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उसने पूछा - लिख नहीं रही आज कल ? बहुत दिन हुए कुछ लिखते नहीं देखा..!! मन किया कि कहूँ - आज कल गुजरे
कल और आने वाले कल को दरकिनार कर आज को जीना
सीख रही हूँ और वो आज मुझे हर जगह अनफ़िट किये दे रहा
है जिसके तार पैदाइश से ही जुड़े हैं मेरे साथ .., कम से कम
मुझे अपने बारे में ऐसा ही लगता है । मैं बस एक ही काम तो अच्छे से कर पाती हूँ सब से सामंजस्य बिठाने की कोशिश लेकिन यहाँ भी झोल है जब तक वह बैठता है तब तक दुनिया और से और हो जाती है ।बस गुजरे पलों का सूत्र ही रह जाता है हाथ में ।ज़िद्द है मन की कि ज़िन्दगी के गुणा-भाग के बाद शेष बचे अंश से तारतम्य बिठाने के लिए एक ईमानदार कोशिश तो कम से कम होनी ही चाहिए ।बाकी कल का क्या…? वो तो सांसों के साथ जुड़ा है जब जी चाहेगा स्मृतियों के गलियारों के दरवाजे खुद के लिए ख़ुद बख़ुद खुल जायेंगे ।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 01 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द में पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए हृदय तल से हार्दिक आभार यशोदा जी ! सादर..।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद सर🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद सर🙏
Deleteसबके साथ सामजस्य बिठाने की कोशिश ! इसमें तो झोल बहुत ही बड़ा है, अनेक कोशिशों के बाद जब लगता है कि आखिर सामजस्य बैठ गया तभी समझ आता है कि हमारे सामजस्य में फिट बैठना दूसरे की जरूरत थी। जरूरत खतम तो सामजस्य क्या रिश्ता ही खतम कर देता है सामने वाला....
ReplyDeleteफिर अपने पास बचती है चंद यादें ! और अनुभव को शब्दबद्ध करती है अपनी लेखनी.... है न !
बहुत सही कहा सुधा जी ! होता यही है । बहुत बहुत आभार ।सस्नेह…,
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