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Sunday, July 5, 2020

"अवसर"

स्कूल में दसवीं कक्षा में अनिवार्य सा कर दिया था कि
प्रवेश-पत्र लेने आने से पूर्व तक हर छात्र-छात्रा को “साक्षरता-अभियान” के अन्तर्गत किसी एक अनपढ़
को अक्षर-ज्ञान से पारंगत करना है । कई बार दूर - दराज मौहल्लों में हमें समूह में स्कूल की तरफ से ले जाया
जाता था जहां की अधिकांश महिलाएं और बालिकाएं  अक्षर-ज्ञान से वंचित थीं । मगर कहते हैं न कि इन्सान सदा अपने लिए shortcut ढूंढता है , मैंने भी ढूंढ लिया था ।
घर काम करने आने वाली महरी जिन्हें हम चाची कहते
थे - उनकी बेटी । अक्सर वह चाची के व्यस्त होने पर काम के लिए आया करती थी , मैंने अपने मिशन को पूरा करने के लिए उसे चुना । जब भी वो काम के लिए आती मैं कापी-पेन्सिल लेकर अपने मिशन को पूरा करने के लिए जुट
जाती । मूडी होने के कारण कभी वह ध्यान से पढ़ती तो कई बार पढा़ई को बेकार काम बता कर मुझे निराश कर देती । 
एक दिन उसने बर्तन साफ करते हुए बडी़ सी थाली में मिट्टी भर कर अंगुली से अपना नाम उकेर कर मुझे आवाज दी 'देख ठीक है !' मैंने​ खुशी से लगभग चिल्लाते हुए कहा - 'वाह तू तो बड़ी intelligent निकली ।'
गर्मियों में बिजली गुल होने पर पंखे - कूलर बंद होते ही रात के समय आस-पास की आवाजें साफ सुनाई देती हैं । शादी के गीतों की आवाजें सुन कर पूछने पर पता चला महरी चाची की बेटी की शादी है। दूसरे दिन मैंने पूछा --’ आप इतनी सी 
उम्र में उसकी शादी क्यों कर रहीं हैं ? मां ने मुझे टोका -'पढा़ई कर ! बड़ों की बात में नहीं बोला करते ।’ लेकिन चाची ने उत्तर दिया बड़ी शांति से -- 'मेरे जितना कद हो गया है उसका , घर संभाल लेती है । अच्छा वर मिल रहा था अवसर हाथ से कैसे जाने देती ।' लगभग चार-पांच साल बाद एक दिन  वो गली के छोर पर खड़ी नगर-पालिका में निर्वाचित हमारे ward member को लताड़ रही थी -- ‘ नालियां कितनी गंदी हैं ?  कूड़े के ढेर गली के कोने पर लगे पडे़ हैं। किस बात के नगरपालिका सदस्य हैं आप ? हमारे गांव चलकर देखो आप ! मजाल है कहीं अव्यवस्था मिल जाए।’
उसकी हिम्मत से अचंभित थी मैं । जब वह घर मिलने के लिए आई तो पता चला कि वो अपने ससुराल में अपने वार्ड की निर्वाचित सदस्य थी । नगरपालिका चुनाव में उसका वार्ड  महिलाओं के लिए सुरक्षित सीट वाला था । वो साक्षर थी “अवसर“ मिल रहा था और वो अवसर चूकने वालों में से नही थी ।

★★★★★

20 comments:

  1. यादों के झरोखें से निकली साक्षर और साक्षरता का अर्थ समझाती सराहनीय अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी.

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    1. उत्साहित करती ऊर्जावान प्रतिक्रिया हेतु स्नेहिल आभार अनीता ।

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  2. अरे वाह कितनी सकारात्मक और प्रेरक लघुकथा है दी।
    बड़े-बुजुर्गों से बचपन से सुनती आ रही हूँ कुछ भी सीखा हुआ कभी व्यर्थ नहीं जाता। आपकी कहानी में अक्षरशः सत्य प्रतीत हो रही।
    सादर।

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    1. सृजन को सार्थकता प्रदान करती ऊर्जावान प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार श्वेता ।

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  3. वाह!!
    बहुत खूब, समय कितने रंग दिखाता है, और कैसे कोई जीरो से हीरो बन जाता है अपने आत्मबल से।
    सुंदर संस्मरण।

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    1. आपकी समीक्षात्मक सराहना से लेखन का मान बढ़ जाता है कुसुम जी । हृदयतल से असीम आभार ।

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  4. वाह!! बहुत प्रेरक कथा प्रिय मीना जी ! शिक्षा से ही हर इंसान का उत्थान संभव है। अपनी शिक्षा का सही सदुपयोग किया महरी चाची की बिटिया ने !! सुंदर कथा👌👌👌

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    1. आपके अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली प्रिय रेणु जी । सहृदय स्नेहिल आभार आपका ।

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-07-2020) को     "सयानी सियासत"     (चर्चा अंक-3756)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. चर्चा मंच पर लघुकथा को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सर .

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  6. बहुत बढ़िया

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  7. स्त्री साक्षर होती है तो दो परिवारों को साक्षर करती है सकारत्मक कथा

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    1. सुन्दर सराहनीय संदेश देती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर .

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  8. बहुत ही सुंदर प्रेरणादायक लघु कथा या आपका संस्मरण,साक्षर और साक्षरता के साथ साथ किसी "अवसर" को आप उपलब्धि में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं ये सीख देती सुंदर सृजन मीना जी,सादर नमन

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    1. सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी . स्नेहाभिवादन

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  9. शिक्षा के महत्व को समझाती हुई अच्छी लघुकथा

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    1. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की...हृदय से असीम आभार सुधा जी ।

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