"यहाँ पर तो एक फैमिली रहती थी पहले अभी तो बड़ी
सुनसान लग रही है यह हवेली ।"
बहुत समय के बाद बाहर से लौटे अंशुमन ने अपने दोस्त समीर
से चाय पीते हुए पूछा । वैसे उसे याद तो 'एक फैमिली' की
इकलौती लड़की का नाम भी था और उसके पिता का नाम
भी मगर दोस्त और उसकी पत्नी के आगे बोलना नहीं
चाहता था ।
"पता नही क्या झगड़ा था आपस में परिवार का…,एक दिन
सुबह -सुबह चीख-चिल्लाहट की आवाज़ें आईं । हम लोगों ने
छत से देखा तो चार-पाँच आदमी सामान बाहर फेंकते दिखे
उसके बाद से यह हवेली बंद ही पड़ी है ।" अपने बच्चे को पत्नी
की गोद में देते हुए समीर ने जवाब दिया।
"ऐसे-कैसे कोई किसी के साथ कर सकता है ?
तुमने खामोशी कैसे ओढ़ ली ?" घटनाक्रम जान कर अंशुमन
आवेश में आ गया ।सफाई देते हुए बड़ी गंभीरता से समीर
बोला- "देख सीधी सी बात है हम तो नये आए लोग हैं यहाँ..,,
पूरे मोहल्ले में सब घर बंद थे पता तो सभी को था मगर एक
भी बंदा बाहर नहीं निकला । बाद में सभी ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि आपस में भाई-भाई का झगड़ा था । पता
नहीं कल को वे एक हो जाएँ ,हमें क्यों टांग अड़ानी किसी के
फटे में ।"
हाथ की चाय का आखिरी घूंट अंशुमन को कड़वा
लगा कटु यथार्थ जैसा ।
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