी से यह कहते सुनती है - “लड़की के पर निकल आए हैं .., फैशन में डूब कर कैसे छोटे छोटे बाल करवा आई है लड़कों सरीखे । बिना रोक -टोक बच्चे हाथ से निकल जाते हैं ।”


                                    ***

18 comments:

  1. रोचक लघु-कथा। अक्सर हम लोग दूसरों की बातें सुनते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि सबको हम खुश नहीं कर सकते।

    बीच में लघु-कथा जंप मारती सी लगी। क्या रेवा की माँ अब नहीं रही थीं? उसके आटे लगे हाथों से तो यही लगता है क्योंकि कुछ देर पहले माँ उसके बाल बाँध रही थी। वो भाग थोड़ा कंफ्यूजिंग लगा।

    ReplyDelete
  2. लघुकथा में यह सोचने के लिए छोड़ दिया कि बडे़ बाल पसन्द है रेवा को उसने माँ को अपने बाल कटवाने के लिए नहीं कहा । चूँकि माँ की तरह उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा और घर की ज़िम्मेदारी भी संभाल रही है , जाहिर सी बात है माँ के अभाव में बच्चे समझदार हो जाते हैं और उनका अपना परिवार भी उनकी आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ करता है । माँ की यादों से पुनः वर्तमान पर रेवा को ले आना शायद कन्फ्यूजिंग लगा आपको । आपकी समीक्षात्मक सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक एवं असीम आभार ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अचानक से ही बदलाव हुआ तो लगा। अब क्लियर है। आभार।

      Delete
    2. आपकी प्रतिक्रियाएँ सदैव नव सृजन को प्रेरित करती हैं । पुनः हृदय से असीम आभार विकास जी ।

      Delete
  3. रेवा की मजबूरी फैशन लगी चाची को...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण लघुकथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली,हृदय से असीम आभार सुधा जी !

      Delete
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (9-10-22} को "सोने में मत समय गँवाओ"(चर्चा अंक-4576) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।

      Delete
  5. स्कूल पहुँचने के समय के अंतर ने ही स्पष्ट कर दिया कि वो पुरानी यादों में खोई हुई थी । सच है माँ का साया उठ जाए बच्चों पर से तो भले ही परिवार में लोगों के साथ रहें लेकिन बहुत कुछ सहन करना पड़ता है , खास तौर से लड़कियों को । मार्मिक लघुकथा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. लघुकथा के मर्म को स्पष्ट करती आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को मान प्रदान किया । हार्दिक आभार आ. दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !

      Delete
  6. वाह वाह!मार्मिक

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय 🙏

      Delete
  7. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका सृजन की सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ।

      Delete
  8. मार्मिक लघु कथा

    ReplyDelete
  9. लघुकथा की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार अनुज ।

    ReplyDelete
  10. मार्मिक कथा।

    ReplyDelete
  11. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । ब्लॉग पर आपका स्वागत है 🙏

    ReplyDelete