दिसम्बर की कोहरे में ठंड से कड़कड़ाती रात और दूर की
रिश्तेदारी में विवाह । अचानक खबर आई कुछ लोग
रात भर रुकेंगे उनके यहाँ.. बरसों बाद मिले सगे-सम्बन्धियों
में जब बातें शुरू होती हैं तो थमती कहाँ हैं और समय
ठंड का हो तो गर्म चाय के साथ गर्मजोशी से स्वागत करना तो बनता ही है।
चाय बनाने की जिम्मेदारी उसकी थी और बातों के
दौर के मध्य कुछ कुछ अन्तराल के बाद 'एक कप चाय' की फर्माइश भी आ ही रही थी अतः वह चट्टाई बिछा कर रसोईघर
में ही बैठ गई ।मेहमान उसके लिए अपरिचित होते हुए भी
परिचित थे तभी तो साधिकार नाम के साथ बिटिया का संबोधन और साथ ही 'एक कप चाय' की मांग भी कर रहे थे। उन
परिचितों के बीच एक जोड़ी अपरिचित आँखें और भी थी
जिनकी मुस्कुराहट कहीं न कहीं उसे असहज करने में सक्षम थी ।
रात भर के जागरण के बाद भोर से पूर्व मंदिरों
की आरती की घंटियों ने प्रभात-वेला होने की सूचना दी कि सभी जाने की तैयारी में लग गए । उसने कमरे की दहलीज पर
पहुँच कर पूछा---'एक कप चाय और'… । कई स्नेहिल
आशीर्वाद से भरे ठंडे हाथ उसके ठंडे बालों पर स्वीकृति से
टिके ही थे कि कानों में एक आवाज गूंजी --'जी हाँ …,चलते
चलते एक कप चाय और …, हो ही जाए।’
सर्दियाँ हर साल आती हैं और मंदिरों की आरती भी नियत समय पर ही होती है ।आरती के समय पौ फटने से पूर्व उसकी दिन की शुरुआत करने की आदत भी वैसे की वैसी
है । आरती की साथ शंख की आवाज़ सुनते हुए उसके अभ्यस्त हाथ भाप उड़ाती चाय की प्याली को उठा कर ठंड से सुन्न पड़ी अंगुलियों में गर्माहट महसूस करते हुए होठों से लगा लेते हैं ..,
और दिमाग़ में अतीत दस्तक देते हुए कहता है - “एक कप
चाय और….।”
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