दोपहर में घर के कामों में उलझी थी वीणा कि मोबाइल
की रिंग ने ध्यान अपनी ओर खींच
लिया । जैसे ही कॉल अटैंड की उधर से बिना सम्बोधन के
परिचित सी साधिकार आवाज
आई--'कब आओगी.. दस बरस के साथ को
बस ऐसे ही भुला दिया ? पाँच बरस हो गए तुम्हें देखे.. कल
सपने में दिखी थी तुम..कभी मिलने
को मन नहीं करता ?'
उस लरजती आवाज से वीणा के मन का कोई
कोना भीग सा गया और भरे गले से कहा --'आऊँगी
ना..मन मेरा भी करता है । आप सब तो व्यस्त रहते
हो..आऊँगी जल्दी ही.. वक्त निकाल कर ।'
'पक्का ना .., बहाना नहीं । मैं छुट्टी ले लूंगी एक-दो
दिन की ।' उधर से व्यस्त सी आवाज आई । वीणा ने
भावनाओं के बाँध पर हँसी का मजबूत पुल बाँधते हुए
पूछा - "सिर्फ एक-दो दिन ?"
'फिर ऐसा करो कोई लम्बा वीकेंड देख लो' - उधर से व्यस्त
भाव से कहा गया और इधर-उधर की कुशल-क्षेम पूछने
के बाद जल्दी मिलने के वादे की औपचारिकता के
साथ विदा हुई। वीणा फोन टेबल पर रखते
हुए सोच रही थी - "लगभग 1800 किमी की दूरी ,
दस बरस का नेह और पाँच बरस के बिछोह के हिस्से में
केवल एक- दो दिन...।"
***
अन्तर्मन तक उतरती चली गई आपकी ये लघुकथा। रिश्तों का नेह और नमी, समय की कमी में से कब खत्म हो जाय,पता ही नही चलता । सार्थक लेखन ।
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत आभार शिवम् जी!आपकी प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-०४-२०२१) को 'एक चोट की मन:स्थिति में ...'(चर्चा अंक- ४०३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सृजन को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु हृदयतल से
ReplyDeleteआभार अनीता जी ।
मन को भीतर तक छू लेने वाली लघु कहानी । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ आलोक सर!सादर आभार।
Deleteऔपचारिक होते रिश्ते ,
ReplyDeleteबहुत भावात्मक सृजन है मीना जी, अंतिम पंक्ति सोचने को मजबूर कर रही है ।
औपचारिकता थी या स्नेह।
हृदय स्पर्शी सृजन।
सस्नेह।
सृजन को सार्थक करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी!स्नेहिल आभार।
Deleteबेरहम वक्त का सितम कुछ ऐसा ही होता है । प्रगाढ़ नेह पर भी दूरी और मजबूरी भारी । मर्मस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteआपकी हृदयस्पर्शी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ अमृता जी! स्नेहिल आभार ।
Deleteजीवन की आपाधापी ऐसी ही है कि वक्त कम निकल पाता है... आज की जीवनशैली को दर्शाती लघु-कथा....
ReplyDeleteलघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया देख कर बेहद खुशी हुई विकास जी! हार्दिक आभार।
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी लघुकथा।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ सखी! सस्नेह आभार।
Delete"लगभग 1800 किमी की दूरी ,
ReplyDeleteदस बरस का नेह और पाँच बरस के बिछोह के हिस्से में
केवल एक- दो दिन...।"
बस अब यही दो दिन के भुलावे वाला साथ और प्यार तो बचा है।
आज के व्यस्त समाज में प्यार को तलाशती अति सुंदर लघु कथा मीना जी
आपकी हृदयस्पर्शी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ कामिनी जी! स्नेहिल आभार ।
Deleteमन को छूती हुई
ReplyDeleteलघुकथा
बधाई
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ज्योति सर ! सादर आभार।
Deleteमनग्राही कथा....
ReplyDelete"लगभग 1800 किमी की दूरी ,
दस बरस का नेह और पाँच बरस के बिछोह के हिस्से में
केवल एक- दो दिन...।"
बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है पूरा कथानक आपने मीना जी
साधुवाद🙏☘️
आपकी स्नेहिल सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से असीम आभार वर्षा जी 🙏🌹
Deleteमीना जी मन को छू गई बात, ये पोस्ट जिस दिन डाली गई थी उसी दिन पढ़ने आना चाहिए था, लेकिन मुझे किसी के पोस्ट के बारे में पता नही चल पाता इसी कारण से अपने पोस्ट माध्यम से ही आना पड़ता है, नवरात्री के कारण साफ- सफाई मे और पूजा की तैयारी में व्यस्त रही, हमारे यहाँ घट स्थापना की जाती हैं, जौ बोया जाता है, इस कारण दीपावली की तरह पोताई, सफाई , 10-15 दिन आगे से शुरू हो जाती हैं ,इसी कारण से मै सबके पोस्ट पर समय से नही जा सकी,जिस दिन आपकी पोस्ट डाली गई है उस दिन मेरा जन्मदिन रहा वैसे ही व्यस्ता बनी रही,देर से आने के लिए माफी चाहती हूँ, बहुत ही अच्छी लघु कथा ,एक और बात हरसिंगार के फूल पेड़ में आने लगे,पहली बार ऐसा हुआ,क्योंकि इस मौसम में ये खिलते नहीं है,उसे देखते ही आपको याद किया।, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, जय माँ भवानी 👏👏🙏🙏
ReplyDeleteदेर से ही सही..,सबसे पहले आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाएँ ज्योति जी 💐 कई बार बहुत व्यस्त होते हैं घर के कामों में हम और नहीं दे पाते समय अपने पसंदीदा कामों को । माफी जैसी बात कह कर शर्मिंदा मत कीजिए🙏 आपका स्नेह मिला मुझे उसके लिए 'आभारी हूँ" शब्द बहुत कम होगा । बस अभिभूत हूँ आपकी स्नेहिल उपस्थिति से...,नवरात्रि पर्व मैं भी मनाती हूँ । उस समय व्यस्तता बढ़ ही जाती है । कोरोना केसेज़ बहुत बढ़े होने के कारण बाहर नहीं निकलती सो हरसिंगार देखने और वह भी इस मौसम में मेरे लिए कल्पना ही रहेगी और आपका याद करना सदैव याद रहेगा :-)नव वर्ष की आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं, जय माँ भवानी 🙏🙏
Deleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteसूचना के लिए सादर आभार🙏
Deleteसमय कम होने की विवशता और जिम्मेदारियों के बीच अपनों से मिलने के लिए ''एक दो दिन'' ...वाह बहुत खूबसूरती से समझााया आपने समय और संबंधों की गहराई को
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
Deleteलगभग 1800 किमी की दूरी ,
ReplyDeleteदस बरस का नेह और पाँच बरस के बिछोह के हिस्से में
केवल एक- दो दिन...।"
व्यस्तता है या औपचारिकता...
बहुत ही हृदयस्पर्शी लघुकथा।
आपका हृदय से बहुत बहुत आभार सुधा जी! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
Deleteबहुत ही सहज़ लेकिन भावपूर्ण करने वाली रचना।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ नीतीश जी। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी, बहुत बहुत आभार 🙏
Deleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनोज जी ।
Deleteमन को छू गई।
ReplyDeleteसुंदर लघुकथा।
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ...,
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
अच्छी लघुकथा |सादर अभिवादन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर! सादर नमस्कार!
Deleteसुंदर लघुकथा
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनोज जी ।
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