मैं आज फिर से कल के गलियारे में हूँ ।बहुत कोशिश की खुद को आज से बाँधने की मगर मन तो बहते पानी सा चंचल ठहरा अपने लिए रास्ते ढूँढ ही लेता है किसी एक जगह उसको ठहरना भाया कब है।
अभी कुछ दिन पहले “डिस्कवरी” पर “Ancient Aliens” प्रोग्राम देखने के बाद मन पुनः बीते कल के आँगन में जा खड़ा हुआ। बहुत बार ऐसा पढ़ने में आता है कि ब्रह्माण्ड में अस्तित्व है मानव सभ्यता के अतिरिक्त अन्य सभ्यताओं का ।बात जब ब्रह्माण्ड की हो और माँ से बचपन की बहसें याद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है । माँ की मोटी-मोटी पुस्तकें जिनमें उनको सदा फ़ुर्सत के लम्हों में डूबे देखा .., माँ के साथ उनकी भी याद आ ही जाती है जिनका कभी वे मौन रह कर तो कभी सस्वर वाचन किया करती थीं । कई बार सोचती थी कि माँ की किताबों में से जो अच्छी लगेंगी अब की बार की गर्मी की छुट्टियों में ज़रूर पढूँगी पूरी नहीं तो कुछ पन्ने ही सही। लेकिन छुट्टियों में खेल-कूद के अतिरिक्त कुछ याद ही कहाँ रहता था । ख़ैर सोचने का मौक़ा ज़्यादा नहीं दिया कुदरत ने…, माँ के जाने के बाद उनकी सारी किताबें पापा ने कुछ नानाजी को और कुछ मन्दिर में भेज दी और माँ के साथ मेरी बहसों को सिलसिला भी थम गया ।
एक बार पढ़ती हुई माँ के किसी प्रसंग का अंश - “ईश्वर की सत्ता सृष्टि के कण-कण में समाई है वही समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त चर-अचर का स्वामी है ।” मेरे कानों में पड़ गया .., बालमन की जिज्ञासा हाथ धो कर माँ के पीछे पड़नी ही थी - माँ ईश्वर कौन
हैं ? और यह तुम्हारी किताबों के ब्रह्माण्ड में भी हमारी साइंस की किताब वाले अन्तरिक्ष : सोलर सिस्टम और आकाशगंगा जैसे टॉपिक हैं क्या ? तुम्हारे भगवान जी भी सोलर सिस्टम को मानते
हैं ? उस वक़्त माँ का मूड नहीं था मेरे से बहस करने का..,वे बड़ी सहजता से मुझे “नास्तिक” की उपाधि प्रदान कर बुकमार्क के रूप में मोरपंख अपनी किताब में दबा कर अपने कामों में उलझ गईं।और मैं भी उस बात को भूल गई ।
गर्मियों में एक दिन रात में छत पर सोते हुए साफ़ आकाश में जहाँ असंख्य तारों की झिलमिलाहट थी हल्के से बादलों की लकीर की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए माँ ने कहा -
“देख ! आकाश गंगा !”
“अच्छा जी ! आपकी किताबों में आकाश गंगा भी होती हैं ?”
मेरी बात को अनसुना करते हुए उन्होंने कहा -
“उधर देख ! वो सप्तऋषि मण्डल और वो ध्रुव तारा ।”
-“अच्छा तो यह बीच का हिस्सा जहाँ तारे नहीं दिखायी दे रहे “ब्लैकहॉल” है । मैंने आँखों से दिखाई देने वाले उस छोटे से आकाश के हिस्से में मानो पूरे अन्तरिक्ष को नापने की ठान ली
थी ।”
अचानक एक प्रश्न कौंधा मन में और मैं पूछ बैठी -
- “माँ ! क्या हमारी पृथ्वी जैसी और भी पृथ्वियाँ होंगी वहाँ भी हम जैसे लोग रहते होंगे !”
-“जरूर होंगे” माँ का उत्तर खोया खोया सा लगा ।
मेरी जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी ।
-“माँ यह सब किसने बनाया ?”
- “ईश्वर ने ।”
- “ईश्वर को किस ने ?
माँ की सोच रूक गई- ठहरी सी आवाज़ में बोलीं जो आज भी याद है -
“ वह सर्वोच्च शक्ति जिसने ब्रह्माण्ड का निर्माण किया जो हमेशा हर जगह व्याप्त है वही ब्रह्मा, विष्णु और महेश है ।जगत के जन्मदाता,पालनकर्ता और संहारकर्ता । उसे ईश्वर मानते हैं हम ।”
माँ जानती थी मेरी तरफ़ से और प्रश्न आने वाले हैं इसलिए विषय को विराम देते हुए कहा-
“अब सो जा ! आज के लिए तेरे लिए बहुत हो गया ।”
माँ की खामोशी के बाद आसमान में टकटकी बाँधे मेरी आँखें हर जगह व्याप्त उस असीम शक्ति की कल्पना में डूबी हुई थी जो हर जगह व्याप्त थी शायद वो मुझे भी देख रही थी ॥ मेरे लिए यह बहुत बड़ा रहस्य था जिसे मैं कभी सुलझा नहीं पाई ।
“Ancient Aliens” की डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद लगा उस रात माँ के साथ चर्चा में माँ सही थी कि कोई
असीम शक्ति की सत्ता तो है जो ब्रह्माण्ड को नियन्त्रित करती है । और मैं भी कि पृथ्वी जैसी और पृथ्वियाँ भी हैं जहाँ हम जैसे प्राणी रहते होंगे ।यह अलग बात है कि वे हमारी पृथ्वी पर रहने वाले लोगों जैसे भी हो सकते हैं और उनसे अधिक उन्नत और विकसित अवस्था में भी हो सकते हैं ।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से से सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर सराहना के लिए हार्दिक आभार सर !
ReplyDeleteबड़ी ही रहस्यमयी होती हैं न ये ब्रह्माण्ड की बातें ! और फिर माँ से सुनो तो और भी.....। बहुत ही रोचक एवं भावपूर्ण सृजन ।
ReplyDeleteजी सुधा जी ! हृदय तल से आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ।
ReplyDeleteमाँ के साथ किसी भी तरह का किया गया वार्तालाप सदैव मुझे उत्साहित करता है।
ReplyDeleteवाकई यह आपका लेख बहुत रोचक है। पढ़कर अच्छा लगा।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद प्रकाश जी ।
ReplyDeleteसुंदर लेखन
ReplyDeleteसुन्दर सराहना के लिए हार्दिक आभार मनोज जी!
ReplyDeleteआपकी इस रचना में स्मृतियाँ भी हैं, भावनाएं भी, बाल-मन की जिज्ञासा भी. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteआपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ।हृदय तल से हार्दिक आभार एवं स्वतन्त्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करती माँ और कल्पना के पंखों पर सवार बालमन की बातें बहुत अच्छी लगीं
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल उपस्थिति ने सृजनात्मकता को सार्थक किया ।हृदय तल से हार्दिक आभार अनीता जी !
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट. नमस्ते
ReplyDeleteसुन्दर सराहना के लिए हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार 🙏
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