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Thursday, December 8, 2022

“धुआँ”

 


राधिका शाम को अक्सर छत पर चली आती है । सांझ के तारे 

को देखने के साथ पास-पड़ौस के घरों से उठता धुआँ देखना उसे 

बड़ा भला लगता है । वह अनुमान  लगाया करती है कि कौन से घर 

में सबसे पहले खाना बनना शुरू होगा । उसकी सहपाठिन सहेलियाँ क्या कर रही होंगी अपने घरों में । वह दो दिन से देख रही थी श्यामा काकी के घर से किसी तरह की सुगबुगाहट नहीं थी ।कल स्कूल से आते वक़्त उनके घर का दरवाज़ा भी खुला देखा मगर सांझ के समय उठता धुआँ  नहीं देखा छत की मुँडेर थामे वह यह सोच ही रही 

होती है कि माँ की आवाज़ आती है - “अब आ भी जा नीचे., 

अंधेरा हो रहा है !” 

-  “आई माँ !” कहते हुए वह सीढ़ियों से फुर्ती से उतर कर माँ के आगे आ खड़ी हुई ।

- “ स्वेटर पहन ले ! तेरा नया कार्डिगन बन गया , देखूँ तो कैसा लग रहा है ।रोज पूछती है कब पूरा होगा और आज बन कर तैयार हो 

गया तो एक बार भी नहीं पूछा ।” माँ की बात पूरी होती उससे पूर्व राधिका गाजरी रंग के कार्डिगन में माँ के आगे फिर से आ खड़ी हुई ,चमकती आँखों से वह मानो माँ से पूछ रही थी -“कैसी लग रही 

हूँ माँ !” 

   - “खाने में क्या बना रही हो माँ.., भूख लगी है जोर से ।” 

नमकीन चावल …, छत पर खड़ी थी तब नहीं लगी ।” मुस्कुराती हुई माँ बोली और गोभी , आलू काटने के लिए स्वयं के आगे और मटर की टोकरी के साथ प्याला उसकी ओर बढ़ा दिया मटर छिलने के लिए । 

अचानक उसे जैसे ही कुछ याद आया छिले मटर के दाने प्याले में डालते हुए बुदबुदा उठी -“ माँ श्यामा काकी है तो यही मगर उनके 

घर से धुआँ नही उठ रहा शायद उनके घर गैस का कनेक्शन लग 

गया है ।”

 उसकी बात सुनते ही माँ की आँखें सोच में डूब गईं और वे गहरी साँस लेते हुए उठी -  “जहाँ बिजली के कनेक्शन की बात दूर की कौड़ी हो वहाँ गैस कनेक्शन की बात करती है लड़की !” कहने के साथ ही उन्होंने छिले आलू और गोभी पानी में डाले और राधिका से कहा -मेरे साथ चल ।”

        थोड़ी देर बाद  तौलिए से ढकी अनाज की भरी बाल्टी और भगौने भर आटे के साथ चिन्ता में डूबी माँ के साथ  गाजरी कार्डिगन की जेबों में हाथ डाले चलती राधिका नमकीन चावल की बात भूलकर श्यामा काकी के घर की ओर कदम बढ़ाते हुए खुश थी कि कल शाम छत पर सांझ के तारे के साथ उनके घर से उठता 

धुआँ देख सकेगी ।

                                 ***

28 comments:

  1. सुंदर लघुकथा। पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। यह संवेदनशीलता अब कम ही देखने को मिलती है लेकिन मिलती है।

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  2. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया बहुत बहुत आभार विकास जी !

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार श्वेता जी !

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  4. खूबसूरत लघु कथा । आज जब पड़ोस में कोई किसी को पहचानता नहीं वहाँ इतनी फिक्र करने वाले लोग भी हैं । मर्मस्पर्शी रचना ।

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    1. आपकी सराहना भरा उत्साहवर्धन मेरी लेखनी की ऊर्जा है। हृदयतल से आभार आदरणीया दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे।

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  5. आजकल मोबाइल कम्प्यूटर ने बच्चों को बुद्धि बस मोबाइल स्क्रीन जितनी संकीर्ण कर दी है उन्हें अपने घर में क्या बना है तो दूर अपनी प्लेट से क्या खा रहे हैं नहीं पता।फिर राधिका जैसे बच्चे वाकई प्रशंसा के पात्र हैं और ऐसी सोच विकसित करनी होगी बच्चों में ...इसी में समाज का कल्याण निहित है ।बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित लघुकथा ।

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    1. आपकी सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखनी सार्थक हुई । हृदयतल से आभार सुधा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।

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  6. राधिका जैसे संवेदनशील लोग या कहें कि बालक- बालिकाएं ही समाज की अनमोल धरोहर हैं।एक सन्वेदशील विचारों से सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय मीना जी!

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  7. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया ।हृदयतल से आभारी हूँ प्रिय रेणु जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।

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  8. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-12-22} को "दरक रहे हैं शैल"(चर्चा अंक 4625) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार कामिनी जी 🙏

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  9. बहुत ही सुन्दर लघुकथा सखी,राधिका के माध्यम से आपने एक संदेश दिया है कि बच्चों का प्रकृति से जुड़ाव जरुरी है।

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    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया।हृदयतल से आभारी हूँ सखी ! सादर सस्नेह वन्दे ।

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  10. आज के दौर में तो बच्चों को ये पता नहीं होता कि उनके घर में खाना बना है या नही कोई खाया है या नही । राधिका जैसे बच्चे हमारे समय में थे।समाज को सन्देश देती बहुत ही सुन्दर लघुकथा,सादर नमन मीना जी 🙏

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    1. मानवीय मूल्यों की सार्थकता के लिए यह अंकिचन प्रयास है सखी ! लेखनी को सार्थक करती आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार । सादर सस्नेह वन्दे 🙏

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  11. वाह मीना जी, एक धुआं ने सारी व्‍यथा-कथा समेट दी...अद्भुत लिखा

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    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अलकनन्दा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।

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  12. सुंदर लघुकथा

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  13. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ. ओंकार सर 🙏

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  14. मानवीय मूल्य का सुंदर और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा । सुंदर सोच की ढाणी हैं आप मीना जी । बहुत शुभकामनाएं ।

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    1. आपकी सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला ।हृदय से असीम आभार आभार जिज्ञासा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।

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  15. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई ।

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    1. आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  16. मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देती बहुत सुंदर कहानी!

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    1. आपकी सारगर्भित सराहना से सृजन को मान मिला । हार्दिक आभार सहित सादर सस्नेह वन्दे ।

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  17. बहुत सुंदर कहानी।

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  18. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला ।हार्दिक आभार आ.विश्वमोहन जी 🙏

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