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धीरे-धीरे गोधूली के धुँधलके से ढकता आसमान और प्रदूषण रहित हवाओं में हल्की सी ठंडक । उदयपुर की धरती पर कदम रखते ही गुजरे वक़्त ने मानो दौड़ कर उन्हें अपनी बाहों में समेट कर स्वागत किया ।
कुनकुनी सी ठंडक के स्नेहिल स्पर्श और अपनेपन की सौंधी
महक में डूबे तीन सहयात्री न जाने मन की कौन-कौन सी वीथियों के कोने स्पर्श करने मे मगन थे कि मौन की तन्द्रा भंग करते हुए एक ने दूसरे से कहा- “ चलो तुम्हारा अपने आप से किया वादा पूरा हुआ यहाँ अपना एक साथ आने का । जब भी पुराना एलबम खुलता है.., तुम्हारी ढलते सूरज की फोटो के साथ यहाँ मेरे साथ आने की बात ज़रूर चलती है ।”
“तुम्हें पता है बरसों से चली आ रही हर बार की यही कहानी थी हमारी ।”तीसरे साथी को वार्तालाप में सम्मिलित करते हुए पहला साथी बोला ।”
“मुझे क्रेडिट मिलना चाहिए प्लान मेरा था। बहुत बार इस अधूरे वादे के बारे में तुम दोनों से सुना, सोचा तुमसे तो पूरा होने से रहा
मैं ही तुम दोनों का पेंडिग काम पूरा कर दूँ ।” - मुस्कुराट के साथ बोलते समय उसकी नज़रें अभी भी खिड़की के बाहर भागते पेड़ों और इमारतों
पर टिकी थी ।
“हाँ भई हाँ !! बात तो सही है तुम बिन हम भाग ही तो रहे थे जीवन में। जीने की कला बस सीख रहे हैं तुमसे !” दूसरे साथी ने हँसते हुए कहा ।
हल्की-फुल्की बातों का सिलसिला गाड़ी के रूकने और “घणी खम्मा” के अभिवादन के साथ रूक गया ।
गंतव्य आ गया था लेक “पिछोला” से दूर अरावली श्रृंखला की पहाड़ियों के पीछे छिपता सूरज आज भी हुबहू वैसा ही था जैसा
बीस साल पहले था ।
***
अतीत से वर्तमान का सुंदर मिलन....सच,बहुत ही खूबसूरत होता है ये मंजर..सदर नमन मीना जी
ReplyDeleteआपकी सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ, हृदयतल से असीम आभार कामिनी जी !सादर सस्नेह वन्दे ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५ -०३-२०२३) को 'कुछ रंग आपस में बांटे - --'(चर्चा-अंक -४६४४ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ! सादर सस्नेह वन्दे!
Deleteसुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteआपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे ।
Deleteसुंदर व सारगर्भित रचना
ReplyDeleteआपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे ।
Deleteवाह!मीना जी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteआपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ शुभा जी !हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति l
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें l
आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।आपको भी सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥
ReplyDeleteआत्मीयता की आँच में पिघलाती सुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया ।हृदयतल से असीम आभार अनीता जी! सादर सस्नेह वन्दे ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे ।
ReplyDeleteसंवाद का अति सुन्दर संप्रेषण।
ReplyDeleteअंत तक बांधे रही रचना। बहुत ही सुंदर सार्थक रचना के लिए बधाई मीना जी।
आपकी सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सहित सादर वन्दे जिज्ञासा जी !
ReplyDeleteबीस साल बाद ! सुनकर ही मन में रोमांच हो आता है। अब मैं बहुत कम पढ़ता हूँ। आज आपकी यह रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा। पिछोला झील का उल्लेख भी मन को उल्लसित कर गया (मैं राजस्थानी हूँ लेकिन उदयपुर गए हुए तथा पिछोला को देखे हुए बरसों बीत गए हैं)। सुगंधित शब्दों से पिरोई हुई आपकी इस मोहक रचना ने मन को मधुर स्मृतियों से भर दिया। आभार।
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ReplyDeleteसादर नमस्कार जितेन्द्र जी ,
लम्बे अन्तराल के बाद आपकी ब्लॉग पर उपस्थिति से अभिभूत हूँ । पोस्ट आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ 🙏 आपका भी उदयपुर से नाता है यह जान कर बहुत ख़ुशी हुई । बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ।आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया लेखनी को सदैव सार्थकता प्रदान करती है ।