【 चित्र गूगल से साभार】
कई बार कुछ लम्हें स्थायी रूप से बैठ जाते हैं
मन के किसी कोने में । सोचती हूँ मन क्या है - हृदय...
जिसकी धड़कन ही जीवन है । बचपन में पढ़ा था कि हर
मनुष्य का हृदय उसकी बंद मुट्ठी जितना होता है । इस छोटे से
अंग में सागर सी गहराई और आसमान सी असीमता है यह
बात बड़े होने के बाद समझ आई ।
असम का एक मझोला शहर बरपेटा रोड ..वहीं से मुँह
अंधेरे गाड़ी में बैठते सुना कि सुबह तक पहुंच जाएंगे गुवाहाटी । कार की खिड़की से नीम अंधेरे में भागते पेड़ों को देखते
देखते कब नींद आई पता ही नहीं चला । आँख खुली तो
लगा पुल से गुजर रहे हैं --
"उगता सूरज... ब्रह्मपुत्र का सिंदूरी जल और नदी में
बहती छोटी-मझोली जाल लादे नावें और साथ
ही स्टीमर्स की घर्र-घर्र । "
इस अनूठे दृश्य को देख कर मैं मंत्रमुग्ध सी अपलक
अपने लिए निन्तात अजनबी से दृश्य को निहारने में इतनी
मगन हुई कि वह दृश्य कस कर बाँध लाई अपनी
मन मंजूषा में । आज भी यदा-कदा बंद दृग पटलों में
वह दृश्य जीवन्त हो उठता है और महसूस होता है कि
मैं वहीं तो हूँ ब्रह्मपुत्र के पुल पर.. और जैसे ही आँखें
खोलूंगी अगले ही पल वहीं दृश्य साकार हो उठेगा --
भोर लालिमा~
ब्रह्मपुत्र में जाल
फेंकते मांझी।
***