चार-पाँच औरतें खिलखिलाती हुई होटल में लंच हॉल में घुसी और कोने में व्यवस्थित सीटिंग व्यवस्था पर जा बैठी । शायद "रिजर्व" की तख्ती पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं थी किसी के पास । सभी अपने अपने लुक्स पर फिदा थी और एक -दूसरे से ज्यादा सलीकेदार जताने की कोशिश में लगी थी तभी एक वेटर ने टेबल के पास आ कर अदब से सिर झुकाते हुए विनम्रता से कहा-"यह टेबल रिजर्व है मैम ,मैं आप लोगों के लिए दूसरी तरफ व्यवस्था कर देता हूँ ।"
"दूसरी तरफ क्यों ? जो नहीं आए उनके लिए भी तो व्यवस्था कर सकते हो ।" एक महिला ने रौब के साथ वेटर को लगभग झिड़कते हुए कहा ।
स्थिति की गंभीरता देख कर मैनेजर उनको दूसरी तरफ बैठाने की व्यवस्था का निर्देश देकर आगे बढ़ा
ही था कि तीन लड़के और दो लड़कियों का समूह कंधों पर बैग लटकाए बिखरे बालों और अस्त-व्यस्त कपड़ों और लस्त-पस्त हालत में अपनी रिजर्व टेबल की ओर आगे बढ़ा । बैठने से पूर्व उनके चेहरों पर परेशानी और व्यग्रता साफ दिखाई दे रही थी ।
सीटों की अदला-बदली में कुछ पल की भिनभिनाहट जरूर हुई पर अन्तत: सब तरफ शांति थी और हल्के संगीत के साथ माहौल खुशनुमा । उधर महिलाएं दूसरी टेबल पर बैठ कर अपने
बिगड़े हुए मूड को ठीक करने के प्रयास में लगी थीं । ड्रेसस् और मेकअप के बारे में एकबारगी भूल अब उनके चर्चा का विषय टेबल पर बैठे युवक-युवतियों का समूह था ।
"घर में यह 'शो' करेंगे बेचारों को समय ही नहीं मिलता । यहाँ क्या गुलछर्रे उड़ रहे हैं । हम तो ऐसा सोच भी नहीं सकते थे ।" - किसी ने गहरी सांस भरते हुए कहा ।
"सच कहा तुमने आजादी तो इन्हीं के पास है । हमने तो घर-गृहस्थी की चक्की में झोंक दिया खुद
को ।"- दूसरी ने मानो बात पूरी की ।
"यार सेलिब्रेट करने आए हैं छोड़ो ये सब मूड मत ऑफ करो ।" उन्हीं में से एक ने विषय बदलने की कोशिश की ।
पहली टेबल पर किसी प्रोजेक्ट की सक्सेस में आने वाली टेक्निकल प्रॉब्लम्स पर चर्चा के साथ स्टार्टरस की प्लेटें भी साफ हो रही थी शायद भूख अपने चरम पर थी । तभी उनमें से एक लड़की ने माथे पर हाथ मारा - ओ शिट् .., मैं तो भूल गई थी । आधे घंटे में मेरी "वन ऑन वन" है । मैं जाती हूँ ,
तुम लोग लंच इंजॉय करो…,
"ठहर मैं भी चलती हूँ ।" दूसरी ने फ्रेंच फ्राईज़ मुँह में लगभग ठूंसते हुए बैग उठाया ।
"यार इन लोगों का तो हो गया "महिला दिवस"
बस ..,ट्रफिक ना मिले और ये पहुंच जाए टाईम
से ।" - एक लड़के ने चिंता जताई । बाकी दो की आँखों में भी वहीं थी ।
चीयर्स !!! हैप्पी वीमन्स डे !!
दूसरी टेबिल से ठहाका गूंजा । शायद वहाँ खाने से पूर्व ड्रिंक्स आ गईं थीं ।
पहली टेबिल पर खामोशी पसरी थी ।
***
संदेशात्मक लघु कथा । कोई सिर्फ खा पी कर ही महिला दिवस मनाता है तो कोई काम में व्यस्त रह कर ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ.संगीता जी ।
Deleteबहुत ही सुंदर संदेशात्मक लघुकथा आदरणीय मीना दी दोनों पहलू बेहतरीन उकेरे है।
ReplyDeleteसादर
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक
Deleteआभार अनीता जी!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच पर सृजन को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवींद्र सिंह जी!
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 5 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
पांच लिंकों का आनन्द में रचना को साझा करने हेतु सादर आभार आदरणीया संगीता स्वरूप जी ।
Deleteसमय के साथ सोच की परिधि भी बदली है. बहुत अच्छी कहानी.
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार डॉ. जेन्नी शबनम जी 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर कहानी,आज के समाज को हकीकत बयां करती हुई।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी!
Deleteउव्वाहहहह..
ReplyDeleteआज भी वाकई इसी तरह मनाया जाता है
महिला दिवस..
सुबह सार्थक हो गई
सादर..
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । सादर आभार यशोदा जी!
Deleteजिन स्त्रियों को ध्यान में रखकर महिला दिवस का आह्वान किया गया है उनकी मानसिकता और जिन युवा बच्चियों को गैर जिम्मेदार समझा जाता है उनकी कर्मठता का अति महीन चित्र उकेरा है आपने दी।
ReplyDeleteदिवस की महत्ता उससे मिली उपयोगिता को सिद्ध करने में है। सार्थक एवं प्रेरक संदेश देती बहुत सुंदर लघुकथा दी।
प्रणाम
सादर।
आपकी सारगर्भित सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली श्वेता जी ! हार्दिक आभार । सादर वन्दे।
Deleteसार्थक सृजन
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता जी!
Deleteसुंदरता से दोनों पक्ष रखे! बदलते समय के साथ नारी ने स्वयं को बदला भी है!!
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुपमा जी!
Deleteसुंदर संदेशात्मक सृजन ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी!
Deleteसुंदर व सटीक विश्लेषण
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार सर!
Deleteसुंदर संदेशात्मक लघुकथा।
ReplyDeleteबधाई
आपकी सराहना भरी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी!
Deleteहमेशा की तरह गहन सृजन। गहन लेखन है आपका। आखिर तक कहीं नहीं ठहरा...बहुत अच्छा लिखा है आपने मीना जी।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संदीप शर्मा जी!
Deleteसंदेश देती बहुत सुंदर लघुकथा
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी।
Deleteअक्सर हम नई पीढ़ी को गलत समझते हैं। सार्थक संदेश देती लघुकथा।
ReplyDeleteसृजन को सार्थक करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मीना जी ।
Deleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक संदेश देती लाजवाब लघुकथा....
ReplyDeleteसृजन को सार्थक करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।
Deleteसुंदर चिंतन करने योग्य संदेश देती है ये कथा
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार भारती जी ।
Deleteबहुत सुंदर प्रिय मीना जी। दीपक तले अंधेरा यही है। आजकल कथित अभिजात्य वर्ग का यहीं महिला दिवस है।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय रेणु जी ।
Deleteमहिला दिवस एक संदेश है ना कि-मनोरंजन। सार्थक एवं प्रेरक संदेश देती बहुत सुंदर लघुकथा मीना जी,सादर नमन आपको
ReplyDeleteसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी! सादर वन्दे।
Deleteबहुत सुन्दर सन्देश…प्राय: पर आलोचना से पूर्व बात व परिस्थितियों की गहराई भी समझ लें तो बेहतर है। हमेशा युवा- वर्ग को कोसना कहाँ तक सही है👍
ReplyDeleteसत्य कथन उषा जी ! हार्दिक आभार 🙏
Deleteआदरणीया मैम, यह रचना दिल को छू गई । महिला दिवस केवल खा -पी कर खुशियाँ मनाने का दिन नहीं है , अपने कर्तव्य और अधिकार के प्रति जागरूक होने का दिन भी है । इन दिनों जहाँ युवा -वर्ग को सदैव कोस ही जाता है वहाँ ऐसी रचना न केवल हम युवाओं की कठिनाई को समझने का प्रयास करती है, साथ-ही - साथ हमें सदा कर्मठ रहने की प्रेरणा भी देती है। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनन्ता आपको लघुकथा पसन्द आई । आपकी ऊर्जात्मक सराहना से सृजन सार्थक हुआ ।
Deleteकल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
जय जगन्नाथ मैम 🙏 सोमवार के पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार
Deleteकम शब्दों में गहरी बात कहती लघु-कथा....
ReplyDeleteप्रंशसात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी।
Deleteप्रभावशाली लघु कथा, लेखन में सुन्दर प्रवाह - - साधुवाद सह।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ.शांतनु सर ! सादर वन्दे 🙏
Deleteहम अपने आप में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि दूसरों के बारे में कोई भी राय बना लेने से पहले कुछ नहीं सोचते। ऐसा बहुत से लोगों के साथ होता है। आपकी यह कहानी बहुत पसंद आई। आपको बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक
ReplyDeleteआभार। वीरेन्द्र जी ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आलोक सर।
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