चकले और बेलन के बीच आटे की लोई आकार ले रही थी और हाथ चलाती नवविवाहिता पूर्णिमा खोई थी अपनी कल्पनाओं के संसार में , जहाँ अनगिनत सपनों में से कोई एक आकार लेने के लिए प्रयासरत था ।
-“कहाँ ध्यान है तुम्हारा ! दूध उबल कर नीचे गिर रहा है ? तवा खाली पड़ा है जब दो काम एक साथ नहीं होते तो कम से कम एक तो ढंग से कर लो ।” जेठानी ने गैस की नोब बंद करते हुए उसे लगभग झिड़क ही दिया ।
- “सॉरी दी ! आगे से ध्यान रखूँगी” सकपकाते हुए पूर्णिमा कल्पना लोक से यथार्थ लोक में आ गिरी ,जल्दी से चपाती सेक कर उसने जैसे ही चपाती को घी लगाने के लिए चम्मच कटोरी में डुबोई तो पुन:हिदायत गूंजी - “ एक हफ़्ते में एक किलो घी ख़त्म हो जाता है ,चपातियों पर लगाते समय यह भी दूध की तरह बिखेर देती हो क्या?” जेठानी की हँसी पूर्णिमा को गोखरू के काँटे सी चुभी ।
रोटियों पर घी की मात्रा कम देख कर सास ने ताना मारा -“मायके में घी नहीं देखा होगा, लगाना आए भी तो कैसे ?
बातों की गंभीरता और नये परिवेश को आत्मसात करने के लिए पूर्णिमा लगभग कामों में डूबी रहती और उसके मस्तिष्क में सक्रिय रहता उसकी कल्पनाओं का जखीरा जो अतीत और वर्तमान के साथ उसको दिन भर व्यस्त रखता ।
दोपहर के काम समेट कर बालों में कंघी करने के उद्देश्य से वह अपने कमरे की तरफ मुड़ी ही थी कि सास ने पीछे से आवाज दी- पूर्णिमा !
उसने मुड़ कर देखा तो उनके हाथ में हरी पत्तियों के बीच मिट्टी में लिपटी गुलाब की टहनी थी और आँखों में खेद भरा अपनापन ।
-“राह चलती गाय ने मुँह मार दिया गमले में.., लॉन तक पहुँच गई थी गाय ..,बच्चों ने गेट खुला छोड़ दिया होगा बाहर जाते समय । मैं वहाँ पहुँची तब तक उसने गमला तोड़ दिया .., तुमने कितने मन से गमले में लगाई थी यह ।”
कोई बात नहीं माँ जी ! बालों की कंघी भूल पूर्णिमा उनके हाथ से मुड़ी-तुड़ी टहनी ले कर लॉन के कोने वाली क्यारी की ओर चल पड़ी,सास भी साथ-साथ थीं बहू के लिए अनायास ही ममत्व उमड़ आया उनके मन में ।
खुरपी से गड्ढा खोदती पूर्णिमा सास से बोली - “लग जाएगी माँ जी ! गुलाब की टहनी है बस थोड़ा ध्यान मांगती है ।”
पूर्णिमा की बात सुन कर सास के होंठों पर अर्थपूर्ण मुस्कुराहट खिल उठी वे अपनत्व भरी नजरों से कभी पूर्णिमा के खुरपी चलाते मिट्टी में सने हाथों को तो कभी जमीन पर पड़ी गुलाब की टहनी को निहार रही थीं ।
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बहुत समझदारी भरी लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी ! सादर नमस्कार !
Deleteबहुत सुंदर, पौधे से टूटी डाली कहीं भी तब ही लग सकती हैज्ञजब उसे उचित देखभाल और अपनापन मिलेगा ।गलतियां गिनवाना तो आसान है पर स्नेह और सहयोग से गलतियों को सुधरवाना मुश्किल है शायद...।
ReplyDeleteसस्नेह प्रणाम दी।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ दिसंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर और सार्थक प्रतिक्रिया पा कर लेखनी को मान मिला प्रिय श्वेता जी ।आपकी स्नेहिल उपस्थिति और
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के आमन्त्रण हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार ।
सुन्दर लघुकथा
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर नमस्कार!
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर नमस्कार सर !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सारगर्भित लघुकथा
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक प्रतिक्रिया पा कर सृजन सार्थक हुआ,हार्दिक आभार अभिलाषा जी !
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