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Wednesday, August 7, 2024

“रहस्य”

मैं आज फिर से कल के गलियारे में हूँ ।बहुत कोशिश की खुद को आज से बाँधने की मगर मन तो बहते पानी सा चंचल ठहरा अपने लिए रास्ते ढूँढ ही लेता है किसी एक जगह उसको ठहरना भाया कब है।

            अभी कुछ दिन पहले  “डिस्कवरी” पर “Ancient Aliens” प्रोग्राम देखने के बाद मन पुनः बीते कल के आँगन में जा खड़ा हुआ। बहुत  बार ऐसा पढ़ने में आता है कि ब्रह्माण्ड में अस्तित्व है मानव सभ्यता के अतिरिक्त अन्य सभ्यताओं का ।बात जब ब्रह्माण्ड की हो और माँ से बचपन की बहसें याद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है ।  माँ की मोटी-मोटी पुस्तकें जिनमें उनको सदा फ़ुर्सत के लम्हों में डूबे देखा .., माँ के साथ उनकी भी याद आ ही जाती है जिनका कभी वे मौन रह कर तो कभी सस्वर वाचन किया करती थीं । कई बार सोचती थी कि माँ की किताबों में से जो अच्छी लगेंगी अब की बार  की गर्मी की छुट्टियों में ज़रूर पढूँगी पूरी नहीं तो कुछ पन्ने ही सही। लेकिन छुट्टियों में खेल-कूद के अतिरिक्त कुछ याद ही कहाँ रहता था । ख़ैर सोचने का मौक़ा ज़्यादा नहीं दिया कुदरत ने…, माँ के जाने के बाद उनकी सारी किताबें पापा ने कुछ नानाजी को और कुछ मन्दिर में भेज दी और माँ के साथ मेरी बहसों को सिलसिला भी थम गया ।

      एक बार पढ़ती हुई माँ  के किसी प्रसंग का अंश - “ईश्वर की सत्ता सृष्टि के कण-कण में समाई है वही समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त चर-अचर का स्वामी है ।” मेरे कानों में पड़ गया .., बालमन की जिज्ञासा हाथ धो कर माँ के पीछे पड़नी ही थी - माँ ईश्वर कौन

 हैं ?  और यह तुम्हारी किताबों के ब्रह्माण्ड में भी हमारी साइंस की किताब वाले अन्तरिक्ष : सोलर सिस्टम  और आकाशगंगा जैसे टॉपिक हैं क्या ? तुम्हारे भगवान जी भी सोलर सिस्टम को मानते

 हैं ? उस वक़्त माँ का मूड नहीं था मेरे से बहस करने का..,वे बड़ी  सहजता से मुझे “नास्तिक” की उपाधि प्रदान कर बुकमार्क के रूप में मोरपंख अपनी किताब में दबा कर अपने कामों में उलझ गईं।और मैं भी उस बात को भूल गई ।

     गर्मियों में एक दिन रात  में छत पर सोते हुए साफ़ आकाश में जहाँ असंख्य तारों की झिलमिलाहट थी हल्के से बादलों की लकीर की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए माँ ने कहा - 

“देख ! आकाश गंगा !”  

“अच्छा जी ! आपकी किताबों में आकाश गंगा भी होती हैं ?”

मेरी बात को अनसुना करते हुए उन्होंने कहा -

“उधर देख ! वो सप्तऋषि मण्डल और वो ध्रुव तारा ।” 

-“अच्छा तो यह बीच का हिस्सा जहाँ तारे नहीं दिखायी दे रहे “ब्लैकहॉल” है । मैंने आँखों से दिखाई देने वाले उस छोटे से आकाश के हिस्से में मानो पूरे अन्तरिक्ष को नापने की ठान ली 

थी ।”

     अचानक एक प्रश्न  कौंधा मन में और मैं पूछ बैठी -

  -   “माँ ! क्या हमारी पृथ्वी जैसी और भी पृथ्वियाँ होंगी वहाँ भी हम जैसे लोग रहते होंगे !” 

-“जरूर होंगे” माँ का उत्तर खोया खोया सा लगा । 

मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी ।

-“माँ यह सब किसने बनाया ?” 

- “ईश्वर ने ।”

- “ईश्वर को किस ने ?

माँ की सोच रूक गई- ठहरी सी आवाज़ में बोलीं जो आज भी याद है - 

“ वह सर्वोच्च शक्ति जिसने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया जो हमेशा हर जगह व्याप्त है वही ब्रह्मा, विष्णु और महेश है ।जगत के जन्मदाता,पालनकर्ता और संहारकर्ता । उसे ईश्वर मानते हैं हम ।”

                     माँ जानती थी मेरी तरफ़ से और प्रश्न आने वाले हैं इसलिए विषय को विराम देते हुए कहा-

“अब सो जा ! आज के लिए तेरे लिए बहुत हो गया ।”

                माँ की खामोशी के बाद आसमान में टकटकी बाँधे मेरी आँखें हर जगह व्याप्त उस असीम शक्ति की कल्पना में डूबी हुई थी जो हर जगह व्याप्त थी शायद वो मुझे भी देख रही थी ॥ मेरे लिए यह बहुत बड़ा रहस्य था जिसे मैं कभी सुलझा नहीं पाई ।

                            “Ancient Aliens” की डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद लगा उस रात माँ के साथ चर्चा में माँ  सही थी कि कोई 

असीम शक्ति की सत्ता तो है जो ब्रह्माण्ड को नियन्त्रित करती है । और मैं भी कि पृथ्वी जैसी और पृथ्वियाँ भी  हैं जहाँ हम जैसे प्राणी रहते होंगे ।यह अलग बात है कि वे हमारी पृथ्वी पर रहने वाले लोगों जैसे भी हो सकते हैं और उनसे अधिक उन्नत और विकसित अवस्था में भी हो सकते हैं ।


                                       ***